मन की पीड़ा है ‘उस छांव तले’ में

By: Nov 12th, 2017 12:05 am

पुस्तक समीक्षा

किताब का नाम : उस छांव तले

कवयित्री : सुशील गौतम

पेज संख्या : 112

प्रकाशक : अमृत प्रकाशन, दिल्ली-32

मूल्य : 250 रुपए

प्रकाशन वर्ष : 2017

कवयित्री सुशील गौतम का नवीनतम काव्य संग्रह ‘उस छांव तले’ छपकर आया है। यह सुशील का तीसरा काव्य संग्रह है। सुशील गौतम की कविताओं का मूल स्वर नारी पीड़ा से भरा है। इन कविताओं में अश्क, चांदनी, सूरज, इंद्रधनुष जैसे शब्दों का प्रयोग कई बार होता है। मूलतः भारतीय नारी का जीवन शोषण-दमन तथा प्रताड़ना से ही भरा हुआ लगता है। अभी भी कई असंख्य ऐसी नारियां हैं जो आर्थिक स्तर पर कमजोर हैं तथा पुरुष पर निर्भर हैं। ऐसी नारियों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। सुशील जीवन की कठिनाइयों को झेलती नारी का चित्रण करती हैं। ‘उस छांव तले’ काव्य संग्रह में कुल 86 कविताएं हैं। बहुधा कविताओं का स्वर पीड़ा-टूटन से भरा हुआ है। लेकिन फिर भी नयनों में सपने भरे हैं, जो नारी को आगे बढ़ने को प्रेरित करते हैं। ‘तुम दिखते हो’ शीर्षक वाली कविता में कवयित्री अपनेपन का एहसास पाकर किसी दूसरे के लिए अपनी भावनाओं को यूं प्रकट करती हैं :

तुम दिखते हो आकाश जैसे

उड़ती हूं, ऊंची उड़ान

अंतरिक्ष को छूने जैसी।

इस उपभोक्तावादी संस्कृति में जीते रहते लोगों को जीवन की कटु सच्चाइयों से अवगत करवाती कवयित्री कहती है, सच्ची दौलत तो मन की शांति है, मन का सुकून है। देखिए ‘कुछ पल मिल जाएं’ नामक कविता की पंक्तियों को :

न धन, न दौलत

कुछ नहीं चाहा मन ने

कुछ पल मिल जाएं

बस सुकून चाहा है, मन ने।

इनसान के जीवन में, इस भागमभाग भरी दुनिया में, एक अंधी दौड़ लगी है। उसे चैन नहीं है एक पल भी। उसके जीवन में टूटन, पीड़ा, उदासी भी भरने लगी है। इसी कटुता भरे, दर्द से परिपूर्ण जीवन को जीते मानव की पीड़ा को स्वर दिया है :

क्यों लिखूं ऐसा

तुम चाहते हो जैसा

जैसा अनुभव है जिंदगी का

वैसा ही लिखूंगी।

वहीं कवयित्री प्रेम की परिभाषा को बताते हुए निश्चल, सच्चे प्रेम का बखान करती कहती है। इस कविता को देखें :

प्रेम स्पर्श नहीं

कपट नहीं, छिछला नहीं

प्रेम बस दोष रहित

पवित्र-पावन, उत्कृष्ट सोने सा है।

इस पुस्तक की शीर्षक कविता ‘उस छांव तले’ नामक कविता में कवयित्री कहती है, जीवन निरा मरुस्थल समान तपा सा था, किसी की चाहत भरी मां समान गोद न होने पर, मन उस छांव तले जाकर बैठता तो लगता था, मां की गोद में बैठा है। निम्नलिखित पंक्तियों में यही भाव हैं :

धूप थी चारों ओर

दिखी वो छांव दूर से

कदम बढ़ते गए।

इस संग्रह को पढ़ते हुए कुछ कविताएं ऐसी भी हैं, जो देर तक स्मृति में बनी रहती हैं, उनमें कुछ यह हैं : ऐ मन तू रोता क्यों है, तुम दिखते हो, हो न जाए बदरंग, भागती रही जिंदगी, जिंदगी की किताब, आवरण, मन की आभा, यादें रहती आसपास।

-नरेश कुमार उदास, जम्मू


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