भारत का इतिहास

By: Nov 22nd, 2017 12:02 am

समितियों में मुस्लिम लीग की जगह

गतांक से आगे-

मंत्रिमंडल मिशन के पैरा 15 (1) में केंद्रीय सरकार को सौंपे जाने वाले विषयों की व्याप्ति के बारे में रिपोर्ट देने के लिए भी सभा ने एक समिति नियुक्त की। इन विभिन्न समितियों का निर्माण करते समय सभा ने मुस्लिम लीग तथा देशी रियासतों के प्रतिनिधियों के उपयुक्त संख्या में सम्मिलित हो सकने के लिए रिक्त स्थान छोड़ दिए थे। सभा का दूसरा अधिवेशन 25 जनवरी, 1947 को सामप्त हुआ तथा सभा ने अप्रैल में अध्यक्ष द्वारा निर्दिष्ट दिनों को बैठक का निश्चय किया। इसी बीच, ब्रिटिश सरकार ने 20 फरवरी, 1947 के अपने वक्तव्य में खेदपूर्वक कहा कि भारत के राजनीतिक दलों में अब भी मतभेद थे, जिनके कारण संविधान सभा मूल इरादे के अनुसार कार्य नहीं कर रही थी। वक्तव्य में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि अनिश्चय की यह स्थिति खतरनाक है और ब्रिटिश सरकार उसे अनिश्चितकाल तक जारी रखने के पक्ष में नहीं है। ब्रिटिश सरकार ने अपने इस इरादे को भी प्रकट किया कि वह अधिक से अधिक जून 1948 तक उत्तरदायी भारतीय नेताओं के हाथों में सत्ता सौंपने के लिए आवश्यक कार्यवाही करेगी। उसी दिन एक अन्य वक्तव्य के द्वारा ब्रिटिश सरकार ने युद्धकालीन वायसराय  लॉर्ड वैवेल की पदमुक्ति तथा उनके स्थान पर लॉर्ड माउंटबेटेन की नियुक्ति की घोषणा की। लॉर्ड माउंटबेटेन को भारतीय नेताओं को सत्ता हस्तांतरित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

तीसरा अधिवेशन : समितियों के प्रतिवेदन

संविधान सभा का तीसरा अधिवेशन 28 अप्रैल से 2 मई, 1947 तक हुआ। इस समय तक यह बात बिलकुल साफ हो गई थी कि मुस्लिम लीग संविधान सभा के कार्य में भाग नहीं लेगी। इसी भाषण के दौरान डा. राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि ब्रिटिश सरकार के इस इरादे की घोषणा से कि वह जून, 1948 तक भारतीयों के हाथों में सत्ता सौंप देगी,  संविधान सभा के काम की गुरुता बढ़ गई और अब उसे जितनी शीघ्र हो सके, व्यवस्थित रूप से संविधान-निर्माण के कार्य में लग जाना चाहिए। उन्होंने देशी रियासतों के उन सोलह प्रतिनिधियों का भी हार्दिक स्वागत किया, जो पहली बार सदन में उपस्थित हुए थे। उसी दिन पंडित नेहरू ने राज्य समिति का प्रतिवेदन उपस्थित किया, जिसमें बताया गया था कि संविधान सभा में देशी रियासतों को कितने स्थान प्राप्त होंगे और उनके प्रतिनिधि किस प्रकार चुने जाएंगे। गोपालस्वामी आयंगर ने संघ विषय समिति का प्रतिवेदन प्रस्तुत करते समय सदन से यह अनुमति मांगी कि देश में जो विभिन्न राजनीतिक निर्णय होने वाले हैं, उन्हें ध्यान में रखते हुए यदि आवश्यक हो, तो समिति एक और प्रतिवेदन प्रस्तुत करे। सभा ने यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया और उसने प्रतिवेदन पर विचार अगले अधिवेशन तक के लिए स्थगित कर दिया।


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