कमजोरी को भी ताकत बनाएं दिव्यांग

By: Dec 2nd, 2017 12:05 am

हरिदास प्रजापति

लेखक, हि.प्र. दिव्यांग-विकलांग कल्याण संघ के सलाहकार हैं

समाज में कई बार दिव्यांग हीन दृष्टि झेलने को मजबूर होते हैं। जो लोग किसी दुर्घटना या प्राकृतिक आपदा का शिकार हो जाते हैं अथवा जो जन्म से ही विकलांग होते हैं, समाज कई बार उन्हें हीन दृष्टि से देखता है। विवेक के आधार पर ये लोग समाज में सहायता एवं विशेष सहानुभूति के पात्र हैं…

विश्व के आर्थिक परिदृश्य में झांककर देखें, तो भारत आज विकासशील देशों की फेहरिस्त में शुमार है। हर दिन आर्थिक जगत की कोई न कोई नई उपलब्धि भारत के नाम दर्ज हो रही है। भारत को निकट भविष्य में विकसित राष्ट्र या विश्व गुरु बनाने के न केवल सपने संजोए जा रहे हैं, बल्कि उन्हें पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत की जा है। आकांक्षाओं-उम्मीदों के इस उजले फलक पर कुछ अंधियारे पिंड हमारे हिस्से की रौनक को बिगाड़ रहे हैं। इन्हीं में से एक है अक्षम लोगों के प्रति समाज में हीन भावना। समाज में ये लोग हीन दृष्टि झेलने को मजबूर हैं। जो लोग किसी दुर्घटना या प्राकृतिक आपदा का शिकार हो जाते हैं अथवा जो जन्म से ही विकलांग होते हैं, समाज कई बार उन्हें हीन दृष्टि से देखता है। विवेक के आधार पर ये लोग समाज में सहायता एवं विशेष सहानुभूति के पात्र हैं। इसी भावना को जीवंत बनाए रखने हेतु तीन दिसंबर को विश्व विकलांगता दिवस मनाया जाता है। अक्षम-दिव्यांगों की आज देश में एक बड़ी आबादी है। प्रकृति आपदा प्रकोप, दुर्घटनाएं या जन्मजात कर्म, कारण चाहे जो भी रहे हों, लेकिन समाज में इनकी उपस्थिति एक सच्चाई है। यह भी उतना ही सच है कि समाज में इन्हें कई मौकों पर सौतेला व्यवहार झेलना पड़ता है। भोपाल गैस त्रासदी, जो दो दिसंबर, 1984 को यूनियन कार्बाइड के रासायनिक संयंत्र से जहरीले रसायन के रिसाव के कारण हुई, में रिपोर्ट के अनुसार पांच लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई थी। भीषण आपदा के 72 घंटों के दौरान हजारों लोग विकलांग-दिव्यांग हो गए थे। यह भयावह दुर्घटना आज भी विश्व इतिहास की सबसे बड़ी औद्योगिक प्रदूषण दुर्घटनाओं में शामिल है। इसी प्रकार दिव्यांगता के और भी कई कारण हैं। आतंकवाद के कारण हमारे कई वीरों को जख्म मिल रहे हैं। हर दिन की दुर्घटनाओं, जिनमें सड़क हादसे भी शामिल हैं, में हर दिन कई लोगों को जिंदगी भर के लिए जख्म मिल रहे हैं। दुख का विषय यह कि सरकार के पास आज तक इनके बारे में सही आंकड़े ही उपलब्ध नहीं हैं। सरकार इस कार्य को भी बोझ की तरह ले रही है, जिससे इसकी गंभीरता उजागर होती है। हालांकि मौजूदा केंद्र सरकार ने इस दिशा में जरूर कुछ कारगर योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन इसके बाद इसे यह जानने की फुर्सत नहीं मिली कि लक्षित वर्ग को इन योजनाओं का कितना लाभ मिला।

