उपेंद्रनाथ अश्क : बहुविधावादी रचनाकार

By: Dec 17th, 2017 12:08 am

उपेंद्रनाथ अश्क (जन्म-14 दिसंबर, 1910 – मृत्यु-19 जनवरी, 1996) उपन्यासकार, निबंधकार, लेखक, कहानीकार थे। अश्क जी ने आदर्शोन्मुख, कल्पनाप्रधान अथवा कोरी रोमानी रचनाएं की। उनका जन्म पंजाब प्रांत के जालंधर नगर में एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अश्क जी छह भाइयों में दूसरे थे। उनके पिता पंडित माधोराम स्टेशन मास्टर थे। जालंधर से मैट्रिक और फिर वहीं से डीएवी कॉलेज से उन्होंने 1931 में बीए की परीक्षा पास की।

साहित्यिक परिचय

हिंदी-उर्दू के प्रेमचंदोत्तर कथा साहित्य के विशिष्ट कथाकार उपेंद्रनाथ अश्क की पहचान, बहुविधावादी रचनाकार होने के बावजूद, कथाकार के रूप में ही है। राष्ट्रीय आंदोलन के बेहद उथल-पुथल वाले दौर में उनका रचनात्मक विकास हुआ। जलियांवाला बाग जैसी नृशंस घटनाओं का उनके बाल मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनका गंभीर और व्यवस्थित लेखन प्रगतिशील आंदोलन के दौर में शुरू हुआ। उसकी आधारभूत मान्यताओं का समर्थन करने के बावजूद उन्होंने अपने को उस आंदोलन से बांधकर नहीं रखा। यद्यपि जीवन से उनके सघन जुड़ाव और परिवर्तनकामी मूल्य-चेतना के प्रति झुकाव, उस आंदोलन की ही देन थी। साहित्य में व्यक्तिवादी-कलावादी रुझानों से बचकर जीवन की समझ का शऊर और सलीका उन्होंने इसी आंदोलन से अर्जित किया था। भाषा एवं शैलीगत प्रयोग की विराट परिणति उनकी इसी सावधानी की परिणति थी। उनकी कहानियां मानवीय नियति के प्रश्नों, जीवनगत विडंबनाओं, मध्यवर्गीय मनुष्य के दैनंदिन जीवन की गुत्थियों के चित्रण के कारण; नागरिक जीवन के हर पहलू संबद्ध रहने के कारण सामान्य पाठकों को उनकी कहानियां अपनापे से भरी लगती हैं। उनमें राजनीतिक प्रखरता और उग्रता के अभाव से किसी रिक्तता का बोध नहीं होता।

कार्यक्षेत्र

बीए पास करते ही उपेंद्रनाथ अश्क जी अपने ही स्कूल में अध्यापक हो गए, पर 1933 में उसे छोड़ दिया और जीविकोपार्जन हेतु साप्ताहिक पत्र ‘भूचाल’ का संपादन किया। उन्होंने एक अन्य साप्ताहिक ‘गुरु घंटाल’ के लिए प्रति सप्ताह एक रुपए में एक कहानी लिखकर दी। 1934 में अचानक सब छोड़ लॉ कॉलेज में प्रवेश ले लिया और 1936 में लॉ पास किया। उसी वर्ष लंबी बीमारी और प्रथम पत्नी के देहांत के बाद उनके जीवन में एक अपूर्व मोड़ आया। 1936 के बाद अश्क के लेखक व्यक्तित्व का अति उर्वर युग प्रारंभ हुआ। 1941 में अश्क जी ने दूसरा विवाह किया। उसी वर्ष ऑल इंडिया रेडियो में नौकरी की। 1945 के दिसंबर में मुंबई के फिल्म जगत के निमंत्रण को स्वीकार कर वहां फिल्मों में लेखन का कार्य करने लगे। 1947-1948 में अश्क जी निरंतर अस्वस्थ रहे। पर यह उनके साहित्यिक सृजन की उर्वरता का स्वर्ण-समय था। 1948 से 1953 तक के वर्ष अश्क जी के जीवन में संघर्ष के वर्ष रहे। इन्हीं दिनों अश्क यक्ष्मा के चंगुल से बचकर इलाहाबाद आए। उन्होंने नीलाभ प्रकाशन गृह की व्यवस्था की, जिससे उनके संपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व को रचना और प्रकाशन दोनों दृष्टि से सहज पथ मिला। अश्क जी ने कहानी, उपन्यास, निबंध, लेख, संस्मरण, आलोचना, नाटक, एकांकी, कविता आदि के क्षेत्रों में कार्य किया।

