ललितादित्य ने किया जालंधर राज्य पर अधिकार

By: Nov 29th, 2017 12:05 am

कश्मीर के प्रसिद्ध इतिहासकार  कल्हण (12वीं शताब्दी) ने ‘राजतरंगिणी’ में लिखा है कि कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तापीठ ने मध्य प्रदेश के सम्राट यशोवर्मन को परास्त करके  जालंधर राज्य पर अधिकार कर लिया था और राज्य को अपने अधिकारी के आधिपत्य में रखा, लेकिन यह ज्यादा देर तक न चल सका…

पूर्व मध्यकालीन हिमाचल

ह्वेनत्सांग ने जालंधर के नगरधन विहार में चंद्रवर्मा नामक एक विद्वान के पास एक मास तक अध्ययन किया। ह्वेनत्सांग की जीवनी से पता चलता है कि हर्ष ने उसे सीमांत प्रदेश तक पहुंचने के लिए जालंधर के राजा उदित को उचित आदेश दिए थे। इस प्रकार सातवीं शताब्दी में जालंधर राज्य के ऊपर में चंबा, पूर्व की ओर से मंडी-सुकेत तथा दक्षिण- पूर्व की ओर शतुद्रु आदि क्षेत्र भी शामिल थे। सातवीं शताब्दी में रावी नदी से पूर्व की ओर के राज्य कश्मीर से स्वतंत्र थे और कश्मीर के इतिहास में त्रिगर्त (जालंधर) का एक स्वतंत्र राज्य के रूप में बराबर उल्लेख आया है। त्रिगर्त के अपने इतिहास से प्रकट होता है कि भूतपूर्व त्रिगर्त की पहाड़ी रियासत की छोटी-छोटी रियासतें एक बड़े राजघराने के बंटवारे के कारण अस्तित्व में आईं। हुर्हचु नामक कोरिया का एक यात्री 727ई. में जालंधर आया। उसने लिखा है कि राजा के पास 300 हाथी थे। वे पहाड़ की तराई में बने एक शहर में रहते थे, जहां से उत्तर की ओर पहाडि़यां शुरू होती हैं। इसकी सैनिक शक्ति सीमित थी और मध्य भारत के सम्राटों तथा कश्मीर की ओर ये यदा-कदा आक्रमण होते रहते थे।  इसी कारण राजा पहाडि़यों के निकटवर्ती शहर में रहता था। इस प्रदेश के रीति-रिवाज, वेशभूषा तथा भाषा मध्य भारत से भिन्न न थी। वहां न तो पाला पड़ता था और न ही बर्फ, केवल ठंडी हवा चलती थी। प्रदेश का पश्चिमी भाग समतल था और पूर्वी भाग बर्फीली पहाडि़यों के निकट। वहां कई मंदिर थे, जिसमें भिक्षु रहते थे। महायान और हीनयान दोनों मतों का वहां प्रचलन था। इस यात्री के जालंधर आने के समय यशोवर्मन मध्य भारत अर्थात कन्नौज का राजा और ललितादित्य कश्मीर का राजा था। यात्री ने जो कुछ कहा और लिखा है, उससे सिद्ध होता है कि उत्तरी भारत पर प्रभुत्व जमाने के लिए इन दो शक्तिशाली प्रतियोगी राजाओं के लिए जालंधर झगड़े की बुनियाद था।  परिणामस्वरूप जालंधर के राजा ने पहाडि़यों में शरण ली, जहां वह काफी संकट में पड़ा।  जैसा इस यात्री की टिप्पणी से जाहिर है कि उसके पास केवल 100 घोड़े तथा 300 हाथी थे, जो  निस्संदेह उसकी पहले की सैनिक शक्ति की तुलना में नगण्य थे। कश्मीर के प्रसिद्ध इतिहासकार  कल्हण (12वीं शताब्दी) ने ‘राजतरंगिणी’ में लिखा है कि कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तापीठ ने मध्य प्रदेश के सम्राट यशोवर्मन को परास्त करके  जालंधर राज्य पर अधिकार कर लिया था और राज्य को अपने अधिकारी के आधिपत्य में रखा, लेकिन यह ज्यादा देर तक न चल सका। सन् 809  ई. के एक अभिलेख में जालंधर के नरेश का नाम जयचंद्र लिखा मिलता है, जो वंशावली में जयमाला चंद्र हो सकता है। एक अथवा दो घटनाओं को छोड़कर इस्लाम विजयों से पहले जालंधर कई शताब्दियों तक स्वतंत्र राज्य के रूप में विद्यमान रहा।


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