हिमाचली पुरुषार्थ : आईजीएमसी के आकाश पर सौरभ सरीखा सितारा

By: Nov 29th, 2017 12:07 am

बचपन में लिवर और पित्त की थैली के कैंसर से पीडि़त दादा-दादी को इलाज के लिए जब पीजीआई चंडीगढ़ ले जाया गया, उसी समय दिमाग में यह विचार आया कि इस प्रकार की बीमारियों से पीडि़त लोगों के लिए ये सभी सुविधाएं अपने प्रदेश में भी उपलब्ध होनी चाहिए…

मंजिले उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से ही उड़ान होती है। डा. सौरभ गलोडा की स्कूल की पढ़ाई से एमबीबीएस और फिर गेस्ट्रो सर्जन बनने तक के सफर के लिए बॉलीवुड के मशहूर गीतकार जावेद अख्तर की ये पंक्तियां पूरी तरह से चरितार्थ होती हैं। बचपन में लिवर और पित्त की थैली के कैंसर से पीडि़त दादा-दादी को इलाज के लिए जब पीजीआई चंडीगढ़ ले जाया गया, उसी समय दिमाग में यह विचार आया कि इस प्रकार की बीमारियों से पीडि़त लोगों के लिए ये सभी सुविधाएं अपने प्रदेश में भी उपलब्ध होनी चाहिए। क्योंकि परिवार में माता-पिता भी चिकित्सक हैं, ऐसे में गेस्ट्रो सर्जन बनने तक के सफर में ज्यादा परेशानियां नहीं झेलनी पड़ीं। पिता डा. एनके गलोडा सर्जन, माता डा. सुनीता गलोडा सेवानिवृत्त चिकित्सक, बहन डा. निष्ठा गलोडा एक डेंटल सर्जन और पत्नी डा. शिवानी राव आईजीएमसी में ही कॉडियेलोजिस्ट हैं। पारिवारिक सहयोग के साथ ही पत्नी ने भी आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। सपना एक गेस्ट्रो सर्जन बनने का था, लेकिन यह सौभाग्य है कि मुझे हिमाचल का पहला गेस्ट्रो सर्जन होने का मौका मिला। दिव्य हिमाचल से विशेष बातचीत में यह विचार हिमाचल के पहले गेस्ट्रो सर्जन बने डा. सौरभ गलोडा ने व्यक्त किए। डा. सौरभ गलोडा ने बताया कि पिता को ही आदर्श मानकर इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने का संकल्प लिया। क्योंकि पिता को बीमारियों से पीडि़त लोगों के उपचार के लिए हमेशा परिश्रम करते देखा है। मरीज के उपचार के लिए वह कभी देर नहीं करते थे। उनकी इतनी व्यस्तता के बावजूद मां ने दोनों भाई बहनों की आवश्यकताओं और पढ़ाई के लिए हमेशा उन्हें समय दिया। घर में ही अपने सपनों को पूरा करने के लिए जो आदर्श चुना, उन्हें अपने कार्य को पूरी तन्मयता के साथ करते देखकर हमेशा आगे बढ़ने का हौसला मिला। इसके बाद डा. हरिहरन रमेश और डा. राजन सक्सेना के रूप में ऐसे मार्गदर्शक मिल, जिनसे शल्य चिकित्सा के साथ-साथ व्यथित व्यक्ति को समझ कर उसका सही मार्गदर्शन करने का ज्ञान हासिल किया। पत्नी शिवानी राव ने अपनी व्यस्तता के बावजूद भरपूर सहयोग दिया और छोटी बहन निष्ठा एक आधार स्तंभ के रूप में हमेशा साथ खड़ी रही। डा. सौरभ ने बताया कि 12वीं तक की पढ़ाई डीएवी पब्लिक स्कूल हमीरपुर से करने के बाद आईजीएमसी शिमला से वर्ष 1999 से 2000 में एमबीबीएस की पढ़ाई की, लेकिन सपना कुछ अलग करने का था। इसके बाद सवाई मान सिंह मेडिकल कालेज जयपुर से एमएस (सर्जरी) की। फिर एमसीएच (गेस्ट्रो सर्जरी) की पढ़ाई संजय गांधी पीजीआई लखनऊ से पूरी की। एमसीएच करने के बाद 2015 से 2017 तक दो वर्षों के लिए कोच्चि के लेकशोर अस्पताल में कंसल्टेंट के रूप में कार्य करने का मौका मिला। जहां गेस्ट्रो सर्जरी व लिवर ट्रांसप्लांट टीम के सदस्य के रूप में शामिल रहे। इसके बाद विदेश से भी नौकरी के अच्छे अवसर मिले। यही नहीं, बाहरी राज्यों के कई बेहतरीन अस्पतालों से भी उन्हें अच्छे पैकेज मिले, लेकिन उनका सपना अपने ही प्रदेश में उक्त बीमारियों से लड़ रहे लोगों के लिए कुछ करने का था। ऐसे में उन्होंने उन सभी नौकरियों को ठुकरा कर प्रदेश में कार्य करने का मन बनाया। उनके यहां आने के बाद ही आईजीएमसी शिमला में पहली बार गेस्ट्रो सर्जन का पद सृजित किया गया और इस प्रकार उन्हें प्रदेश का पहला गेस्ट्रो सर्जन बनने का मौका मिला।

