कवि प्रदीप : देश भक्ति के गाने लिखकर समृद्ध किया साहित्य

By: Dec 10th, 2017 12:04 am

देशभक्ति के गाने लिखकर समृद्ध किया साहित्य

कवि प्रदीप (जन्म : 6 फरवरी, 1915, उज्जैन, मध्य प्रदेश;  मृत्यु : 11 दिसंबर, 1998, मुंबई, महाराष्ट्र) का मूल नाम रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी था। प्रदीप हिंदी साहित्य जगत् और हिंदी फिल्म जगत् के एक अति सुदृढ़ रचनाकार रहे। कवि प्रदीप ‘ऐ मेरे वतन के लोगो’ सरीखे देशभक्ति गीतों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धांजलि में यह गीत लिखा था। भारत रत्न से सम्मानित स्वर कोकिला लता मंगेशकर द्वारा गाए इस गीत का तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में 26 जनवरी 1963 को दिल्ली के रामलीला मैदान से सीधा प्रसारण किया गया था। यूं तो कवि प्रदीप ने प्रेम के हर रूप और हर रस को शब्दों में उतारा, लेकिन वीर रस और देश भक्ति के उनके गीतों की बात ही कुछ अनोखी थी। उनके पिता का नाम नारायण भट्ट था। प्रदीप जी उदीच्य ब्राह्मण थे।

शिक्षा

कवि प्रदीप की शुरुआती शिक्षा इंदौर के शिवाजी राव हाई स्कूल में हुई, जहां वह सातवीं कक्षा तक पढ़े। इसके बाद की शिक्षा इलाहाबाद के दारागंज हाई स्कूल में हुई। इसके बाद इंटर मीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। दारागंज उन दिनों साहित्य का गढ़ हुआ करता था। वर्ष 1933 से 1935 तक का इलाहाबाद का काल प्रदीप जी के लिए साहित्यिक दृष्टिकोण से बहुत अच्छा रहा। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की और अध्यापक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया। विद्यार्थी जीवन में ही हिंदी काव्य लेखन एवं हिंदी काव्य वाचन में उनकी गहरी रुचि थी।

विवाह

कवि प्रदीप का विवाह मुंबई निवासी गुजराती ब्राह्मण चुन्नीलाल भट्ट की पुत्री सुभद्रा बेन से 1942 में हुआ था। विवाह से पूर्व कवि प्रदीप ने अपनी भावी पत्नी से एक प्रश्न पूछा था-मैं आग हूं, क्या तुम मेरे साथ रह सकोगी। इसका बड़ा माकूल उत्तर सुभद्रा बेन ने दिया-जी हां, मैं पानी बनकर रहूंगी। इसका निर्वाह उन्होंने जीवन भर किया।

कवि सम्मेलनों में शिरकत

इलाहाबाद के साहित्यिक वातावरण में कवि प्रदीप की अंतश्चेतना में दबे काव्यांकुरों को फूटने का पर्याप्त अवसर मिला। यहां उन्हें हिंदी के अनेक साहित्य शिल्पियों का स्नेहिल सान्निध्य मिला। वह गोष्ठियों में कविता का पाठ करने लगे। इलाहाबाद में एक बार हिंदी दैनिक अर्जुन के संपादक और स्वामी श्रद्धानंद के सुपुत्र पं. विद्यावाचस्पति के सम्मान में एक कवि-गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में 20 वर्षीय तरुण प्रदीप ने अपने सुरीले काव्य-पाठ से सभी को मुग्ध कर दिया। उस दिन काव्य जगत् में एक नया सितारा चमका।

फिल्मी पदार्पण

वर्ष 1939 में लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद कवि प्रदीप ने शिक्षक बनने का प्रयास किया, लेकिन इसी दौरान उन्हें मुंबई में हो रहे एक कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने का न्योता मिला। कवि सम्मेलन में उनके गीतों को सुनकर बाम्बे टॉकीज स्टूडियो के मालिक हिमांशु राय काफी प्रभावित हुए और उन्होंने प्रदीप को अपने बैनर तले बन रही फिल्म ‘कंगन’ के गीत लिखने की पेशकश की। 1939 में प्रदर्शित फिल्म कंगन में उनके गीतों की कामयाबी के बाद प्रदीप बतौर गीतकार फिल्मी दुनिया में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। इस फिल्म के लिए लिखे गए चार गीतों में से प्रदीप ने तीन गीतों को अपना स्वर भी दिया था। सन् 1943 में मुंबई की बॉम्बे टॉकीज की पांच फिल्मों-‘अनजान’, ‘किस्मत’, ‘झूला’, ‘नया संसार’ और ‘पुनर्मिलन’ के लिए भी कवि प्रदीप ने गीत लिखे।

