राजनीतिक बाजार की रौनक

By: Nov 6th, 2017 12:02 am

कुलदीप चंदेल

लेखक, बिलासपुर से हैं

सत्ता होगी उनकी, जिनकी पूंजी होगी, जिनके नकली चेहरे होंगे, केवल उन्हें महत्त्व मिलेगा। राजशक्तियां लोलुप्त होंगी, जनता उनसे पीडि़त होकर गहन गुफाओं में छिप-छिप कर दिन काटेगी। ये गहरी गुफाएं प्रतीक हैं, आज की राजनीति में जनता के कुंठित अंतःमन की। टूटे सपनों की ओर आहत होती भावनाओं-विश्वासों की…

बहुत साल पहले एक नज्म पढ़ी थी। उस नज्म का मुखड़ा कुछ ऐसा था, यह बाजार है, बोलो क्या खरीदोगे? अहद, पैमां, कहकहे, नगमे, हसीं जिस्म, मरमरी बाहें,सिसकियां या आहें, बोलो क्या खरीदोगे? शायर ने बाजार यानी रैड लाइट एरिया की तस्वीर खींचते हुए कहा था, यहां हर चीज बिकती है, बोलो क्या खरीदोगे? इसी तरह इन दिनों हिमाचल प्रदेश की राजनीति का बाजार भी सजा हुआ है। यहां भी सब कुछ बिक रहा है। हसीन वादे, कातिल इरादे, ठहाके, कुटिल चालें। राजनीति के बजार में क्या नहीं बिकता? यह तो शुरू से होता आया है। प्रदेश में किसी का टिकट कटा या किसी के विश्वास का खून बहा, भावनाएं आहत हुईं, सरोकार पीछे छूटे। नेताओें, कार्यकर्ताओं के आंसू या ठहाके राजनीति के बाजार में बिके या फिर दुर्योधन की तरह कोई मैदान में डटा। किसी कैकेयी ने भरत को राजतिलक देने के लिए दशरथ से लिए हुए वचन मांगे, राम का वनगमन हुआ, रावण का अट्टहास सुनाई दिया। लंका उजड़ी, अयोध्या में दशरथ की सोच की अर्थी उठी। ये कुछ प्रश्न हैं जो राजनीति के बाजार में हमेशा सजते हैं, सजते रहेंगे, क्योंकि यही तो राजनीति है। कलियुग की राजनीति। यहां राजा चक्रवर्ती सम्राट बनने के लिए प्रजा की भावनाओं और सपनों की राजनीति के कर्मकांड में आहुति देने के बाद भी अपने को प्रधान सेवक कहलाता है।

वह राजा कहलाना पसंद नहीं करता। वह सपने बेचता है। सपनों का सौदागर कहलाता है, बुद्धिजीवियों की महफिलों में। हिमाचल की राजनीति में अपनी पार्टी के टिकट आबंटन के मामले में यह प्रधान सेवक महिलाओं के मामले में मुखर हो उठता है। आधी दुनिया को आगे रखना चाहता है। उसके प्रवचनों की तारीफ भी होती है, जैसे महाभारत में कृष्ण की हुई। कृष्ण को दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिज्ञ भी कहा जाता है। हिमाचल की राजनीति का बाजार भी कुछ ऐसे ही पात्रों से भरा पड़ा है। डाक्टर धर्मवीर भारती के अंधायुग की पंक्तियां आज की राजनीति में सच साबित होती दिख रही हैं-सत्ता होगी उनकी, जिनकी पूंजी होगी, जिनके नकली चेहरे होंगे, केवल उन्हें महत्त्व मिलेगा। राजशक्तियां लोलुप्त होंगी, जनता उनसे पीडि़त होकर गहन गुफाओं में छिप-छिप कर दिन काटेगी। ये गहरी गुफाएं प्रतीक हैं, आज की राजनीति में जनता के कुंठित अंतःमन की। टूटे सपनों की ओर आहत होती भावनाओं-विश्वासों की। भारती ने अंधायुग में कौरव नगरी का शुरू में कुछ इस तरह चित्र चित्रण किया है। टुकड़े-टुकड़े हो बिखर चुकी मर्यादा उसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा है, पांडवों ने कुछ कम, कौरवों ने कुछ ज्यादा…!

आज की राजनीति की मर्यादा भी तो टुकड़ों में बिखर चुकी है। अपराधी दनदनाते घूमते हैं। पुलिस प्रशासन मूक, अंधी, बहरी बना हुआ है। सरकारी भूमि सरेआम माफिया द्वारा कब्जाई जाती है। द्रोपदी का तब भरी सभा में चीर हरण हुआ था, आज भरे बाजार होता है। तब कृष्ण द्रोपदी को रक्षा को आगे आया था, आज सब दुशासन, दुर्योधन, कर्ण, भीष्म युधिष्ठिर बने बैठे हैं। राजनीति का बाजार सजा है, तो ये सब बातें तो इस बाजार से गुजरने वाला सुनेगा और कहेगा। विरोधी पक्ष लाउडस्पीकरों से ऊंची आवाज में ये बातें जनता को याद दिला रहा है। माफिया राज प्रचारित हो रहा है। किसी नेता की दबंगता व गुंडागर्दी को नंगा किया जा रहा है। यही राजनीति के बाजार में बिकता है। जनता जितनी भ्रमित होगी, उतना ही बाजार सजाने वालों को लाभ होगा। पहले भी हुआ है और आगे सजाने वालों को लाभ होगा। पहले भी हुआ है और आगे भी होगा।

व्यापारी लोग लाभ के चक्कर में देश-देशांतर घूम आते हैं। राजनीति के व्यापारी भी शिमला से अर्की और हमीरपुर से सुजानपुर की तरह घूम-घूम कर अपना धंधा चमकाए हुए हैं। कई स्थानों पर नए व्यापारियों ने अपने तंबू गाड़ रखे हैं। पुराने तंबू उखड़ गए हैं। असली तो अभी उखड़ेंगे। नजर रखिए। यहां राजनीति का बाजार सजा हुआ है। यहां के व्यापारी मक्खन की तरह जुबान को मुलायम रखते हैं और व्यवहार में नफासत होती है, लेकिन उनके दिल कसाई की छुरी की तरह तेजधार होते हैं। कब काम तमाम हो जाए, कोई खबर भी नहीं रहती। बेरहमी से राजनीतिक कत्ल करने में माहिर होते हैं ये। क्या कई चुनाव क्षेत्रों में ऐसा हुआ नहीं? हुआ है। होता रहेगा। तटस्थ होकर देखते रहने में मजा आता है। दूसरे शब्दों में कहिए, तो अच्छा लगता है राजनीति का यह अंदाज। क्योंकि जनता भेड़-बकरियां जो है, सब कुछ सहन करती है। अंततः जनता लाचार-बेबस बनकर रह जाती है। राजनीति के बाजार को चकाचौंध देखकर भ्रमित जो होती है जनता। व्यापारी जनता में जितना भरोसा जगा पाएगा, वह उतना सफल होगा। सो दिल खोलकर परोसा जा रहा है। कुल मिलाकर हिमाचल की राजनीति का बाजार भी देश की राजनीति के अन्य बाजारों की ही तरह होगा। इस बाजार में वोटर ग्राहक बन कर घूम रहा है। उसकी जेब चाहे खाली है, लेकिन व्यापारी इस बाजार से वादों और ख्वाबों की जेबें तो भर कर ले ही आएगा।


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