पुष्पक विमान है बड़ा आध्यात्मिक आश्चर्य

By: Nov 11th, 2017 12:05 am

यह विमान मूलतः धन के देवता कुबेर के पास हुआ करता था, किंतु रावण ने अपने इस छोटे भ्राता कुबेर से बलपूर्वक उसकी नगरी सुवर्णमंडित लंकापुरी तथा इसे छीन लिया था। पुष्पक विमान का प्रारूप अंगिरा ऋषि ने बनाया तथा इसका निर्माण विश्वकर्मा ने किया…

पुष्पक विमान हिंदू पौराणिक महाकाव्य रामायण में वर्णित वायु-वाहन था। इसमें लंका का राजा रावण आवागमन किया करता था। इसी विमान का उल्लेख सीता हरण प्रकरण में भी मिलता है। रामायण के अनुसार राम-रावण युद्ध के बाद श्रीराम, सीता, लक्ष्मण तथा लंका के नवघोषित राजा विभीषण तथा अन्य बहुत लोगों सहित इसी में लंका से अयोध्या आए थे। यह विमान मूलतः धन के देवता कुबेर के पास हुआ करता था, किंतु रावण ने अपने इस छोटे भ्राता कुबेर से बलपूर्वक उसकी नगरी सुवर्णमंडित लंकापुरी तथा इसे छीन लिया था। अन्य ग्रंथों में उल्लेख अनुसार पुष्पक विमान का प्रारूप एवं निर्माण विधि अंगिरा ऋषि द्वारा एवं इसका निर्माण एवं साज-सज्जा देव-शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा की गई थी। भारत के प्राचीन हिंदू ग्रंथों में लगभग दस हजार वर्ष पूर्व विमानों एवं युद्धों में उनके प्रयोग का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसमें बहुतायत में रावण के पुष्पक विमान का उल्लेख मिलता है। इसके अलावा अन्य सैनिक क्षमताओं वाले विमानों, उनके प्रयोग, विमानों की आपस में भिड़ंत, अदृश्य होना और पीछा करना, ऐसा उल्लेख मिलता है। यहां प्राचीन विमानों की मुख्यतः दो श्रेणियां बताई गई हैं-प्रथम मानव निर्मित विमान, जो आधुनिक विमानों की भांति ही पंखों की सहायता से उड़ान भरते थे, एवं द्वितीय आश्चर्यजनक विमान, जो मानव द्वारा निर्मित नहीं थे, किंतु उनका आकार-प्रकार आधुनिक उड़नतश्तरियों के अनुरूप हुआ करता था।

विशेष गुण

इस विमान में बहुत सी विशेषताएं थीं, जैसे इसका आकार आवश्यकतानुसार छोटा या बड़ा किया जा सकता था। कहीं भी आवागमन हेतु इसे अपने मन की गति से असीमित चलाया जा सकता था। यह नभचर वाहन होने के साथ ही भूमि पर भी चल सकता था। इस विमान में स्वामी की इच्छानुसार गति के साथ ही बड़ी संख्या में लोगों के सवार होने की क्षमता भी थी। यह विमान यात्रियों की संख्या और वायु के घनत्व के हिसाब से स्वमेव अपना आकार छोटा या बड़ा कर सकता था। क्योंकि विमान गगन में अपने स्वामी की इच्छा के अनुसार भ्रमण करने में सक्षम था, अतः इसे इसके स्वामी कुबेर द्वारा देवताओं को यात्रा करने के लिए भी दिया जाता था। एक बार रावण ने कुबेर से उसकी नगरी लंकापुरी एवं यह विमान बलपूर्वक छीन लिया था, तभी कुबेर ने वर्तमान तिब्बत के निकट नई नगरी अलकापुरी का निर्माण करवाया। रावण के वध के बाद भगवान राम ने इसे एकल प्रयोग के उपरांत इसके मूल स्वामी कुबेर को लौटा दिया था। इस एकल प्रयोग को विभीषण के बहुत निवेदन पर राम ने सब लोगों की लंका से अयोध्या वापसी हेतु प्रयोग किया था। वर्तमान श्रीलंका की श्री रामायण रिसर्च समिति के अनुसार रावण के पास अपने पुष्पक विमान को रखने के लिए चार विमानक्षेत्र थे। इन चार विमानक्षेत्रों में से एक का नाम उसानगोड़ा था। इस हवाई अड्डे को हनुमान जी ने लंका दहन के समय जलाकर नष्ट कर दिया था। अन्य तीन हवाई अड्डे गुरूलोपोथा, तोतूपोलाकंदा और वारियापोला थे जो सुरक्षित बच गए।

विमान निर्माण

ऋग्वेद में लगभग 200 से अधिक बार विमानों के बारे में उल्लेख दिया गया है। इसमें कई प्रकार के विमान जैसे तिमंजिला, त्रिभुज आकार के एवं तीन पहिए वाले, आदि विमानों का उल्लेख है। इनमें से कई विमानों का निर्माण अश्विनी कुमारों ने किया था, जो दो जुड़वां देव थे एवं उन्हें वैज्ञानिक का दर्जा प्राप्त था। इनमें साधारणतया तीन यात्री जा सकते थे एवं उनके दोनों ओर पंख होते थे। इन उपकरणों के निर्माण में मुख्यतः तीन धातुओं-स्वर्ण, रजत तथा लौह का प्रयोग किया गया था। वेदों में विमानों के कई आकार-प्रकार उल्लेखित किए गए हैं। उदाहरणतया अग्निहोत्र विमान में दो ऊर्जा स्रोत (इंजन) तथा हस्ति विमान में दो से अधिक स्रोत होते थे। किसी विमान का रूप व आकार आज के किंगफिशर पक्षी के अनुरूप था। एक जलयान भी होता था जो वायु तथा जल दोनों में चल सकता था। कारा नामक विमान भी वायु तथा जल दोनों तलों में चल सकता था। त्रिताला नामक विमान तिमंजिला था। त्रिचक्र रथ नामक तीन पहियों वाला यह विमान आकाश में उड़ सकता था।


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