और बेहतर कर सकता है बांग्लादेश

By: Dec 18th, 2017 12:10 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

बांग्लादेशी लोगों को पाकिस्तान यह बात याद दिला रहा है कि वे पूर्वी पाकिस्तान के हिस्से के रूप में ही ठीक थे, अब उनकी स्थिति ठीक नहीं है। इससे भारत विरोधी भावनाएं भी फैल रही हैं, क्योंकि उसे एक शोषक के रूप में देखा जा रहा है। एक स्वतंत्र देश के नागरिक के रूप में होने के बावजूद बांग्लादेशी लोगों को अभी तक आर्थिक स्वतंत्रता हासिल नहीं हो पाई है। शिक्षित लोगों में 40 फीसदी युवा बेरोजगार हैं। इस निराशा के कारण यह भावना फैलती जा रही है कि देश में कुछ भी अच्छा नहीं हो पा रहा है…

46 वर्षों के बाद भी बांग्लादेश की स्वतंत्रता मेरी स्मृति में जीवंत बनी हुई है। मैं भारत का पहला पत्रकार था जो स्वतंत्रता के बाद ढाका पहुंचा। मेरी प्रथम यात्रा प्रेस क्लब के लिए थी, जहां मैंने भारत-विरोधी टिप्पणियां सुनीं। जब मैंने स्वादिष्ट भोजन स्मोक्ड हिल्सा का आर्डर दिया, तो वहां बैठा एक आदमी बोला कि हिल्सा अब कोलकाता में उपलब्ध है, ढाका में नहीं। इस बात से मुझे बहुत दुख हुआ। प्रेस क्लब में हुई भारत विरोधी टिप्पणी को लेकर मैंने बांग्ला-बंधु शेख मुजीबुर रहमान से शिकायत की। उन्होंने मेरी भावनाओं की कद्र की और जब मैंने उनके सामने यह बात रखी कि मुक्ति वाहिनी की कार्रवाई के दौरान छह हजार भारतीय जवानों ने भी शहादत पाई, तो उन्होंने हंसते हुए मेरी निराशा का जवाब दिया। उन्होंने कहा कि बंगाली लोग उस एक गिलास पानी तक को नहीं भूलते जो उन्हें किसी द्वारा पेश किया जाता है। ऐसी स्थिति में बंगाली लोग भारतीय सेना द्वारा दिए गए बलिदान को कैसे भूल सकते हैं। इसी समय मेरी मुलाकात दि डेली स्टार के संस्थापक सैयद मोहम्मद अली से भी हुई। उन्होंने मुझसे शिकायत की कि भारत केवल पाकिस्तान की हार को लेकर लिख रहा था और बांग्लादेशी लोगों ने अपने देश को आजाद कराने के लिए जो बलिदान दिए, उस पर एक भी शब्द नहीं लिखा गया। वहां से वापसी के बाद मैंने दिल्ली में प्रेस क्लब की एक बैठक करवाई और सदस्यों से यह बात शेयर की कि बांग्लादेश के लोग किस तरह निराश महसूस कर रहे हैं। इस तरह की चूक कैसे हुई? आंदोलन में शामिल रहे बंगाली पत्रकारों ने ढाका में बांग्लादेश का झंडा फहराए जाने के बाद मिशन छोड़ दिया था। कई साल बाद मुझे पता चला कि भारत सरकार को लगा कि स्वतंत्रता के लिए आगे की कार्रवाई की जरूरत नहीं है। यह इस बात से चिंतित थी कि कहीं दो बंगाल को एक होने की भावनाओं को नया उभार न मिल जाए। यही कारण था कि बांग्लादेश का विवरण करने तक को निरुत्साहित किया गया। यह सच है कि बांग्लादेशी पत्रकारों के लिए बंगाल को आजाद देखने का मिशन पूरा हो चुका था। उन्हें आंदोलन को कवरेज देते हुए यह स्टोरीज करनी चाहिए थी कि किस तरह बांग्लादेशियों के साथ-साथ मुक्ति वाहिनी का साथ देते हुए भारतीय सैनिकों ने भी बलिदान दिए। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारतीय कैबिनेट में बांग्लादेश के प्रभारी डीपी धर ने मुझे यह प्रभाव दिखलाया कि बांग्लादेश के विकास के साथ भारत पंचवर्षीय योजना का परस्पर अनुबंध करेगा। परंतु ऐसा नहीं हुआ तथा समझा जाता है कि ढाका को इससे निराशा हुई। धर की जिन बातों में रुचि थी, उनमें एक यह थी कि भारत को अवामी लीग के शासन को उखाड़ने के लिए एक और सैन्य कार्रवाई न करनी पड़े। धर की इच्छा थी कि भारतीय सेना को जल्द ही बांग्लादेश से बाहर आ जाना चाहिए। इसी के अनुरूप सेना लौट भी आई। जब सैन्य कार्रवाई हुई और टैंकों का प्रयोग किया गया, तो नई दिल्ली को पछतावा हुआ कि यह उसकी प्रतिज्ञा के अनुकूल नहीं है। ये वे टैंक थे जो मिस्र ने दिए थे। उन्हें मुजीबुर रहमान के पूरे परिवार को खदेड़ने व हटाने के लिए प्रयोग किया गया। केवल शेख हसीना बच पाईं जो उस समय जर्मनी में थीं। इससे आगे की कहानी सभी को पता है। एक बार जब बांग्लादेश आजाद हो गया तो नई दिल्ली ने खुद को ढाका से दूर रखना ही उचित समझा। इसका कारण यह था कि वह पाकिस्तान के साथ अपनी बाड़ की मरम्मत करना चाहती थी। रावलपिंडी पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान का बंटवारा भुला नहीं पाई और उसने इसके लिए नई दिल्ली को माफ भी नहीं किया। भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता के दौरान इस बात का उल्लेख नहीं किया जा सका, लेकिन इस्लामाबाद में बैठे शासकों के दिमाग में यह बात अच्छी तरह घर कर गई थी। लंबे समय तक पाकिस्तान ने बांग्लादेश को मान्यता नहीं दी। प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने संयुक्त राष्ट्र की एक बैठक में कहा कि वह भारत के साथ 100 वर्षों तक लड़ने को तैयार हैं तथा तब तक संबंधों को सामान्य नहीं बनाएंगे, जब तक कमजोर केंद्र सरकार के साथ एक एकीकृत राष्ट्र वाले मूल माउंटबेटन प्लान को लागू नहीं किया जाता। उल्लेखनीय है कि मूल माउंटबेटन प्लान में पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान का हिस्सा बनाए रखने की हिमायत की गई थी। रिटायरमेंट के बाद माउंटबेटन ब्रॉडलैंड्स में रह रहे थे। मैं वहां उनसे मिला तो उन्होंने बताया कि उन्होंने भुट्टो को इस बारे आगाह कर दिया था कि करीब 25 वर्षों बाद पूर्वी पाकिस्तान, पाकिस्तान का हिस्सा नहीं रहेगा। इतिहास गवाह है, ऐसा ही हुआ और उनकी भविष्यवाणी सच साबित हुई। भारत-पाकिस्तान के मध्य सीमा खींचने वाले लार्ड रैडक्लिफ ने मुझे बताया था कि पूर्व में मसले हल करते हुए उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई, लेकिन पश्चिम में उन्हें विकट स्थितियों का सामना करना पड़ा। ढाका में उत्तराधिकारी सरकारों को यह श्रेय जाता है कि उन्होंने विगत 30 वर्षों में छह फीसदी विकास दर को बनाए रखा है। वहां के कपड़ा उद्योग को पूरे विश्व में सम्मान मिल रहा है। इसके बावजूद हसीना विरोधी शक्तियां अब तक बरकरार गरीबी को मसला बनाते हुए प्रदर्शन कर रही हैं। इनमें कुछ पाकिस्तान समर्थक तत्त्व व कट्टरवादी लोग भी शामिल हैं। इस्लामाबाद इन लोगों की आर्थिक मदद भी कर रहा है। बांग्लादेशी लोगों को पाकिस्तान यह बात याद दिला रहा है कि वे पूर्वी पाकिस्तान के हिस्से के रूप में ही ठीक थे, अब उनकी स्थिति ठीक नहीं है। इससे भारत विरोधी भावनाएं भी फैल रही हैं, क्योंकि उसे एक शोषक के रूप में देखा जा रहा है। एक स्वतंत्र देश के नागरिक के रूप में होने के बावजूद बांग्लादेशी लोगों को अभी तक आर्थिक स्वतंत्रता हासिल नहीं हो पाई है। शिक्षित लोगों में 40 फीसदी युवा बेरोजगार हैं। इस निराशा के कारण यह भावना फैलती जा रही है कि देश में कुछ भी अच्छा नहीं हो पा रहा है, लेकिन यहां स्थानापन्न संतोष है कि बांग्लादेश की तुलना में पाकिस्तान अब एक आर्थिक समस्या नहीं है। मेरा मानना है कि भारत केवल खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी व शेख हसीना वाली अवामी लीग के बीच दुश्मनी में गिरावट से बचना चाहता है। दोनों बेगमों के बीच चल रही लड़ाई से बांग्लादेश की तरक्की भी प्रभावित हो रही है। प्रधानमंत्री शेख हसीना भाग्यशाली हैं कि उनके विरोधी अब इतने ताकतवर नहीं रहे हैं। खालिदा जिया ने हाल में कई चुनावों का बहिष्कार किया है।

