एग्जिट पोल का तोल

By: Dec 16th, 2017 12:05 am

चुनावी प्रसन्नता के विषयों में इजाफा करते हुए, एग्जिट पोल ने भाजपा की राष्ट्रीय धार के अनुरूप अपना मत प्रकट किया है। जाहिर है राजनीतिक जीत-हार के वर्तमान दौर में सरकारों का अंकगणित जिस हिसाब से हो रहा है, वहां भाजपा के विक्ट्री स्टैंड का कयास भी स्वाभाविक हो जाता है, इसलिए एग्जिट पोल पर मीन-मेख निकालने से कहीं अधिक जश्न की तैयारियों में हिमाचल-गुजरात को अभी एक दिन और इंतजार करना होगा। हिमाचल के संदर्भ में हैरानी इस बात की है कि इस बार एग्जिट पोल एजेंसियां बढ़ गईं और सियासी मंच पर इलेक्ट्रिक मीडिया अपना सा लगने लगा। यह दीगर है कि हिमाचली संवेदना पर राष्ट्रीय मीडिया और विशेषतौर पर इलेक्ट्रॉनिक के सरोकारों में हमेशा उपेक्षा भरी निगाह रही है। बहरहाल एग्जिट पोल ने आफत में फंसी कांग्रेस को जबरदस्त धक्का देते हुए यह सोचने पर विवश किया होगा कि अंततः चुनावी अभियान उसे बार-बार कोरा कागज क्यों साबित कर रहा है। जहां तक हिमाचल का प्रश्न है और चुनावी तैयारियों में दोनों दलों की संगठनात्मक शक्ति का अवलोकन करें, तो भाजपा में प्राण फूंकती मशक्कत व मंजिल थी, जबकि कांग्रेस के भीतर आंतरिक अंगारे और अहंकार का बंटवारा था। हम एग्जिट पोल को न तो सौ फीसदी सत्य ठहरा रहे हैं और न ही इस संभावना को नजरअंदाज कर रहे कि जब वास्तविक परिणाम आएंगे तो आंकड़े अलग करवट भी बैठ सकते हैं, फिर भी कांग्रेस के बीच विदूषण तथा भाजपा के बीच विदुर दिखाई देते रहे हैं। कांग्रेस और भाजपा के बीच जीत की जिद्द का मुकाबला भी रहा। कहना न होगा कि भाजपा न केवल अपनी पारी की प्रतीक्षा में उत्सुक रही, बल्कि पार्टी ने चुनावी अखाड़े को निरंतर बड़ा करते हुए वर्जिश भी की। दूसरी ओर कांग्रेस सरकार से पार्टी की लड़ाई सर्वविदित है। ऐसे में नतीजों से पहले अगर एग्जिट पोल की शाबाशी भाजपा को मिल रही है, तो इसके पीछे ग्रास रूट तक पार्टी का ढांचा खड़ा है। परिणाम जो भी हो, कांग्रेस को यह स्वीकार करना होगा कि जमीन पर खड़ा होने के लिए पसीना बहाना पड़ता है। बहरहाल एग्जिट पोल के आंकड़े भाजपा के समर्थक बनकर हिमाचल में नए आगाज का प्रचार कर रहे हैं और इससे पार्टी का मनोबल एक नए स्तर पर पहुंचेगा, लेकिन राजनीतिक कसरतों से हटकर यह आम हिमाचली मतदाता की कड़ी कसौटी भी है जो हर बार विकल्प के रूप में सरकारें बदल देता है। बेशक एग्जिट पोल का राष्ट्रीय अर्थ महज जीत तक विश्लेषण करे, हिमाचल के संदर्भ में इसकी पड़ताल जरूर होगी। यह इसलिए कि जो मुद्दे देश के नाम पर गुजरात में भिड़ंत करते दिखे, उनसे भिन्न हिमाचली विषयों की शालीनता मौजूद रही। गुजराती चुनाव में भाजपा-कांग्रेस का स्थानीय पक्ष व महत्त्व गौण रहा, लेकिन हिमाचल इसके विपरीत अपने नेताओं की पहचान में इस बार हर विधानसभा क्षेत्र का व्यक्तित्व जरूर निश्चित करता रहा है। जब चुनाव परिणाम आएंगे, तो सबसे रोचक पहलू हर विधानसभा क्षेत्र में मतदाता के व्यवहार को समझ कर ही मालूम होगा। गुजरात में जाति, धर्म और राष्ट्र के विविध पहलुओं पर समीकरण स्थापित करने की कोशिश हुई, जबकि हिमाचली मतदाता की जागरूकता के इर्द-गिर्द मुद्दों का नाच हुआ है। देखना यह होगा कि इस बार मतदाता की खामोशी में कितने राज छिपे हैं। क्या मतदाता ने मात्र सरकार बदलने को तवज्जो दी, केंद्र के समीकरणों को अंगीकार किया या प्रत्याशियों के बीच हिमाचली अक्स को खोजा है। एग्जिट पोल का वर्तमान प्रारूप इसलिए भी हैरान करता है कि किस तरह और किस अनुभव से बाहरी एजेंसियों ने हिमाचली मूड को पढ़ लिया, जबकि राजनीतिक तौर पर भी मतदाता की अस्पष्टता, इस बार न जाने कौन सा गूढ़ रहस्य छिपा कर बैठी रही। एग्जिट पोल के वर्तमान आंकड़े जो भी कहें, लेकिन जब इसकी तुलना वास्तविक परिणाम से होगी, तो यह मीडिया अध्ययन व अनुभव की सबसे बड़ी बिसात होगी। चुनाव के हिमाचली परिदृश्य के साथ चले स्थानीय मीडिया ने इस बार बड़े ढोल नहीं बजाए हैं, फिर भी कयासों के आंगन में भाजपा की तरफ अधिक धूप इसलिए देखी गई क्योंकि राजनीतिक पारी का हिसाब यही बताता रहा है। अब क्योंकि एग्जिट पोल ने भाजपा की जीत पुख्ता कर दी है, तो परिणामों की बरसात में भीगते यथार्थ में हम सभी आगामी सोमवार के दिन यह जान पाएंगे कि राजनीति में मतदाता की श्रेष्ठता का अंदाजा लगाना कितना कठिन है।

 


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