हिमाचल के हालात को समझे एनजीटी

By: Nov 18th, 2017 12:05 am

जंगल और पहाड़ ही अब हिमाचल के लिए परेशानी बन रहे है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी हिमाचल को लटका दिया है। पेड़ काटने पर सिधा जुर्माना, अढ़ाई मंजिला से ज्यादा मकान बनाने पर रोक, एनएच के किनारे भवन बनाने से रोक, ये ऐसे निर्देश हैं, जो कि परेशानी पर पसीना ला रहे है, यह समझ से परे है, जबकि यहां पर न तो जंगलों की कमी है और न ही दिल्ली की तरह आवोहवा जहरीली है। उल्टा यहां पर जंगलों का लगातार विस्तार हो रहा है, जिसकी वजह से विकास नहीं हो रहा है। अब नए आदेशों से आम आदमी भी परेशान हो गया है। प्रदेश के अग्रणी मीडिया ग्रुप ‘दिव्य हिमाचल’ ने लोगों की राय जानी तो कुछ यूं आया सामने…

हिमाचल के हक पर प्रहार

प्रेम सागर का कहना है कि एनजीटी हिमाचल के हक पर ही हर बार प्रहार क्यों कर रहा है। हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्र में आज भी लकड़ी से घर बनाए जाते हैं, लेकिन अब यहां के लोगों के इस हक को भी छीना जा रहा है। पंजाब और हरियाणा के प्रदूषण को भी हिमाचल ही सहन कर रहा है ।

विकास कार्य न हों प्रभावित

अश्वनी बाबा का कहना है कि पर्यावरण और विकास दोनों ही प्रभावित न हो, इसके लिए भी एनजीटी को मानक तय करने होंगे। सुरक्षित तथा पर्यावरण को प्रभावित न करने वाली तकनीक विकसित करना आवश्यक है। सरकार को चाहिए कि ऐसी तकनीक विकसित की जाए जिससे कि प्रदेश में विकास कार्य भी प्रभावित न हों।

विकास चाहिए तो…

चौधरी हरभजन सिंह का कहना है कि पहाड़ी राज्य में बिना पेड़ कटान के विकास कार्य नहीं हो सकते हैं। पेड़ों के कटान से पर्यावरण को नुकसान तो पहुंचता  है, लेकिन इसके लिए भी ऐसे नियम बनाए जाने चाहिए कि विकास कार्य प्रभावित न हों।  एनजीटी को हिमाचल के मूल निवासियों के हकों को भी ध्यान में रखकर फैसले लेने चाहिएं।

दायरे के बाहर न हो निर्माण

रोशन नरुला का कहना है कि हिमाचल में ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि जिससे विकास कार्य भी प्रभावित न हों और पर्यावरण को भी नुकसान न पहुंचे। राज्य में अभी विकास कार्यों ने गति पकड़ी है, ऐसे में एक दायरा निर्धारित किया जाना चाहिए कि उस दायरे से बाहर निर्माण कार्य न हों।

जहां जरूरी वहां तो कटेंगे

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