उनकी पार्टी में बिखराव भी हुआ है तथा बीएनपी की देश में स्थिति अब तीसरे नंबर की है। खालिदा जिया पर आरोप लगते रहे हैं कि वह चुनाव में लाभ के लिए धर्म का दुरुपयोग करती रही हैं, हालांकि वह इस तरह के आरोपों से इनकार करती रही हैं। फिर भी यह तथ्य है कि जमायते इस्लामी तथा इस्लामी ओइक्या जोटे जैसे कट्टरवादी संगठन उनके चुनावी सहयोगी हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं कि उनके पक्ष में गैर उदारवादी तत्त्व मजबूत हो रहे हैं। यह आम धारणा है कि अगर खालिदा फिर से सत्ता में लौटती हैं तो पाकिस्तान समर्थक तत्त्व व कट्टरवादी शक्तियां मजबूत होंगी। यह स्थिति भारत के लिए अनुकूल व सुविधाजनक नहीं होगी क्योंकि पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई बांग्लादेश को भारत की सीमाओं पर उसके खिलाफ कार्रवाइयों व अभियानों में प्रयोग करती रही है। इससे बांग्लादेश के उदारवादी तत्त्वों को भी क्षति पहुंचेगी। ये लोग नहीं चाहते कि वहां कट्टरवाद व गैर-उदारवाद मजबूत हो। एक तरह से उदारवादी और भारत एक ही बोट में सवार होकर चलते रहते हैं।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com


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