सरकार यदि चाहे तो कुछ विशेष प्रावधान करके शारीरिक या मानसिक चुनौतियों से जूझ रहे अपने ही नागरिकों को कुछ राहत प्रदान कर सकती है। इसके लिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन में बढ़ोतरी व बिना भेदभाव के सबको पेंशन अदायगी पहला सुझाव रहेगा। इसके अलावा पांच प्रतिशत आरक्षण सभी स्तरों पर लागू करना होगा। स्वरोजगार हेतु विकलांगों को कम ब्याज पर ऋण दें। समस्त दिव्यांगों को नौकरियों में ऊपरी आयु सीमा में छूट हो। विशेष शिक्षा व प्रशिक्षण संस्थानों का खोलिए। विशेष सेवाओं के साथ-साथ कृत्रिम अंग व स्वरोजगार की व्यवस्था हो। दिव्यांग कर्मचारियों को मिलने वाले विशेष भत्ते में बढ़ोतरी भी जरूरी है। शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों को आर्थिक सहायता व वजीफा दें। पिछड़े क्षेत्रों में दिव्यांगता जांच शिविर लगाना, विकलांगों की सही गणना करके उन्हें मिलने वाली सुविधाओं से अवगत करवाना, विकलांगों की सही पहचान करने हेतु चिकित्सकों को निष्पक्षता से मेडिकल प्रमाण पत्र देना, दिव्यांगों का जीवन बीमा करना, आईआरडीपी व अन्य कार्यक्रमों में चयन हेतु प्राथमिकता देना भी बेहद आवश्यक है। खेलों में दिव्यांग खिलाडि़यों को अधिक आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाना व प्रोत्साहित करना चाहिए। क्या समाजवाद, मार्क्सवाद, लेनिनवाद, माओवाद, लोहियावाद, अंबेडकरवाद, पूंजीवाद, परिवारवाद तथा भाई-भतीजा आदि वादों से ऊपर उठकर समस्त दिव्यांग समाज को ये बुनियादी सेवाएं व व्यवस्थाएं मिल सकती हैं?

प्रदेश सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार द्वारा सीआरसी पुनर्वास केंद्र सुंदरनगर, विकलांग कल्याण समिति मंडी, प्रेम आश्रम ऊना, विकलांग उपकार केंद्र नालागढ़, नारायण सेवा संस्थान, चेतना सोसायटी बिलासपुर व रेडक्रॉस सोसायटी आदि कई संस्थान दिव्यांगों के कल्याण हेतु संघर्षरत हैं। इन तमाम प्रयासों के बावजूद दिव्यांगों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए काफी कुछ किया जाना शेष है। अक्षमों व उनसे संबंधित एनजीओज का भी यह दायित्व बनता है कि समस्त कार्यक्रमों व सहायता अनुदान आदि आर्थिक लाभ का उचित उपयोग करें। इस महत्त्वाकांक्षा के साथ उपेक्षित दिव्यांग समुदाय अपने स्तर पर सजग होकर इन सुविधाओं व योजनाओं का  उचित उपयोग करना सीखे। सरकारों व संबंधित विभागों को भी चाहिए कि दिव्यांगों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता व अन्य सुविधाओं की समय-समय पर समीक्षा करें।

कुछेक भयानक बीमारियों के शिकार हुए अक्षमों को प्रदेश से बाहर भी इलाज हेतु जाना पड़ता है, जबकि उन्हें दी जा रही बस पास की सुविधा केवल हिमाचल की सीमाओं तक ही सीमित है। अतः इनकी जरूरतों को समझते हुए बाहर जाने वालों को भी सरकारी बसों में बस पास सुविधा का बंदोबस्त दूसरे राज्यों की सरकारों के सहयोग से करना चाहिए। दुनिया में आज हजारों-लाखों व्यक्ति विकलांगता का शिकार हैं। विकलांगता अभिशाप नहीं है। शारीरिक अभावों को यदि प्रेरणा बना लिया जाए, तो ये व्यक्तित्व विकास में सहायक हो जाते हैं।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App