मेहमान परिंदों से गुलजार रामसर वैटलैंड

By: Nov 27th, 2017 12:05 am

बचन सिंह घटवाल

लेखक, मस्सल, कांगड़ा से हैं

हिमाचल प्रदेश में सर्दी के आगमन पर विदेशी प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा होना शुरू हो जाता है और इसका मुख्य केंद्र बनती है जिला कांगड़ा की ब्यास नदी। यह स्थली प्रवासी पक्षियों के लिए बेहद उपयुक्त वातावरण संग पक्षियों को मनवांछित भोजन उपलब्ध करवाने के लिए भी प्रसिद्ध रही है…

पक्षियों की दुनिया भी बड़ी अद्भुत व रंगों से सराबोर होती है। पक्षी अपने रिहायशी ठिकानों को जरूरत के अनुसार या यूं कह लीजिए कि वाह्य परिस्थितियों के प्रभाव में बदलते रहते हैं। पक्षियों का प्रवासन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसमें पक्षी उदरपूर्ति व प्रजनन हेतु उपयुक्त स्थलों की खोज में हजारों किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। जब इलाके विशेष की परिस्थितियां उनके भरण-पोषण व वंशावली बढ़ाने में बाधक होती हैं, तब वे अपने अनुकूल स्थलों की तरफ उड़ान भरते हैं। यह भी देखा गया है कि पक्षी अपने आश्रय स्थलों को इसलिए भी बदलने पर मजबूर हो जाते हैं, जब उन्हें लगता है कि उनके रहने के स्थानों पर मानवीय छेड़छाड़ बढ़ गई है। जब उनके प्राकृतिक रिहायशी स्थलों के आसपास खेती व चरागाहों के रूप में प्रयुक्त करना शुरू कर दिया जाता है, तो इसका प्रभाव उनके प्रवासन पर अवश्य पड़ता है। हिमाचल प्रदेश में भी सर्दी के आगमन पर विदेशी प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा होना शुरू हो जाता है और इसका मुख्य केंद्र बनती है जिला कांगड़ा की ब्यास नदी।  वर्ष 2002 में घोषित इंटरनेशनल रामसर वैटलैंड पौंग झील को दुनिया का सबसे सुंदर तथा शुद्ध वातावरण वाला वैटलैंड माना गया। यह स्थली प्रवासी पक्षियों के लिए बेहद उपयुक्त वातावरण संग पक्षियों को मनवांछित भोजन उपलब्ध करवाने के लिए भी प्रसिद्ध रही है। प्रवासी पक्षियों में जिन पक्षियों के आने का क्रम जारी रहता है, उनमें मुख्यतः वार हैडिड गीज, नार्दर्न पिटेंल, कॉमन टील, कॉमन पौचार्ड, कूटस, टफ्ड पौचार्ड, ग्रेट कारमोंनेट, रूडी, शेल्डक व पूराशियन वेग्योन की प्रजातियां शामिल हैं। ये प्रवासी पक्षी मुख्यतः तिब्बत, मध्य एशिया, रूस और साइबेरिया से अपना सफर तय करते हुए झील को अपने बसेरे हेतु उपयुक्त पाते हैं। यह भी देखा गया है कि सर्दी की अधिकता पक्षियों की आमद पर अनुकूल प्रभाव डालती है और पक्षियों की अधिकता इसी पर निर्भर करती है। प्रदेश में हर वर्ष पड़ने वाली ठंड का कम या ज्यादा होना उनके आगमन की प्रतिशतता पर प्रभाव डालता है। गत वर्ष प्रवासी पक्षियों की करीब 97 प्रजातियों के लगभग एक लाख तीस हजार पक्षी इस झील में उतरे। वहीं, अगर हम वर्ष 2012-13 व 2013-14 में पक्षियों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि वर्ष 2012-13 में प्रवासी पक्षियों की 113 प्रजातियों के लगभग एक लाख 23 हजार पक्षी इस वैटलैंड पर आए। वर्ष 2013-14 में करीब 119 प्रजातियों के लगभग एक लाख 28 हजार पक्षी पौंग झील में आए। पिछले वर्ष प्रवासी पक्षियों के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं, तो पता चलता है कि पक्षियों की प्रजातियों में गिरावट आई है, जबकि पक्षियों की कुल संख्या में थोड़ा बहुत उतार-चढ़ाव प्रदर्शित हुआ है, जिसके मुख्य कारण प्राकृतिक व मानवीय हैं। वैटलैंड के आसपास खेती करना व अनुकूल परिस्थितियों का न होना पक्षियों की आमद पर गहरा प्रभाव डालता है। इसके अलावा प्राकृतिक परिस्थितियों में आया बदलाव भी इसे प्रभावित कर रहा है।

