हिमाचली हिंदी साहित्य को दी उड़ान

By: Nov 12th, 2017 12:05 am

डॉ. सुशील कुमार फुल्ल हिमाचल के वरिष्ठ कथाकार, साहित्येतिहासकार व आलोचक हैं। इनका जन्म 15 अगस्त, 1941 को हुआ। इन्होंने हिंदी में पीएचडी तथा अंग्रेजी में एमए तक शिक्षा प्राप्त की। यह वर्षों तक अध्यापन कार्य से जुड़े रहे। कहानी के क्षेत्र में इन्हें पहला राष्ट्रीय पुरस्कार मेमना कहानी के लिए वर्ष 1978 में मिला। होरी की वापसी नामक कहानी के लिए वर्ष 2003 में भास्कर रचना पर्व राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। इसके अलावा मिट्टी की गंध उपन्यास के लिए हिमाचल कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी पुरस्कार, यू सिंह लापता है नामक कहानी संग्रह के लिए हिमाचल अकादमी पुस्तक पुरस्कार तथा हारे हुए लोग नामक उपन्यास के लिए हिमाचल का सर्वोच्च राज्य सम्मान चंद्रधर शर्मा गुलेरी पुरस्कार भी इन्हें मिला। इसके साथ ही हिमाचल के हिंदी साहित्य का इतिहास के लिए यशपाल सम्मान व वर्ष 2006 में शिखर संस्था का सम्मान भी इन्हें मिला। इसी के साथ पंजाब एवं हिमाचल की अनेक संस्थाओं ने भी इन्हें सम्मानित किया। इनमें ऊना की हिमोत्कर्ष, बैजनाथ की कला संगम, लुधियाना की पंजाब कला अकादमी, जालंधर की पंकस अकादमी, कुल्लू की आथर्ज गिल्ड हिमाचल तथा धर्मशाला की हिमाचल केसरी आदि संस्थाएं शामिल हैं। लेखक का मानना है कि विश्व के श्रेष्ठ साहित्य के अंतर्गत जो औदात्य व्याप्त या निहित है, वह पठन के माध्यम से स्वतः आत्मसात हो जाता है। उन्हें यह स्वीकार करने में किंचित भी संकोच नहीं कि उनका कथा साहित्य अनेक लेखकों यथा अर्नेस्ट हेमिंग्वे, हार्डी, प्रेमचंद, यशपाल, अज्ञेय, कमलेश्वर, गोर्की व मोपांसा आदि से प्रभावित है। समकालीन समाज में व्याप्त विसंगतियों को निर्ममता से उघाड़ना लेखक को प्रिय है, परंतु मानवता की मांगलिक सदाशयता के प्रति वह सदा जागरूक रहते हैं। लेखक कई साहित्यिक व सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़े रहे हैं। इन्होंने कई स्तरों पर लेखकीय परिचर्चाओं में भी भाग लिया। इसके अलावा कई साहित्यिक सम्मेलनों में हिमाचल का प्रतिनिधित्व भी किया। सन् 1983 में इन्होंने विश्व हिंदी सम्मेलन, दिल्ली में हिमाचल का प्रतिनिधित्व किया। लेखक ने गत 50 वर्षों में अपने निरंतर कथा लेखन से हिमाचल को साहित्यिक जगत में राष्ट्रीय फलक पर गरिमा एवं पूरी प्रभविष्णुता के साथ उकेरने का श्रेय अर्जित किया है। इन्होंने छठे व सातवें दशक में कई अखबारों व पत्रिकाओं में हिमाचली परिवेश पर कहानियां लिख कर हिमाचल के जनजीवन को अपनी पूरी विलक्षणता में चित्रित कर देश के समक्ष हिमाचल के वैभव एवं संस्कृति का सम्मोहक रूप प्रस्तुत किया। जनजातीय क्षेत्रों की अपूर्व विरासत को रखांकित करते हुए उनकी दैनंदिन समस्याओं से भी बाह्या जगत को अवगत करवाया। बढ़ता हुआ पानी, मेमना, फंदा, ठूंठ, अनुपस्थित, चलते ही जाना आदि ऐसी ही बहुचर्चित एवं बहुप्रशंसित कहानियां हैं जिन्होंने देश-दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। हिमाचल के किसानों के जीवन व उनकी समस्याओं को लेकर खड़कन्नू व होरी की वापसी जैसी बहुचर्चित कहानियां लिखकर इन्होंने हिमाचल की हिंदी कहानी को विशेष पहचान दिलवाई। साहित्येतिहास के क्षेत्र में भी डॉ. फुल्ल ने हिमाचल के हिंदी साहित्य का इतिहास सन् 1980 में रचकर नया कीर्तिमान बनाया। खंड-खंड मानसिकता, मेमना, मेरी प्रिय कहानियां, मेरी आंचलिक कहानियां, ब्रेक डाउन, यू सिंह लापता है, होरी की वापसी, जलजला व चिडि़यों का चोगा आदि इनके कहानी संग्रह हैं। इसके अलावा पर्वतों के ऊपर, कहीं कुछ और, मिट्टी की गंध, नागफांस, फूलों की छाया, खुलती हुई पांख, हारे हुए लोग, बंटवारा, उड़ान आदि इनके उपन्यास हैं। इन्होंने कुछ अंग्रेजी कहानियां व उपन्यास भी लिखे हैं। भारत के सेनानी इनकी प्रमुख बाल कविता है। माई बाप इनका प्रसिद्ध नाटक है। आलोचना व समीक्षा, बाल कहानियों व बाल उपन्यासों पर भी इन्होंने सफलतापूर्वक कलम चलाई। हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर में 35 वर्षों तक हिंदी व अंग्रेजी अध्यापन के बाद सन् 2001 में आचार्य एवं अध्यक्ष, भाषा विभाग, कृषि विश्वविद्यालय के पद से डॉ. फुल्ल सेवानिवृत्त हो गए।


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