भारत का इतिहास

By: Nov 29th, 2017 12:05 am

संविधान सभा में मुस्लिम लीग नहीं

गतांक से आगे-

29 अप्रैल, 1947 को सरदार वल्लाभभाई पटेल ने मूल अधिकारों के संबंध में परामर्श समिति का अंतरिम प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। शेष अधिवेशन में इस प्रतिवेदन पर विचार हुआ। सामान्य चर्चा के बाद मूल अधिकारों पर धारावार विचार हुआ जो अधिवेशन के अंतिम दिन अर्थात 2 मई, 1947 तक जारी रहा। सभा ने अंतिरम प्रतिवेदन की कुछ धाराओं में संशोधन स्वीकार कर लिए और कुछ धाराओं को परामर्श समिति के पास दोबारा विचार के लिए भेज दिया। तीसरे अंधिवेशन के दौरान 30 अप्रैल,  1947 को केएम मुंशी ने कार्यक्रम समिति का प्रतिवेदन उपस्थित किया। समिति का कहना था कि चूंकि देश में राजनीतिक परिवर्तनों का चक्र तेजी से घूम रहा था और इन परिवर्तनों का सभा के कार्यक्रम पर भी प्रभाव पड़ना अवश्यंभावी था। अतः समिति अंतिम प्रतिवेदन प्रस्तुत करने की स्थिति में नहीं थी। अन्य बातों के साथ-साथ समिति ने यह भी सिफारिश की कि दो पृथक समितियों की स्थापना की जाए, जिनमें से एक संघ संविधान के मुख्य सिद्धांतों के बारे में प्रतिवेदन दे और दूसरी आदर्श प्रांतीय संविधान के मुख्य सिद्धांतों के बारे में।  सभा ने यह सुझाव स्वीकार कर लिया। 2 मई,1947 को सभा ने अध्यक्ष द्वारा निर्दिष्ट की जाने वाली तारीख तक के लिए स्थगित होना स्वीकार कर लिया। अध्यक्ष ने वचन दिया कि जैसे ही सदस्यों को सभा की बैठक के लिए सामग्री उपलब्ध होगी, वैसे ही वह सभा की बैठक बुला लेंगे। लॉर्ड माउंटबेटेन मार्च, 1947 के अंत में भारत आए और उन्होंने यहां आते ही भारत के  विभिन्न समुदायों तथा हितों के नेताओं तथा प्रतिनिधियों से बातचीत शुरू कर दी, लेकिन उन्हें लगा कि मंत्रिमंडल मिशन की योजना अथवा  ऐसी किसी योजना के बारे में सहमति पाना असंभव है जिससे भारत की एकता की रक्षा हो सके। मुस्लिम लीग संविधान सभा में भाग लेने के लिए तैयार नहीं हुई और देश के विभिन्न भागों में हिंसात्मक उपद्रवों का सिलसिला शुरू हो गया। इस स्थिति में समस्त भारत के लिए  स्वीकार्य एक संविधान की आशा मिट्टी में मिल गई। फलतः ब्रिटिश सरकार ने एकता अथवा विभाजन के प्रश्न पर भारत के लोगों की राय जानने का निश्चय किया और 3 जून,1947 को जारी किए गए एक वक्तव्य में अपनी योजना की घोषणा कर दी। इस योजना के अनुसार वर्तमान संविधान सभा अथवा नई संविधान सभा अपने- अपने क्षेत्रों के लिए संविधानों का निर्माण कर सकती थीं और उन्हें अपने नियमों का निर्माण करने की आजादी थी। इस वक्तव्य में ब्रिटिश सरकार ने यह भी कहा कि वह जून, 1948 से पहले ही भारतीयों के हाथों में सत्ता सौंप देनी चाहती है।


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