कृतियां

उर्दू के सफल लेखक उपेंद्रनाथ अश्क ने मुंशी प्रेमचंद की सलाह पर हिंदी में लिखना आरंभ किया। 1933 में प्रकाशित उनके दूसरे कहानी संग्रह ‘औरत की फितरत’ की भूमिका मुंशी प्रेमचंद ने ही लिखी थी। अश्क ने इससे पहले भी बहुत कुछ लिखा था। उर्दू में ‘नव-रत्न’ और ‘औरत की फितरत’ उनके दो कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके थे। प्रथम हिंदी संग्रह ‘जुदाई की शाम का गीत’ (1933) की अधिकांश कहानियां उर्दू में छप चुकी थीं। जैसा कि अश्क जी ने स्वयं लिखा है, 1936 के पहले की ये कृतियां उतनी अच्छी नहीं बनी। अनुभूति का स्पर्श उन्हें कम मिला था। 1936 के बाद अश्क जी की कृतियों में सुख-दुखमय जीवन के व्यक्तिगत अनुभव से अद्भुत रंग भर गया।

नाटक

नाटक के क्षेत्र में 1937 से लेकर उन्होंने जितनी कृतियां संपूर्ण नाटक और एकांकी के रूप में लिखी हैं, सब प्रायः अपने लेखनकाल के उपरांत उसी वर्ष क्रम से प्रकाशित हुई हैं। अश्क जी के नाटक ‘अलग अलग रास्ते’ में विवाह, प्रेम और सामाजिक प्रतिष्ठा की समस्या को प्रस्तुत किया गया है। वर्तमान समाज में व्यवस्था के चक्र में उलझी दो नारियों के अंतर्मन में बसने वाली पीड़ा, घायल संस्कार और प्यासी खूंखार प्रवृत्तियों का प्रदर्शन हुआ है। इसमें समय, स्थान और कार्य-संपादन की एकता का कलात्मक ढंग से निर्वाह किया गया है।

कहानियां

अंकुर, नासुर, चट्टान, डाची, पिंजरा, गोखरू, बैंगन का पौधा, मेमने, दालिये, काले साहब, बच्चे, उबाल, कैप्टन रशीद आदि अश्क जी की प्रतिनिधि कहानियों के नमूने सहित कुल डेढ़-दो सौ कहानियों में अश्क जी का कहानीकार व्यक्तित्व सफलता से व्यक्त हुआ है।

काव्य ग्रंथ

दीप जलेगा (1950), चांदनी रात और अजगर (1952), बरगर की बेटी (1949) इनके कविता संग्रह हैं।

समृद्धता का अनुमान

सृजन की इतनी क्षमता से सहज ही अश्क जी की लेखन शक्ति और भाव जगत् की समृद्धता का अनुमान लगाया जा सकता है। उपन्यास, नाटक, कहानी और काव्य क्षेत्र में अश्क जी की उपलब्धि मुख्यतः नाटक, उपन्यास और कहानी में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। गिरती दीवार और गर्म राख हिंदी उपन्यास के क्षेत्र में यथार्थवादी परंपरा के उपन्यास हैं। संपूर्ण नाटकों में छठा बेटा, अंजोदीदी और कैद अश्क जी की नाट्यकला के सफलतम उदाहरण हैं। एकांकी नाटकों में भंवर, चरवाहे, चिलमन, तौलिए और सूखी डाली अश्क जी की एकांकी कला के सुंदरतम उदाहरण हैं। अश्क जी के समस्त चरित्र उपन्यास, नाटक अथवा कहानी किसी भी साहित्य प्रकार में सर्वथा यथार्थ हैं। उनसे सामाजिक और वैयक्तिक जीवन की समस्त समस्याओं-राग द्वेष का प्रतिनिधित्व होता है।

यादगार घटनाएं

हिंदी साहित्य की यादगार बातों में उपेंद्रनाथ अश्क से जुड़ा हुआ परचून वाला उल्लेख भी मशहूर है। इलाहाबाद में अश्क जी ने परचून की दुकान खोली। मीडिया ने इसे उनके किसी किस्म के असंतोष या मोहभंग से जोड़ते हुए खबर प्रचारित की। गौरतलब है कि तब का मीडिया राजनीतिक दांव-पेंच के साथ-साथ साहित्य की अखाड़ेबाजी को भी खबरों में खूब तरजीह देता था। खैर, परचून तक तो बात ठीक थी, मगर धन्य है अनुवाद आधारित पत्रकारिता जिसने इसमें सिर्फ चूना देखा और बात चूने की दुकान तक गई। कुछ लोगों को यह चूना सचमुच लाइम नजर आया और कुछ को नींबू। उर्वराबुद्धि वालों ने इसमें पानी और जोड़ दिया और प्रचारित हो गया कि अश्क जी इलाहाबाद में नींबू पानी बेच रहे हैं। मामला साहित्यकार की दुर्दशा से जुड़ गया। अश्क जी को खुद सारी बातें साफ करनी पड़ी।

सम्मान और पुरस्कार

उपेंद्रनाथ अश्क जी को सन् 1972 ई. में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उपेंद्रनाथ अश्क को 1965 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

निधन

उपेंद्रनाथ अश्क जी का 19 जनवरी, सन् 1996 ई. में निधन हो गया।


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