हिमाचली सीमा की असीम प्रतिभा

By: Nov 22nd, 2017 12:05 am

हिमाचल के नन्हे कदमों की आहट लगातार बढ़ रही है और इसको प्रदेश की उपलब्धियों में आंका जा सकता है। लगातार तीसरा राष्ट्रीय रिकार्ड अपने नाम दर्ज करके धर्मशाला साई होस्टल की एथलीट सीमा ने प्रदेश की क्षमता में अपना डंका बजाया, तो देश हिमाचल की माटी में कुंदन बनने की क्षमता को अंगीकार कर रहा है। चंबा की सीमा ने आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में जो इबारत लिखी, उसका मजमून साई खेल छात्रावास में बनाया गया है। यहां एथलेटिक्स कोच केहर सिंह पटियाल की तारीफ करनी होगी, जिन्होंने देश के सामने हिमाचल की तस्वीर को राष्ट्रीय ऊर्जा से भर दिया। इसीलिए भारतीय खेल प्राधिकरण अपनी अंतरराष्ट्रीय तैयारियों के लिए धर्मशाला में खेल ढांचे को स्तरोन्नत करने की परियोजना पर आगे बढ़ रहा है। इसी परिदृश्य की एक अन्य कहानी में हिमाचल के चार खिलाड़ी तेहरान में भारतीय कबड्डी का जौहर दिखाएंगे, तो उम्मीदों के फलक पर प्रदेश की क्षमता ताज पहनती हुई दिखाई देती है। अजय, विशाल, प्रियंका और कविता के रूप में हिमाचल ने अपनी खेल प्रतिभा का आकाश खोला है, तो इस दस्तूर की साक्षी बनकर लौटी हिमाचल की महिला पहलवान कुमारी रानी ने राष्ट्रीय पुलिस प्रतियोगिता में कांस्य पदक हासिल करके पुनः खुद को रेखांकित किया है। हिमाचल को खेलों के नजरिए से देखने की जो शुरुआत कुछ साल पहले हुई, उसके आलोक में ये हीरे चमक रहे हैं। प्रदेश और राष्ट्रीय खेल प्राधिकरण के छात्रावासों में क्षमता उत्थान की एक नई परिपाटी सामने आ रही है और इसी की बदौलत अभिभावकों में भी बच्चों की प्रतिभा को आगे बढ़ाने के संकल्प निर्देशित होने लगे हैं। जाहिर तौर पर सीमा में तो एक प्रबल इच्छा से आगे बढ़ने का मसौदा करवटें ले रहा होगा, लेकिन प्रतिभा को तराश कर क्षमता बनाने का योगदान सर्वोपरि है। कुछ खेलें हिमाचली परिप्रेक्ष्य में फलीभूत हो रही हैं, तो इस डगर का विस्तार होना चाहिए। विडंबना यह है कि खेलों में चित्रित नायक या नायिका का हम गुणगान कर सकते हैं, लेकिन इस क्षमता को स्थायी प्रश्रय देने का सरकारी वादा अभी कमजोर है। यह दीगर है कि सरकार ने डीएसपी रैंक के अधिकारियों की शुमारी में खेल प्रतिभाओं को उच्च पद देने की पहल की है, लेकिन विभागीय दक्षता में ये सीढि़यां केवल वेतन में ही सुरक्षित हो पाती हैं। पुलिस, विद्युत, वन, शिक्षा व पर्यटन जैसे विभागों को खेलों के प्रति अपने दायित्व की बुनियाद रखना जरूरी है। ये या कुछ अन्य विभाग किसी न किसी खेल के ब्रांड एंबेसेडर बनते हुए यह सुनिश्चित करें कि उनके दायरे में खिलाड़ी आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता का अलख जगाएं। उदाहरण के लिए पुलिस विभाग में खेल कोटे से पहुंचे खिलाड़ी को रूटीन से हटकर यह बीड़ा उठाने को कहा जाए कि आगामी वर्षों में नए हीरे कैसे तराशे जाएं। इसी दृष्टि से समाज को भी अपनी भागीदारी में खेलों को प्रोत्साहन देना होगा। प्रदेश में ग्रामीण खेलों में ढांचागत सुविधाओं के अलावा राष्ट्रीय स्तर की अकादमियों की स्थापना की एक विस्तृत रूपरेखा बनानी होगी, ताकि देव-वीर भूमि आगे चलकर खेलभूमि भी साबित हो। सीमा जैसे स्कूली छात्र-छात्राओं को शिक्षण के साथ प्रशिक्षण की विशिष्टता से ओत-प्रोत खेल स्कूल व स्पोर्ट्स कालेजों की आवश्यकता है। साई के बिलासपुर-धर्मशाला केंद्रों के साथ कुछ स्कूल व कालेजों में अलग से खेल विंग बनाकर ऐसे पाठ्यक्रम के तहत पढ़ाई हो, जो औपचारिक शिक्षा की व्यावहारिकता बढ़ाते हुए खेल वातावरण को तसदीक करे। अब वक्त आ गया है कि हिमाचल अपने ढांचागत विकास के साथ खेलों में बजट आबंटन की मिकदार बढ़ाए।


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