ट्रैकिंग व खेलों में भी है रुचि

डा. सौरभ ने बताया कि उन्हें पढ़ाई के अतिरिक्त ट्रैकिंग, नई जगहों पर घूमने और खेलों में खासी रुचि रही है।

-कुलभूषण चब्बा, बिलासपुर

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क्या संकल्प लेकर हिमाचल लौटे हैं?

हिमाचल के किसी भी मरीज को इलाज के लिए दिल्ली या चंडीगढ़ का रुख नहीं करना पड़े। बस यही मेरा संकल्प है। उन्हें सभी सुविधाएं हमारे प्रदेश में ही उपलब्ध हों।

मेडिकल प्रोफेशन में आपके लिए सबसे अहम क्या है और किस तरह खुद को रेखांकित करते हैं?

मेडिकल प्रोफेशन में सबसे अहम है किसी भी गंभीर बीमार व्यक्ति की व्यथा को समझना और उसकी पूरी परेशानी को सुनकर उसे उचित मार्गदर्शन प्रदान करना है। केवल आपरेशन करना ही प्राथमिकता नहीं है, अपितु हर पड़ाव में मरीज के दुख- दर्द को दूर करना और उसके साथ बने रहना। मैं इसी सिद्धांत को सर्वोपरि मानता हूं।

सुपर स्पेशियलिटी के हिमाचली संदर्भों में ग्रेस्ट्रोसर्जरी के अलावा और कौन सी फील्ड है, जहां डाक्टरों की कमी दिखाई देती है?

गेस्ट्रो सर्जरी हिमाचल में नई फील्ड है। इसी तरह पेडियॉट्रिक (बच्चों की सर्जरी) में भी और विशेषज्ञों की आवश्यकता है। इसके लिए डा. प्रिंस ने यहां ज्वाइन किया है। भविष्य में यह स्पेशलिटी और भी बेहतर बनेगी।

मरीजों की बढ़ती तादाद का तनाव कैसे दूर कर पाते हैं या इस संवेदना के पीछे आपकी सहजता क्या है?

यदि हम मरीज की वेदना को समझेंगे तो हमें दबाव नहीं लगेगा। एक चिकित्सक के लिए किसी भी मरीज को बेहतर होकर घर जाते देखने से अधिक खुशी किसी चीज की नहीं होती।

अमूमन किसी का मरीज बन जाना अपने आपमें मानसिक दबाव है, तो चिकित्सक जीने की उम्मीद कैसे बांट सकता है?

चिकित्सक की आवश्यकता अपने आप में एक दबाव होता है। ऐसे में मरीज की बात को धैर्य से सुनना और उसके बाद उसका सही मार्गदर्शन करना हमारा ध्येय होना चाहिए। मैं लोगों को यह बताना चाहता हूं कि बीमार होने पर विचलित होना स्वाभाविक है, परंतु हम इसका उचित इलाज करने के लिए सदैव तत्पर हैं।

आपकी दक्षता से खास या रोग विशेष से निजात का अंतिम द्वार खुल रहा है। ऐसे में आप जनता के बीच मूल जागरूकता जगाने के लिए क्या कहेंगे?

हम सभी को अपनी सेहत के प्रति जागरूक रहना चाहिए। किसी भी तरह के लक्षण जो नॉर्मल से अलग हैं, उन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। क्योंकि जागरूक मरीज हमारी किसी भी बीमारी को शुरुआत में पहचान पाने में मदद कर सकता है, जिससे हम उसका बेहतर उपचार कर सकते हैं।

इस युग की अवधारणा में पेट के रोग अभिशाप बनते जा रहे हैं और इलाज केवल दवाइयों का भंडार सरीखा हो गया है। ऐसे में जीवन शैली का संतुलन आप क्या देखते हैं?

