फिजूलखर्ची को विकास में रोड़ा मानते थे नेहरू

By: Nov 14th, 2017 12:05 am

प्रकाश चौधरी

लेखक, समूला, पालमपुर से हैं

आजकल उद्घाटन समारोह पर ही इतना पैसा उड़ा दिया जाता है, जितना उस परियोजना पर भी नहीं लगता है। प्रदेश और देश को गरीब इस तरह के दिखावों ने ही किया है। जितना बड़ा ओहदा, उतना ही बड़ा गाडि़यों का काफिला। नेहरू जी ने प्रधानमंत्री रहते हुए कभी भी अपने ओहदे का न दिखावा किया और न ही उसका फायदा उठाया…

हमारे देश की गुलामी का इतिहास बहुत कड़वा है और उस गुलामी से छुटकारा दिलाया उन असंख्य स्वतंत्र सेनानियों ने, जिनके अथक प्रयास, बलिदान, त्याग और एकता के बल पर हम 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हुए। स्वतंत्रता के आंदोलन में कितने ही शहीदों ने हसंते-हंसते अपने प्राणों की बलि इस देश की आजादी के लिए कुर्बान कर दी और कितने ही आजादी के दीवानों ने अपने और सुख का अमूल्य समय इस देश की आजादी की खातिर जेलों में बिता दिया। इन आजादी के दीवानों की संख्या इतनी थी कि यदि हम उनके नाम लिखना शुरू करें तो उनके नाम लिखते-लिखते हमारे हाथ थक जाएंगे, लेकिन उनके नामों की गिनती समाप्त नहीं होगी।

आजादी के इन दीवानों में एक थे पंडित जवाहर लाल नेहरू, जिनका जन्म दिन 14 नवंबर को समस्त भारत में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। नेहरू जी ने अपनी करोड़ों रुपए की संपत्ति और सब सुखों को त्याग करके देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया औश्र अपने जीवन के सुख का अमूल्य समय इस देश की आजादी की खातिर जेलों में बिता दिया। इन जैसे असंख्य महान स्वतंत्रता सेनानियों की बदौलत ही देश गुलामी की जंजीरों से छूटा। जब देश स्वतंत्र हुआ तो इसकी आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब थी, जिसे सुधारना अति आवश्यक था, ताकि देश सही प्रगति के मार्ग पर चल सके। 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू बने। उन्होंने 13 कैबिनेट स्तर के मंत्री बनाए, जो इतने विशाल देश का सबसे छोटा केंद्रीय मंत्रिमंडल था। नेहरू जी देश की आर्थिक स्थिति से भली भांति परिचित थे। तभी मंत्रिमंडल छोटा बनाया गया। खर्च में कहां कटौती करनी है, इस बात का खास ध्यान दिया जाता था। कमजोर आर्थिक ढांचे में कैसे सुधार लाना है, जिससे देश प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ सके। इस तरह नेहरू जी ने एक शक्तिशाली भारत की नींव रखी। फिजूल खर्च के नेहरू जी कितने विरोधी थे, यह अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब भी नेहरू जी देश के किसी प्रांत में सड़क मार्ग से दौरा करने जाते थे, तो गिनी-चुनी कारें ही उनके साथ होती थीं। मुझे याद है जब सन् 1955 में नेहरू जी सड़क मार्ग द्वारा पठानकोट से मनाली वाया पालमपुर जा रहे थे, तो उनके काफिले में केवल छह या सात कारें ही थीं। आज इस समय को याद करके हैरानी हाती है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र देश भारत का प्रधानमंत्री सड़क मार्ग से पहाड़ी क्षेत्र का दौरा कर रहा हो और उनके साथ सिर्फ छह या सात कारें ही हों। यह हमारे लिए नेहरू जी का कम खर्च करने के लिए एक मार्ग दर्शन था। उस समय प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों की भी कम खर्च करने की ऐसी ही आदत थी। उस समय पंजाब के मुख्यमंत्री स्वर्गीय प्रताप सिंह कैरों के सरकारी दौरे के दौरान गिनी-चुनी कारें ही उनके साथ हुआ करती थीं, फिजूलखर्ची के प्रताप सिंह कैरों भी सख्त विरुद्ध थे। उद्घाटनों और शिलान्यासों पर बहुत कम खर्च किया जाता था।

नेहरू जी का जन्म 14 नवंबर हर वर्ष पूरे देश में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है, लेकिन क्या नेहरू जी के कम खर्च करने की आदत को हम बच्चों को बता सके या स्वयं अमल कर सके? आज एक विधायक बाल दिवस समारोह में जाता है तो उसके साथ ही असंख्य कारों का काफिला होता है, ऐसा क्यों? अन्य मंत्रियों की तो बात ही छोड़ें, वहां तो हर समय उनके साथ असंख्य कारों का काफिला साथ चलता है। क्या आज हम नेहरू जी के आदर्शों की धज्जियां नहीं उड़ा रहे हैं? जो व्यक्ति अपने जीवन का अमूल्य समय इस देश की आजादी की खातिर जेलों में बिताकर चला गया व अपने करोड़ों रुपए के पैतृक आनंद भवन को त्याग कर चला गया अर्थात जिसे संपत्ति से मोह न होकर देश से मोह था, देश की उन्नति और खुशहाली से मोह था, वह महान व्यक्ति फिजूलखर्ची की रोक के लिए एक ठोस उदाहरण देकर चला गया ओर हम उस उदाहरण को भूल गए। आज छोटे से प्रदेश में ही मंत्रियों, राज्य मंत्रियों, सीपीएस की फौज व निगमों व बोर्डों में अध्यक्षों की तैनाती अलग से की गई है।

आज उद्घाटनों और शिलान्यासों पर ही जनता का पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है।  उद्घाटन समारोह पर ही इतना पैसा उड़ा दिया जाता है, जितना उस परियोजना पर भी नहीं लगता है। प्रदेश और देश को गरीब इस तरह के दिखावों ने ही किया है। जितना बड़ा ओहदा, उतना ही बड़ा गाडि़यों का काफिला। नेहरू जी ने प्रधानमंत्री रहते हुए कभी भी अपने ओहदे का न दिखावा किया और न ही उसका फायदा उठाया। उन्हें तो इस बात की चिंता थी कि अभी-अभी गुलामी की जंजीरों से छूटा देश कैसे अपने आपको संभाल पाएगा। आज तो कुर्सी की इतनी ज्यादा लालसा है कि जितनामर्जी पैसा खर्च हो जाए सत्ता हासिल करनी ही है। आज यदि फिजूल कारों के काफिले पर ही रोक लगाई जाए तो करोड़ों रुपए के तेल की दैनिक बचत की जा सकती है। यदि देश की सच्ची सेवा करनी है, तो बचत, त्याग व स्वच्छ प्रशासन की भावना होनी चाहिए, जो पंडित नेहरू में थी, तभी हम बाल दिवस के असली मकसद में सफल होंगे।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

-संपादक


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