हिमाचल के खेतों में पराली जलाना पाप

By: Nov 17th, 2017 12:03 am

धान की थ्रेशिंग से निकला सूखा चारा सहेज कर रखता है देवभूमि का किसान

पालमपुर— क्रॉप रेसिड्यू यानी फसलों का बचा हुआ हिस्सा पड़ोसी प्रदेशों में प्रदूषण का एक अहम कारण बनकर उभर रहा है, लेकिन हिमाचल में ऐसा नहीं है। हिमाचल के किसान पराली को खेतों में जलाना पाप समझते हैं। क्योंकि यहां पर पराली जितनी तैयार होती है, वह पशुओं के चारे के काम आ जाती है। पराली बचती नहीं है, इसलिए उसे जला कर नष्ट करने के हालात बनते ही नहीं हैं। जानकारी के अनुसार प्रदेश में इतना घास नहीं होता, जिससे सारे पशुधन का पेट भरा जा सके। इसलिए किसान और पशुपालक धान से बचने वाले क्रॉप रेसिड्यू को सर्दियों के दिनों में इकटठ करके पशुओं के लिए गर्मियों के चारे का प्रावधान कर लेते हैं। यही कारण है कि खासकर गांव में पराली के  ऐसे ढेर अकसर देखने को मिलते हैं। जानकार बताते हैं कि पड़ोसी प्रदेशों में फसलों की काफी अधिक पैदावार होती है, जिससे क्रॉप  रेसिड्यू भी भारी मात्रा में प्राप्त होता है। इन प्रदेशों में पशुओं के लिए चारा भी काफी मात्रा में होता है, जिसके चलते क्रॉप रेसिड्यू का प्रयोग नहीं हो पाता। व्यवसायी पड़ोसी प्रदेशों से क्रॉप  रेसिड्यू को तूड़ी के रूप में बेचने के लिए यहां लेकर आते हैं, लेकिन इसके बावजूद वहां काफी बड़ी मात्रा में यह रेसिड्यू बच जाता है। अंततः इस क्रॉप  रेसिड्यू को जलाकर नष्ट करना पड़ता है और इससे उन प्रदेशों में प्रदूषण की समस्या बन रही है। प्रदेश के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार बरसात के बाद व सर्दियों के दिनों में धान के रेसिड्यू से पराली तैयार करके रख ली जाती है, ताकि गर्मियों में पशुओं के चारे की कमी को पूरा किया जा सके। जानकारी के अनुसार जिला कांगड़ा में सालाना करीब 3600 हेक्टेयर क्षेत्र में हुई पैदावार से पराली तैयार होती है और औसतन 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से इसका उत्पादन होता है। पड़ोसी राज्यों के किसानों को  हिमाचल के किसानों से सीख लेनी चाहिए और पराली को जलाने के बजाय सहेज कर किसी गोसदन को दान करना चाहिए, ताकि पशुओं का पेट तो भर सकें।

 नालागढ़ में डेंगू ने लिटाए 18

नालागढ़— औद्योगिक क्षेत्र बीबीएन में डेंगू ने पैर पसार दिए हैं। वैसे तो डेंगू के कई मामले सामने आ रहे हैं, लेकिन उपमंडल के सबसे बड़े नालागढ़ अस्पताल में एलीजा विधि से हुए टेस्ट में अभी तक 18 मामले डेंगू पॉजिटिव डिटेक्ट हुए हैं। हालांकि स्वास्थ्य विभाग पहले से ही अलर्ट हो गया था और टीमों का गठन कर जागरूकता लाई जा रही थी, लेकिन मामले बढ़ने के चलते स्वास्थ्य विभाग इस जागरूकता अभियान में अब और तेजी लाएगा। जानकारी के अनुसार औद्योगिक क्षेत्र बीबीएन में डेंगू के मरीज अब बढ़ने लगे हैं। नालागढ़ अस्पताल में उपचार करवाने आए लोगों के एलीजा विधि से हुए टेस्टों में 18 लोग डेंगू पॉजिटिव पाए गए हैं।

न प्रोटीन; न मिनरल, सिर्फ  पेट भरती है पराली

पशु विशेषज्ञ बताते हैं कि धान के रेसिड्यू से तैयार की जाने वाली पराली में न  तो प्रोटीन तत्त्व होते हैं न  ही मिनरल। इसलिए जरूरत पड़ने पर पराली पशुओं के चारे के तौर पर प्रयोग में लाई तो जाती है, लेकिन यह सिर्फ पशुओं का पेट भरने के काम आती है। इसमें पौष्टिक तत्व न  के बराबर होते हैं और इससे दूध उत्पादन पर भी कोई असर नहीं पड़ता है।


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