एक सही जीवनशैली बहुत सारे रोगों को दूर रखने में सक्षम है। इसमें सही खान-पान के साथ साथ सक्रिय जीवन, जिसमें व्यायाम भी शामिल है, की बहुत बड़ी भूमिका है। इसके अतिरिक्त आज के तनावपूर्ण जीवन में अध्यात्म एवं ध्यान का भी महत्त्व है।

खुद आपके खानपान और व्यायाम की क्या प्राथमिकता है?

यह सही है कि कार्य के कारण मेरे लिए खान-पान और व्यायाम का ध्यान रखना मुश्किल होता है। परंतु फिर भी जितना हो सके उचित समय पर खाने की कोशिश करता हूं। इसके साथ कुछ समय खेलने के लिए भी निकालता हूं। जिससे मैं अपने आप को तनाव से लड़ने के लिए और सक्षम पाता हूं।

गेस्ट्रो सर्जरी के लिए कब सोचने की अनिवार्यता जुड़ जाती है। किस तरह के मरीज आपसे संपर्क कर सकते हैं?

पेट, खाने की नली, छोटी व बड़ी आंत, पित्त की थैली व नली, लिवर, पैंक्रियाज व तिल्ली की किसी भी प्रकार की तकलीफ एवं इनसे जुड़े हुए कैंसर के लिए गेस्ट्रोसर्जरी ओपिनियन की आवश्यकता है और ऐसे मरीजों को हमारे विभाग में बिना विलंब दिखाना चाहिए।

चाइनीज खाने की तरफ  झुकाव विशेषतौर पर मोमो में लिपटे मैदे के स्वाद को आप कितना हानिकारक मानते हैं?

मोमो और मैगी की ओर झुकाव बढ़ता जा रहा है, जो निश्चित रूप से सेहत के लिए हानिकारक है। हमें उचित खान-पान पर ध्यान देना पड़ेगा। इसी से हम इन रोगों से दूर रह पाएंगे।

किस आयु में पहुंचकर हमें आहार विशेषज्ञ से सलाह ले लेनी चाहिए?

सही जीवनशैली अपनाने के लिए कोई तय आयु नहीं है। हमें आहार विशेषज्ञ से न केवल अपने लिए बल्कि बच्चों के लिए भी सही आहार की सलाह लेनी चाहिए।

प्रोफेशन की व्यस्तता के बीच आप अपने निजी जज्बात का इजहार कैसे करते हैं और आपके मनोरंजन के क्षण कहां इंतजार करते हैं?

मुझे संगीत सुनने के साथ ही अच्छे चलचित्र देखने का काफी शौक है और कोशिश करता हूं कि उसके लिए थोड़ा समय निकाल पाऊं। यद्धपि व्यस्तता में ये थोड़ा कम हो पाता है। पर जितना भी है बढि़या है। और इस तरह निजी जज्बात को भी संगीत के माध्यम से ही इजहार करना पसंद करता हूं।

अब तक सबसे कठिन या संतुष्टि का क्षण। कोई जीवन का सिद्धांत जो आपकी सफलता का मार्गदर्शन करता है?

एमबीबीएस के पश्चात एमएस में सिलेक्शन के लिए मुझे थोड़ा समय लगा। यह समय मेरे के लिए काफी कठिन था। परंतु निरंतर मेहनत, आत्मविश्वास व मेरे अभिभावकों  का समर्थन उस समय में मेरे सबसे बड़े साथी थे, जिन्होंने मुझे सही मार्ग पर बनाए रखा। आत्मविश्वास, अथक परिश्रम और विनम्रता हमेशा साथ रहने चाहिए। हर क्षण सीखने के लिए तत्पर रहना चाहिए, तभी आगे बढ़ने की इच्छा बनी रहती है।

हिमाचली युवा को डाक्टर सौरभ से जो सीखना चाहिए या कोई मूलमंत्र?

युवाओं के लिए केवल यही कहना चाहूंगा कि जिस भी क्षेत्र में हों, बस पूरी लगन एवं चित्त की दृढ़ता के साथ कार्य करें। सफलता अवश्य प्राप्त होगी।


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