हिमाचल में समृद्ध है कबायली सभ्यता

By: Nov 29th, 2017 12:05 am

हिमाचल प्रदेश कला, संस्कृति और सभ्यता के लिए समूचे राष्ट्र में एक अलग पहचान रखता है। प्रदेश में भी विशेषकर  कबायली सभ्यता काफी समृद्ध है। हिमाचल प्रदेश में किन्नौर, लाहुल-स्पीति, चंबा, शिमला तथा सिरमौर जिला में ये कबीले हैं…

हिमाचल के मेले व त्योहार

लोहड़ी या माघी: यह त्योहार प्रथम माघ की संक्रांति को मनाया जाता है। निम्न भाग में इसको लोहड़ी या मकर संक्रांति कहते हैं, मध्य भाग में माघी या साजा। इस दिन भी बैसाखी की भांति तीर्थ स्थानों पर स्नान करना श्ुभ माना जाता है। पकवान के रूप में चावल और माश (उड़द) की खिचड़ी बनाई जाती है, जिसे घी या दही में खाया जाता है। पिछली रात्रि को चावल के आटे में पकवान बनाए जाते हैं और तिल तथा चावल को घी में भून कर तिलचौली बनाई जाती है। गांव में अंगीठे जालाए जाते हैं। जहां रात को लोग भजन-कीर्तन गाते हैं। सवेरे वहीं से उठकर ठंडे पानी से स्नान करने के बाद ही लोग घर जाते हैं। दिवाली की भांति गांव के बच्चे, लड़के और लड़कियां अलग-अलग टोलियों में आठ दिनों तक घर-घर जाकर लोहड़ी के गीत गाते हैं। पहले और अंतिम दिन बच्चों को प्रत्येक घर में अनाज या पैसे दिए जाते हैं। माघ का सारा महीना ग्रामीण अपने रिश्तेदारों में मिलने-मिलाने में बिताते हैं, क्योंकि इस महीने फसल का कोई काम नहीं होता है। लोहड़ी मुख्यतः फसल संबंधी तथा किसानों के पास उपलब्ध समय का त्योहार है। यह पंजाब में अधिक प्रचलित है।

खोहड:लोहड़ी से दूसरे दिन खोहड़ी मनाई जाती है, जिसमें कई स्थानों पर मेले लगाए जाते हैं। इस दिन कुंआरी लड़कियों के कान और नाक बीधना अच्छा समझा जाता है। कारीगर लोग इस दिन कोई काम नहीं करते।

हाटी क्षेत्र में ‘माघी त्योहार’: हिमाचल प्रदेश कला, संस्कृति और सभ्यता के लिए समूचे राष्ट्र में एक अलग पहचान रखता है। प्रदेश में भी विशेषकर  कबायली सभ्यता काफी समृद्ध है। हिमाचल प्रदेश में किन्नौर, लाहुल-स्पीति, चंबा, शिमला तथा सिरमौर जिला में ये कबीले हैं। बहरहाल हिमाचल प्रदेश के ऊपरी भाग के कबायलियों को अनुसूचित जनजाति और उस क्षेत्र को अनुसूचित जनजातीय क्षेत्र केंद्र सरकार बहुत पहले घोषित कर चुकी है, जबकि इसके विपरीत सिरमौर जिला के रेणुका तथा शिलाई क्षेत्र के कबायली भी सरकार की इस मान्यता से वंचित है। सिरमौर जिला के गिरिपार क्षेत्र में रहने वाले कबायली अपने आप को ‘हाटी सभ्यता’ से जुड़ा मानते हैं। यद्यपि ‘हाटी कबीले’ और उत्तर प्रदेश के ‘जौंसारी कबीले’ की भौगोलिक स्थिति में भी समरूपता है, खान-पान, रहन-सहन, पहनावा, सभ्यता और संस्कृति में एकरूपता है तथा आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताएं एवं परंपराएं भी एक-दूसरे से बिलकुल मेल खाती हैं, लेकिन इसे विडंबना ही माना जाएगा कि सिरमौर जिला के गिरिपार क्षेत्र को केंद्र सरकार से अनुसूचित जनजातीय क्षेत्र का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है।


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