भारतीय संस्कृति
स्वामी रामस्वरूप
ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 129 में स्पष्ट किया है कि केवल एक निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक सृष्टि रचयिता परमेश्वर ही इस संपूर्ण पृथ्वी का स्वामी है और उसने मनुष्य जाति के उद्धार के लिए वेद-विद्या का दान किया है। यह विद्या मनुष्यों में पिछले लगभग एक अरब 96 करोड़ वर्षों तक रही और राजा एवं प्रजा दोनों ही वेद-विद्या को धारण करके सुखी रहे…
वेद -विरोधी मार्ग फलने-फूलने लगे जिसमें अज्ञान, अविद्या, अंधविश्वास आदि अनेक बुराइयों का बोलबाला हुआ और वेद विरोधी संतों ने जनता को लूटना प्रारंभ किया, नारी जाति पर आघात हुआ। चोर, डाकू, लुटेरे मुंह उठाने लगे इत्यादि न जाने कितनी बुराइयों ने जन्म लिया, जिसका प्रभाव आज भी है और दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। जिस कारण मिथ्यावादी संतों आदि द्वारा जनता लूट रही है और दुखी है। महाभारत के वन-पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर से यक्ष में प्रश्न किया,‘कः पन्थाः’ जीवन पथ क्या है? अर्थात मनुष्य सुख-शांति, धन-संपदा आदि प्राप्त करने के लिए किस मार्ग पर चले? उत्तर में युधिष्ठिर ने कहा जिस मार्ग से महापुरुष जाते रहे हैं, वही मार्ग श्रेष्ठ है। युधिष्ठिर से यह प्रश्न लगभग सवा पांच हजार वर्ष पहले किया था, जब आज के मत-मतांतर अथवा संत-मत आदि नहीं बने थे। उस समय राजा एवं प्रजा में केवल वेद विद्या ही आचरण में थी। अतः युधिष्ठिर का कहने भाव था कि उस समय के महापुरुष वेद मार्ग पर ही चलते थे। यहां गहन विचार यह करना है कि राजा युधिष्ठिर यह उत्तर दे रहे हैं कि सभी मनुष्यों को वेद मार्ग पर ही चलना चाहिए, वेद की शिक्षा को ही जीवन में धारण करना चाहिए। अतः वर्तमान के तथाकथित संत आदि जो इस वाक्य का यह अर्थ लगाते हैं कि वे (तथाकथित संत) महापुरुष हैं और उनके बताए मार्ग पर ही तो ये स्वार्थपूर्ण असत्य भाषण है और महाभारत के रचयिता व्यासमुनि जी का अनादर है। वैसे भी ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 129 में स्पष्ट किया है कि केवल एक निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक सृष्टि रचयिता परमेश्वर ही इस संपूर्ण पृथ्वी का स्वामी है और उसने मनुष्य जाति के उद्धार के लिए वेद-विद्या का दान किया है। यह विद्या मनुष्यों में पिछले लगभग एक अरब 96 करोड़ वर्षों तक रही और राजा एवं प्रजा दोनों ही वेद-विद्या को धारण करके सुखी रहे। धर्मराज युधिष्ठिर एवं उसके शेष चारों भाई भी स्वयं वेद एवं योग विद्या के ज्ञाता थे। फलस्वरूप ही वे सब केवल धर्म का आचरण करते थे। आज भारतवर्ष के नेता एवं लगभग संपूर्ण जनता इस कटु सत्य को भूल गई है कि भारत वेद विद्या के कारण ही ऋषियों-मुनियों की स्थली, विश्वगुरु एवं सोने की चिडि़या कहलाया था। श्रीराम के पिता राजा दशरथ के राज्य का वर्णन करते हुए भी ऋषि वाल्मीकि जी ने कहा है कि राजा दशरथ चारों वेदों के ज्ञाता थे। उनके राज्य में कोई गरीब नहीं था और कामी, क्रोधी, लालची भी नहीं था। कोई घर ऐसा नहीं था, जिसमें अग्निहोत्र न होता हो। वेद-विद्या को आचरण में लाने का प्रभाव ही था कि चाणक्य जैसे विद्वान ने भारतवर्ष को वैदिक शिक्षा-दीक्षा दी और स्वयं भी भारतवर्ष के प्रधानमंत्री बने। वेद विद्या के अभाव में आज उन जैसा धार्मिक राजनीतिज्ञ, प्रजा का रक्षक, वेदों का ज्ञाता प्रधानमंत्री सुलभ नहीं हुआ। इतिहास गवाह है कि एक बार चीन का राजदूत ह्यून सांग भारतवर्ष में आए और वह चाणक्य से मिलने के लिए उन्हें खोजते-खोजते एक नदी के किनारे पहुंचे। ह्यून सांग ने देखा कि एक मनुष्य ने अपनी धोती धोई,सूखने डाल दी, फिर उसने नदी में स्नान किया। तब तक उनकी धोती सूख गई जिसे उन्होंने शरीर पर धारण किया और गगरी में जल भर कर, कंधे पर रखकर अपने मार्ग पर आ गए। तब ह्यून सांग ने उस व्यक्ति से पूछा कि क्या।
अनमोल वचन
* वज्र पर्वत से बहुत छोटा है, लेकिन वज्र के प्रभाव से बड़े से बड़े पर्वत भी चकनाचूर हो जाते हैं।
* जिसने अपनी इच्छाओं पर काबू पा लिया, उस मनुष्य ने जीवन के दुःखों पर काबू पा लिया ।
* संकट के समय में धैर्य धारण करना मानो आधी लड़ाई जीत लेना है।
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