इस वर्ष प्रवासी पक्षियों के आने का सिलसिला शीत ऋतु के आगमन  संग ही शुरू हो गया था। अब तक इस वैटलैंड में करीब 15 प्रजातियों के लगभग 15,000 से अधिक पक्षी झील में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके हैं। पक्षियों के आगमन का क्रम दिसंबर माह तक इनकी संख्या तथा प्रजातियों के आंकड़ों में वृद्धि प्रदर्शित करेगा। पक्षियों का आगमन बड़ी तीव्रता से इस वैटलैंड को उनके कलरव से गुंजायमान कर रहा है। अभी तक इस झील में सबसे अधिक वार हैडिड गीज पक्षी पहुंचे हैं। इसके अलावा नार्दर्न शावलर, पिरेल, कॉमन पौचार्ड, कॉमन टिल, टफ्रेड डक व नार्दर्न पिंटेल के अलावा कुछ अन्य प्रजातियां भी झील में दृष्टिगत हो रही हैं। पौंग झील में बढ़ते पर्यटन के अवसरों में काफी परिवर्तन आया है। वन्य विभाग की टीमें पक्षियों की सुरक्षा व उनके बेहतर प्रवास हेतु प्रयत्नों में क्रियाशील नजर आती हैं। वहीं वैटलैंड के चारों तरफ पेड़ों की अधिकता व सघनता इस झील के सौंदर्य में चार चांद लगा देती है। पक्षियों की कलरव से गूंजता इस झील का सौंदर्य पर्यटकों की भारी संख्या को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। प्रवासी पक्षियों के प्राकृतिक परिवेश को भी संजोने का क्रम जारी है, जिससे पक्षी प्रकृति के सुंदर परिवेश में अपना प्रवास समय आनंदमय व्यतीत कर सकें। प्रदेश के लिए यह सुखद अनुभव व प्राकृतिक संतुलन का आभास करवाता है, वहीं वैटलैंड के आसपास बसे गांव के लोग प्रवासी पक्षियों के आगमन पर हर्षित व आनंदित होते हैं। इसमें संदेह नहीं कि पक्षी बहुत अच्छे से दिशाओं का अंदाजा लगा लेते हैं। प्रवासी पक्षियों को रिंग तथा कलरिंग पर इनकी पहचान को चिन्हित कर पक्षियों के पुनः आगमन को पुख्ता किया जाता है। वर्ष के अंतराल के बाद चिन्हित पक्षियों का पुनः आगमन उनके दिशा ज्ञान को भी पुख्ता करता है। पक्षी मीलों दूर यात्रा करने पर भी अपनी अमुक दिशा से नहीं भटकते और गंतव्य स्थल को हमेशा स्मरण रखते हैं। उनकी यह अनोखी दक्षता उन्हें  स्वाभाविक रूप से प्राप्त है। पक्षियों के इंतजार में पक्षी प्रेमी उनके आगमन पर गदगद हो जाते हैं। जागरूकता की वजह से आज पक्षियों को हानि पहुंचाने की व्यक्ति कम ही सोचता है। वैसे भी वन्य विभाग की मुस्तैद टीमों का भय शिकारियों को नजदीक भी फटकने नहीं देता। इसमें संदेह नहीं कि पक्षी हमारी झीलों की स्वच्छता और सौम्यता को भव्य बनाते हैं। वास्तव में प्रकृति के इस अनूठे सौंदर्य का रसपान व्यक्ति को आत्म तृप्ति व प्रकृति प्रेमी होने का एहसास दिलाता है।

 


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