फैसला सही नहीं…हमारी जिंदगी हैं पहाड़ और जंगल

By: Nov 22nd, 2017 12:05 am

जंगल और पहाड़ ही अब हिमाचल के लिए परेशानी बन रहे हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी हिमाचल को भटका दिया है। पेड़ काटने पर सीधा जुर्माना, अढ़ाई मंजिला से ज्यादा मकान बनाने पर रोक, एनएच के किनारे भवन बनाने पर रोक, ये ऐसे निर्देश हैं, जो की पेशानी पर पसीना ला रहे हैं, यह समझ से परे है, जबकि यहां पर न तो जंगलों की कमी है और न ही दिल्ली की तरह आवोहवा जहरीली है। उल्टा यहां पर जंगलों का लगातार विस्तार हो रहा है, जिसकी वजह से विकास नहीं हो रहा है। अब नए आदेशों से आम आदमी भी परेशान हो गया है। प्रदेश के अग्रणी मीडिया ग्रुप ‘दिव्य हिमाचल’ ने लोगों की राय जानी तो कुछ यूं आया सामने…

एनजीटी का आदेश ठीक नहीं

पूजा अवस्थी का कहना है कि एनजीटी का यह आदेश हिमाचली हितों को देखते हुए ठीक नहीं है। हिमाचल के लोगों के लिए जंगल ही जीवन है, क्योंकि उनकी रोजमर्रा जंगलों पर ही निर्भर है। ऐसे में इन आदेशों के कारण हिमाचली लोगों के जीवन पर विपरीत असर पड़ेगा। पहाड़ी लोगों के गुजर-बसर ही जंगलों पर आधारित है।

उचित भूमि आसानी से नहीं मिलती

सीमा सोनी ने बताया कि हिमाचल की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यहां कम से कम चार मंजिला भवन निर्माण की इजाजत होनी चाहिए। जहां भौगोलिक परिस्थितियां विपरीत हों वहां जरूर प्रतिबंध होना चाहिए। पहाड़ी प्रदेश होने के नाते यहां भवन निर्माण के लिए उचित भूमि आसानी से नहीं मिल पाती ।

विकासात्मक कार्य होंगे प्रभावित

अमिता सोनी का कहना है कि प्रदेश भर में जंगली लकड़ी का कई तरह से ग्रामीण प्रयोग करते हैं। अधिकतर ग्रामीणों का जीवन जंगली लकड़ी के प्रयोग पर ही निर्भर है। ऐसे में लकड़ी काटने पर भारी भरकम जुर्माना लगाना तर्कसंगत नहीं है। इससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर विकासात्मक कार्य भी बुरी तरह से प्रभावित होंगे।

गरीब जनता होगी प्रभावित

नीलम का कहना है कि हिमाचल में पर्यावरण संरक्षण के लिए यह निर्णय उचित है, परंतु इसमें प्रदेश के लोगों के हितों को और अधिक ध्यान देना चाहिए था, क्योंकि इससे सबसे अधिक प्रदेश की गरीब जनता प्रभावित होगी। अधिकांश पहाड़ी क्षेत्रों में सर्दियों में गरीब लोगों का दैनिक जीवन पूरी तरह से जंगलों पर निर्भर रहता है।

लोगों के सपनों पर मंडराए बादल

परवेश ठाकुर ने बताया कि सबसे अधिक परेशानी तो ऐसे लोगों को हो सकती है, जिनके घर या भूमि ही एनएच किनारे है। कई लोग तो ऐसे भी हैं, जिनकी पहले ही काफी भूमि एनएच निर्माण में आ चुकी है और जो थोड़ी बहुत बची है वहां किसी छोटे-मोटे कारोबार की उम्मीद लगाए बैठे लोगों के सपनों पर अब बादल मंडराने लगे हैं।

 


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