बढ़ते कर्ज से बिगड़ता वित्तीय गणित

By: Nov 13th, 2017 12:05 am

हेमराज कपूर

लेखक, चंबा से हैं

प्रदेश द्वारा लिए जाने वाले ऋण का आंकड़ा 45 हजार करोड़ की सीमा तक पहुंच चुका है। इस बढ़ते ऋण भार का मुख्य कारण बढ़ता गैर योजनागत व्यय है, जबकि योजनागत व्यय कम हो रहा है। योजनागत व गैर योजनागत व्यय में बढ़ते असंतुलन के कारण प्रदेश की अर्थव्यवस्था के समक्ष नित नई चुनौतियां पैदा हो रही हैं…

हिमाचल प्रदेश एक पर्वतीय प्रदेश है। विभिन्न भौगोलिक जटिलताओं के कारण प्रदेश की अर्थव्यवस्था कृषि, बागबानी, लघु व कुटीर उद्योगों के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रही है। पर्यटन और सेब अर्थव्यवस्था प्रदेश की आर्थिकी को संबल प्रदान करती रही है। हिमाचल प्रदेश ने अपनी स्थापना के बाद से अब तक कमोबेश हर क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास दर्ज किया है। प्रदेश में 1951 में प्रति व्यक्ति आय 240 रुपए थी, जो वर्तमान समय में बढ़कर एक लाख तीस हजार से भी अधिक पहुंच गई है। इसी प्रकार 1951 में प्रदेश में 330 स्कूल थे, जो वर्तमान में जिनकी संख्या बढ़कर 15,636 हो चुकी है। प्रदेश की शिक्षा दर का ग्राफ यदि निरंतर ऊपर की ओर उठा है, तो इसके लिए स्कूलों की प्रदेश के हर कोने में स्थापना भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य व अन्य क्षेत्रों में प्रदेश का प्रदर्शन राष्ट्रीय औसत से भी बेहतर है। इसी कारण हिमाचल प्रदेश ने पर्वतीय राज्यों के लिए एक आदर्श मॉडल प्रस्तुत किया है। चुनावों से पूर्व राहुल गांधी ने भी विकास के इसी हिमाचली मॉडल का जिक्र किया था। अर्थव्यवस्था किसी भी घर-परिवार, प्रदेश व देश का मुख्य व आधारभूत स्तंभ है। इसी के इर्द-गिर्द सभी प्रकार के आर्थिक व गैर आर्थिक क्रियाकलाप घटित होते हैं। किसी भी प्रदेश व देश की वास्तविक शक्ति उसकी अर्थव्यवस्था होती है। जिसकी अर्थव्यवस्था जितनी सुदृढ़ व सशक्त होगी, वह प्रदेश व देश उतना ही सशक्त होगा। दुर्भाग्यवश तमाम आर्थिक पैमानों पर बेहतर स्थिति के बावजूद प्रदेश पर कर्ज का बढ़ता भार गहन चिंता का विषय होना चाहिए। प्रदेश की अर्थव्यवस्था निरंतर ऋण के जाल में जकड़ती जा रही है। ऋण जाल का यह आंकड़ा 45 हजार करोड़ रुपए की सीमा पार कर गया है। इस बढ़ते ऋण भार का मुख्य कारण बढ़ता गैर योजनागत व्यय है, जबकि योजनागत व्यय कम हो रहे हैं। इस प्रकार योजनागत व गैर योजनागत व्यय में बढ़ते असंतुलन के कारण प्रदेश की अर्थव्यवस्था के समक्ष नित नई चुनौतियां पैदा हो रही हैं। कहना न होगा कि इसके कारण प्रदेश वित्तीय अस्थिरता की ओर अग्रसर हो रहा है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि राज्य में वर्ष 2011-12 के दौरान प्रति व्यक्ति ऋण जो 40,904 रुपए था, वह वर्ष 2015-16 में बढ़कर 57,642 रुपए हो गया है। यानी पांच साल में प्रति व्यक्ति ऋण में 41 फीसदी की भारी-भरकम बढ़ोतरी हुई है।

राज्य सरकार को सात साल के भीतर 62 फीसदी ऋण का भुगतान करना होगा। यह राज्य के लिए आरामदायक स्थिति नहीं है। इस वर्ष जुलाई से सितंबर माह तक कर्ज लेने का आंकड़ा 2,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। जुलाई माह में 500 करोड़, अगस्त माह में 800 करोड़ और सितंबर माह में 700 करोड़ रुपए का ऋण सरकार की तरफ से लिया गया। चार फीसदी डीए और आईआर देने की घोषणा से सरकार का वित्तीय गणित गड़बड़ा गया है। इस 700 करोड़ रुपए के ऋण लेने की राशि को जोड़ दिया जाए, तो मौजूदा वित्तीय वर्ष के दौरान 3500 करोड़ रुपए का ऋण सरकार ने ले लिया है। हिमाचल प्रदेश पर अब तक करीब 45 हजार करोड़ रुपए का कर्ज बढ़ गया है। इसका मुख्य कारण सरकार के आय-व्यय में अंतर होना है। राज्य सरकार ने तीन साल में सात से 13 फीसदी की दर पर फरवरी 2016 तक 1104.44 करोड़ रुपए का कर्ज विभिन्न संस्थाओं से लिया है। राज्य सरकार को बढ़ते ऋण पर नियंत्रण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन व दीर्घकालीन तीन स्तरीय योजनाओं का निर्माण करना चाहिए, ताकि प्रदेश की वर्तमान जरूरतों की पूर्ति के साथ-साथ बढ़ते ऋण भार को भी धीरे-धीरे कम किया जा सके। सर्वप्रथम सरकार को उत्पादक व अनुत्पादक क्षेत्रों का अध्ययन करके घाटे में चल रहे बोर्ड व निगमों का विलय कर इनका संचालन कुशल प्रशासनिक अधिकारियों से करवाना चाहिए, ताकि सरकार में ये उपक्रम घाटे में स्थान पर लाभ प्रदान कर सकें। चुनावी नतीजों के बाद जिस भी दल की सरकार बनती है, उसे लोकलुभावन कार्यों से ऊपर उठकर अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए तत्काल उचित निर्णय लेने होंगे। हम यह भी देखते रहे हैं कि सरकार ने विभागीय व्ययों को कम करने के लिए कभी कारगर प्रयास नहीं किए। हालांकि एक मोबिलाइजेशन कमेटी का गठन किया गया था, जिसने सरकारी व्ययों पर नकेल कसने और सरकारी आमदनी के नए स्रोत खोजने के लिए कार्य करना था। दुखद यह कि यह प्रयास अपेक्षित परिणाम नहीं दे सका और प्रदेश की आर्थिक दशा व दिशा लगातार गड़बड़ाती रही। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि इन बिगड़ते हालात को काबू करना बेहद जरूरी है। इसके लिए नई सरकार से अपेक्षा रहेगी कि वह सत्ता में आने के साथ ही मोबिलाइजेशन कमेटी की कार्यप्रणाली को प्रभावी बनाकर उसके दिए सुझावों पर अमल भी करे। ऋण के बढ़ते बोझ को कम करना बेहद आवश्यक है, क्योंकि बढ़ता ऋण अर्थव्यवस्था की अवनति को इंगित करता है ओर अर्थव्यवस्था की अवनति दुर्गती की और ले जाती है।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय, ई-मेल आईडी तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

-संपादक


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