अंधी रफ्तार के कातिल इरादे

By: Dec 5th, 2017 12:05 am

रविंद्र सिंह भड़वाल

लेखक, ‘दिव्य हिमाचल’ से संबद्ध हैं

यातायात को नियंत्रित एवं व्यवस्थित बनाने को लेकर हमारे देश या प्रदेशों में कानूनों व नियमों की कोई कमी नहीं है। लेकिन नब्बे फीसदी मामलों में न तो प्रशासन इनका सही ढंग से पालन करवा पाता है और न ही नागरिक जीवन इसके प्रति गंभीरता दिखाता है। इसलिए बार-बार सावधानी हटती है और दुर्घटना भी घटती है…

रफ्तार के जुनून पर सवार होकर दौड़ती परिवहन व्यवस्था को अब समझना होगा कि आखिर यह सफर हमें ले कहां जा रहा है। एक दिन में सात अलग-अलग हादसे अगर दो लोगों की जान ले लेते हैं या 30 लोगों को जख्म दे जाते हैं, तो इस गंभीर होती चुनौती को समझना होगा। गनीमत यह कि नूरपुर बस हादसे में पैरापिट रक्षक बनकर खड़ा हो गया, वरना लाशें बटोरते हुए कलेजा कांपता। इन हादसों के अलावा नंदपुर में एक बस हादसा टल गया, नहीं तो जख्म वहां भी कम न मिलते। इन हादसों की अगर पड़ताल कर लें, तो बड़ी कसूरवार मानवीय लापरवाही ही नजर आएगी। हाल ही में प्रकाशित एक रपट में भी यही बात निकलकर सामने आई थी कि करीब 90 फीसदी सड़क हादसों के लिए एकमात्र वजह मानवीय लापरवाही है। इसके बावजूद चालकों के व्यवहार में कोई सबक नजर नहीं आता। यह सारा परिदृश्य परिवहन व्यवस्था से सवाल पूछ रहा है कि आखिर क्यों हमारी जीवन रेखाओं में मौत का मातम भरा जा रहा है।

