हिमाचल पर बेतुके नियम न थोपे एनजीटी

By: Nov 20th, 2017 12:05 am

हिमाचल फोरम

 नाहन — नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए फैसले से प्रदेश के लोग आहत हैं। लोगों का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में देश भर में सबसे अधिक वन क्षेत्र हैं, बावजूद इसके भी एनजीटी द्वारा हरित प्रदेश में अपना डंडा चलाया जा रहा है। लोगों का कहना है कि हिमाचल प्रदेश पहाड़ी क्षेत्र होने के चलते यहां की परिस्थितियां मैदानी क्षेत्रों से एकदम अलग हैं। एनजीटी को हिमाचल प्रदेश के लिए विशेष राहत देनी, तो दूर बल्कि सारे नियम कायदों को हिमाचल पर ही थोपा जा रहा है। एनजीटी के फैसले को लेकर ‘दिव्य हिमाचल’ ने जब जिला के लोगों की नब्ज टटोली तो लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर था। हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक के निदेशक भारत भूषण मोहिल का कहना है कि एनजीटी हिमाचल के हक पर ही हर बार प्रहार क्यों कर रही है। हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्र में आज भी लकड़ी से घर बनाए जाते हैं, लेकिन अब यहां के लोगों के इस हक को भी छीना जा रहा है। जिला के राकेश गर्ग का कहना है कि पर्यावरण और विकास दोनों ही अहम पहलू हैं। विकास भी प्रभावित न हो इसके लिए भी एनजीटी को मानक तय करने होंगे। सुरक्षित तथा पर्यावरण को प्रभावित न करने वाले भवनों का निर्माण करने की तकनीक विकसित करना आवश्यक है। राजीव बंसल का कहना है कि पहाड़ी राज्य में ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि जिससे कि विकास कार्य भी प्रभावित न हों और पर्यावरण को भी नुकसान न पहुंचे। पांवटा साहिब स्थित गलेक्सी आईटीआई के निदेशक राजेंद्र नेगी का कहना है कि पेड़ कटान पर रोक लगाना अच्छा निर्णय है, लेकिन जहां पर आवश्यकता है ,वहां पर पेड़ कटान करना पड़ेगा। कई स्थानों पर आलम यह है कि पेड़ों के कारण दुर्घटना की संभावना बनी रहती है ,लेकिन ऐसे स्थानों पर भी पेड़ नहीं काटे जाते हैं इस ओर भी ध्यान देना आवश्यक है। इसके अलावा पहाड़ी राज्य में विकास के कार्य होना भी अतिआवश्यक है। इसके लिए सिस्टम के साथ कार्य किए जाना आवश्यक है। शिशु विद्या निकेतन वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला के प्रधानाचार्य कुंदन ठाकुर का कहना है कि पहाड़ी राज्य में बिना पेड़ कटान के विकास कार्य नहीं हो सकते हैं। पेड़ों के कटान से पर्यावरण को नुकसान तो पहुंचता है, लेकिन इसके लिए भी ऐसे नियम बनाए जाने चाहिए कि विकास कार्य प्रभावित न हो। हिमाचल में बाहर से आकर लोग व्यवसायिक तौर पर भवनों का निर्माण कर रहे हैं, लेकिन हिमाचल के लोग अपने घर भी नहीं बना सकते हैं।


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