भारतीय संस्कृति के चारों वेद

By: Nov 11th, 2017 12:05 am

स्वामी रामस्वरूप

ऋग्वेद मंत्र 5/35/1 में कहा कि वही राजा उत्तम होता है, जो वेद-विद्या प्राप्त करके राज्य को वह शिक्षा देने की व्यवस्था करे। आज वेदों के ऐसे-ऐसे वाक कोई नहीं जानता, जिस कारण भारतवर्ष की दुर्दशा किसी से नहीं छिपी। क्योंकि जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी भारतवर्ष आई और धीरे-धीरे उसने सब जगह अपने पैर पसार लिए तथा अपनी बुद्धि से भारतवर्ष को गुलाम बना लिया…

गतांक से आगे…

प्रधानमंत्री चाणक्य का निवास स्थान बता सकेंगे। उत्तर मिला कि आप मेरे पीछे-पीछे आ जाइए। ह्यून सांग उनके पीछे हो लिए। जब चाणक्य ने जंगल के अंदर प्रवेश किया तो ह्यून सांग डर गए कि कहीं यह व्यक्ति मुझे लूटने के लिए तो नहीं ले जा रहा? परंतु फिर सोचा कि जहां चाणक्य जैसे प्रधानमंत्री का राज्य है, वहां तो चोर-लुटेरे हैं ही नहीं और इस प्रकार ह्यून सांग निडर होकर चाणक्य के पीछे-पीछे चला। ह्यून सांग ने आगे जाकर देखा कि एक झोपड़ी बनी हुई है। उसकी छत पर अग्निहोत्र करने की समिधाएं रखी हुई हैं। प्रातःकाल के लिए हुए अग्निहोत्र का सुगंधित धुआं वेदी से निकल रहा है। अचानक गगरी लिए हुए व्यक्ति ने झोंपड़ी में प्रवेश किया। गगरी नीचे रखी और जमीन पर बिछे  अपने आसन पर बैठ गया। उनके सामने ही दूसरा आसन जमीन पर बिछा हुआ था। उस आसन पर ह्यून सांग को बैठने का इशारा किया। ह्यून सांग आसन पर बैठ गया। तब उस व्यक्ति ने ह्यून सांग को बैठने का इशारा किया। ह्यून सांग आसन पर बैठ गया। तब उस व्यक्ति ने ह्यून सांग से पूछा कि बोलिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं? उत्तर में ह्यून सांग ने कहा कि वह भारतवर्ष के प्रधानमंत्री चाणक्य से मिलना चाहता है। वह व्यक्ति बोला मैं ही भारत का प्रधानमंत्री चाणक्य हूं। ह्यून सांग आश्चर्यचकित हो गए और बोले आप इस छोटी सी झोंपड़ी में रहते हैं। चाणक्य बोले मैं इस छोटी सी झोपड़ी में रहता हूं और भारतवर्ष के राजा चंद्रगुप्त मौर्य महलों में रहते हैं। यदि आपने उनसे मिलना है, तो वहां मिल सकते हैं। ऐसा आदर्श आज पृथ्वी पर कहीं भी नहीं देखा जा सकता। चाणक्य वेदों के महान पंडित थे। ऋग्वेद मंत्र 5/35/1 में कहा कि वही राजा उत्तम होता है, जो वेद-विद्या प्राप्त करके राज्य को वह शिक्षा देने की व्यवस्था करे। आज वेदों के ऐसे-ऐसे वाक कोई नहीं जानता, जिस कारण भारतवर्ष की दुर्दशा किसी से नहीं छिपी। क्योंकि जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी भारतवर्ष आई और धीरे-धीरे उसने सब जगह अपने पैर पसार लिए तथा अपनी बुद्धि से भारतवर्ष को गुलाम बना लिया।  उसी प्रकार ईश्वर ने सृष्टि रची, ईश्वर सृष्टि का राजा है और ईश्वर ने सृष्टि का संविधान वेद बनाया परंतु ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह मनुष्य भी इस धरती पर आया और उसने ईश्वर की धरती को अपने कब्जे में लेकर इस पर अपने मनमाने तथाकथित धर्म के मार्ग बना दिए और अब मनुष्य पृथ्वी पर राज्य कर रहा है, ईश्वर के राज्य को कुछ नहीं समझता। आज भारतवर्ष के नेताओं को भारतीय संस्कृति के विषय में अपनी नीति स्पष्ट करनी चाहिए। यह ध्यान रहे कि भारत भूमि ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों और योगियों की स्थली रही है। इन ऋषियों-मुनियों ने अपना और अपने उपदेशों से संपूर्ण विश्व की जनता का केवल वैदिक संस्कृति का आश्रय लेकर सुखमय जीवन व्यतीत किया। वेद-शास्त्र हमें प्रत्येक बुराइयां और स्वार्थ त्यागकर परोपकार की शिक्षा देते हैं, जो कि पूर्व के ऋषियों और जनता ने जीवन में धारण की। जनता ने लगभग एक अरब 96 करोड़ वर्षों से किसी कारणवश वेद विद्या का सूर्य सा अस्त हो गया। फलस्वरूप राजनेता और प्रजा दोनों ही अविद्या रूपी अंधकार से ग्रस्त होकर दुखी हैं। आज प्रत्येक देश अपने-अपने धर्म और अपनी धार्मिक पुस्तकों के प्रचार के लिए तन, मन, धन से कठोर प्रयत्न कर रहा है और उनके लिए उनका पूजनीय केवल एक ही धर्म ग्रंथ है जैसे, बाइबल, कुरान शरीफ आदि परंतु हमारे देश में हिंदुओं ने इतने मत और उस पर तथाकथित साधु आदि का वेद विरुद्ध प्रचार देश और प्रजा, दोनों के लिए विनाशकारी सिद्ध हो रहा है। सरकार को अनादि एवं सनातन वेद पद्धति को पाठशालाओं, विद्यालय, कालेज, यूनिवर्सिटी आदि  से लगाकर बेटे-बेटियों को विद्वान एवं विदूषी बनाना चाहिए।


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