इसे संयोग ही माना जाएगा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी सड़क सुरक्षा को लेकर न केवल चिंता जाहिर की है, बल्कि सफर को सुरक्षित बनाने की दिशा में कुछ स्पष्ट एवं कारगर निर्देश भी जारी किए हैं। इन्हीं में से एक आदेश मार्च, 2018 तक हर राज्य व केंद्र शासित प्रदेश को अपनी-अपनी जरूरतों के अनुरूप एक सड़क सुरक्षा नीति बनाने का भी है। इसके अलावा हर राज्य में परिवहन को व्यवस्थित व नियंत्रित करने हेतु एक सशक्त एजेंसी के गठन की जरूरत को भी रेखांकित किया गया है। सड़कों पर सफर को सुरक्षित बनाने की राह में चुनौतियां कई रूपों में हमारे समक्ष खड़ी हैं। फिलहाल इन हादसों का सबसे बड़ा कारण सड़क पर बढ़ती स्पर्धा है। चालक बिना किसी परवाह के वाहन भगा रहे हैं और रविवार को नूरपुर में बस दुर्घटना भी इसी वजह से घटी। सुरक्षा के लिए परिवहन नीति में हेलमेट या सीट बैल्ट को पहनना अनिवार्य बनाया गया है, लेकिन इस नियम की धज्जियां उड़ाना आज चालकों में मनपंसद शगल बन चुका है। किशोर या युवा चालकों में तो यह बीमारी और भी गहरे तक फैली हुई है। इसी का नतीजा है कि हादसों का ज्यादातर शिकार यही वर्ग बनता है। ऐसे मामलों में केवल एक जान नहीं जाती, बल्कि बुझता चिराग पूरे परिवार को जिंदगी के अंधेरों में डुबो जाता है। सड़कों का विस्तृत होता नेटवर्क और उनसे हर दिन नए वाहनों का जुड़ता एक बड़ा काफिला इस समस्या को और भी विकट बना रहा है। यह इसलिए भी कि सरकारों ने इस दिशा में कोई कारगर नीति बनाना अब तक जरूरी नहीं समझा। और अगर हिमाचल में ट्रैफिक को नियंत्रित करना लगातार मुश्किल हो रहा है, तो इसके तार भी कहीं न कहीं वाहनों की बढ़ती इसी बाढ़ से जुड़े हुए हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर भी परिवहन व्यवस्था की छवि बेहद बदनाम रही है। इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि हर तीन मिनट में सड़कें एक भारतीय की जान लील रही हैं। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था तो इससे प्रभावित हो रही है, हादसे के बाद इलाज पर होने वाले भारी-भरकम खर्च से कई परिवारों का बजट गड़बड़ा रहा है। हर कोशिश के बाद यदि हादसे में गंभीर रूप से घायल किसी व्यक्ति की जिंदगी को बचा भी लिया जाता है, तो भी वह सामान्य जीवन जीने लायक नहीं रहता। बाकी की जिंदगी उसे किसी न किसी तरह की अपंगता के साथ बितानी पड़ती है। हालांकि यातायात को नियंत्रित एवं व्यवस्थित बनाने को लेकर हमारे देश या प्रदेशों में कानूनों व नियमों की कोई कमी नहीं है, लेकिन नब्बे फीसदी मामलों में न तो प्रशासन इनका सही ढंग से पालन करवा पाता है और न ही नागरिक जीवन ने इसके प्रति गंभीरता दिखाई। इसलिए बार-बार सावधानी हटती है और दुर्घटना भी घटती है। मानवीय जीवन की कीमत और सड़क हादसों के आर्थिक-सामाजिक दुष्प्रभावों को समझते हुए अब हिमाचल को सड़क सुरक्षा के महत्त्व को समझना ही होगा। चूंकि हिमाचल अब तक यातायात के लिए मुख्यतः सड़क मार्गों पर ही आश्रित रहा है, इसलिए इसके अलावा दूसरा कोई चारा भी नहीं है। अब हमें एक बेहतर सड़क संस्कृति विकसित करनी होगी, जहां वाहन चालक से लेकर परिवहन से जुड़ी हर संस्था को जवाबदेह बनाना होगा। सड़क सुरक्षा नीति में आवश्यक सुधार करते हुए नियमों की पालना सख्त बनानी होगी। नियमों की अवहेलना की स्थिति में दंड इतना कठोर करना होगा कि कोई बिगड़ैल चालक यातायात नियमों की खिल्ली उड़ाने की जुर्रत न कर सके। प्रदेश में प्रस्तावित नए राजमार्गों के निर्माण के वक्त विकसित इंजीनियरिंग को अपनाकर, सड़कों के निर्माण और डिजाइन को बेहतर बनाकर सड़क सुरक्षा को पुख्ता बनाया जा सकता है।

प्रदेश भर की सड़कों पर जो 130 के करीब ब्लैक स्पॉट हैं, वहां भी सुरक्षा में कुछ कारगर उपाय अपनाने होंगे। निजी वाहनों को बढ़ावा देने के बजाय अब नागरिक समाज व शासन-प्रशासन को सार्वजनिक परिवहन का एक मजबूत तंत्र विकसित करना होगा। बढ़ती पर्यावरणीय समस्याओं के लिहाज से भी यही समय की मांग है। इन तमाम उपायों के बावजूद सच यही है कि सड़कों को सौ फीसदी सुरक्षित तो नहीं बनाया जा सकता। उस स्थिति में दुर्घटना के बाद हालात पर प्रभावी ढंग से काबू पाने के लिए परिवहन, पीडब्ल्यूडी और स्वास्थ्य विभाग में बेहतर तालमेल स्थापित करना होगा, ताकि क्षति को न्यूनतम स्तर तक लाया जा सके। इन पहलुओं को व्यवहार में उतार कर ही सड़क पर सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है, वरना सफर कभी थमता नहीं!

ई-मेल : luckybhadwal1@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App