मां स्वस्थानी जी मंदिर
हिंदू धर्म में अनेक व्रतों के बारे में विस्तार से बताया गया है और भक्त पूरी श्रद्धा के साथ इनका पालन करते हैं। ऐसी ही विश्वास और आस्था की मूर्ति है माता श्री स्वस्थानी। माता सती के शरीर त्यागने के बाद उन्होंने गिरिराज हिमालय के यहां जन्म लिया। वे महादेव को बाल्यकाल से पूजती थीं और रेत का शिवलिंग बनाकर खेलती रहती थीं। जब उनके विवाह की बात चली तो माता पार्वती घर छोड़ कर तपस्या करने चली गइर्ं। माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें दर्शन दिए और उनके मन की बात जाननी चाही और उपदेश दिया कि यदि तुम मुझे पति रूप में पाना चाहती हो, तो इसका उपाय स्वयं भगवान विष्णु ही बता सकते हैं। तब माता पार्वती ने भगवान विष्णु की आराधना आरंभ कर दी। पार्वती की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने माता पार्वती को दर्शन दिए और बोले हे पार्वती! मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं मांगो, क्या मांगना चाहती हो। तब पार्वती ने कहा कि हे प्रभु! आप जानते हैं कि मैं महादेव जी को पति रूप में पूजती हूं। अतः मुझे ऐसा उपाय बताएं जिससे मैं महादेव को पति रूप में पा सकती हूं। तब भगवान विष्णु ने कहा हे पार्वती! आज मैं तुम्हें एक एक ऐसे व्रत के बारे में बताऊंगा, जो इस संसार में सब व्रतों से उत्तम है। इस व्रत को करने से मनुष्य को इतना फल मिलता है कि वो इस लोक में ही उसका सुख नहीं भोगता अपितु मृत्यु के बाद भी शिवलोक में स्थान ग्रहण करता है। यह व्रत श्रीस्वस्थानी माता जी का व्रत है। माता का यह मंदिर चिंतपूर्णी और ज्वालामुखी से 20 किलोमीटर दूरी पर रक्कड़ में स्थित है।
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