छद्म नाम से गीत लेखन

फिल्मीस्तान फिल्म निर्माण संस्था से अनुबंधित होने पर भी आंतरिक राजनीति के कारण कवि प्रदीप से गीत नहीं लिखाए जा रहे थे। इससे दुखी होकर वह मिस कमल बी.ए. के छद्म नाम से गीत लिखने लगे। उन्होंने चार फिल्मों के लिए इसी नाम से गीत लिखे।

प्रदीप से कवि प्रदीप

कवि सम्मेलनों में सूर्यकांत त्रिपाठी निरालाजी जैसे महान् साहित्यकार को प्रभावित कर सकने की क्षमता रामचंद्र द्विवेदी में थी। उन्हीं के आशीर्वाद से रामचंद्र ‘प्रदीप’ कहलाने लगे। किंतु एक बार हिमांशु राय ने कहा कि यह रेलगाड़ी जैसा लंबा नाम ठीक नहीं है, तभी से उन्होंने अपना नाम प्रदीप रख लिया। प्रदीप नाम के पीछे उनके जीवन का एक रोचक प्रसंग भी है। उन दिनों मुंबई में अभिनेता और कलाकार प्रदीप कुमार भी प्रसिद्ध हो रहे थे, जिस कारण अक्सर गलती से डाकिया कवि प्रदीप की चिठ्ठी अभिनेता प्रदीप के पते पर डाल देता था। डाकिया सही पते पर पत्र दे, इस वजह से उन्होंने प्रदीप के पहले कवि शब्द जोड़ दिया और यहीं से कवि प्रदीप के नाम से वह प्रख्यात हुए।

स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान

कवि प्रदीप गांधीवादी विचारधारा के कवि थे। प्रदीप जी ने जीवन मूल्यों की कीमत पर धन-दौलत को कभी महत्त्व नहीं दिया। कठोर संघर्षों के बावजूद उनके निवास स्थान ‘पंचामृत’ पर स्वर्ण के कंगुरे भले ही न मिलें, परंतु वैश्विक ख्याति का कलश जरूर दिखेगा। प्रदीप जी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। एक बार स्वतंत्रता के आंदोलन में उनका पैर फ्रैक्चर हो गया था और कई दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा। वह अंग्रेजों के अनाचार-अत्याचार आदि से बहुत दुखी होते थे। उनका मानना था कि यदि आपस में हम लोगों में ईर्ष्या-द्वेष न होता तो हम गुलाम न होते। परम देशभक्त चंद्रशेखर आजाद की शहादत पर कवि प्रदीप का मन करुणा से भर गया था।

देशभक्ति के गीत

वर्ष 1940 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था। देश को स्वतंत्र कराने के लिए छिड़ी मुहिम में कवि प्रदीप भी शामिल हो गए और इसके लिए उन्होंने अपनी कविताओं का सहारा लिया। अपनी कविताओं के माध्यम से प्रदीप देशवासियों में जागृति पैदा किया करते थे। 1940 में ज्ञान मुखर्जी के निर्देशन में उन्होंने फिल्म ‘बंधन’ के लिए भी गीत लिखा। यूं तो फिल्म बंधन में उनके रचित सभी गीत लोकप्रिय हुए, लेकिन ‘चल चल रे नौजवान…’ के बोल वाले गीत ने आजादी के दीवानों में एक नया जोश भरने का काम किया।

फिल्म जागृति

वर्ष 1954 में ही फिल्म ‘जागृति’ में उनके रचित गीत की कामयाबी के बाद वह शोहरत की बुंलदियों पर जा बैठे। यह फिल्म कवि प्रदीप के गानों के लिए आज भी स्मरणीय है। प्रदीप द्वारा रचित गीत ‘हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के’ और ‘दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’ जैसे गीत आज भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हैं।

स्वतंत्र लेखन

मिस कमल बी.ए. के नकली नाम से लिखते-लिखते और फिल्मीस्तान की राजनीति से प्रदीप ऊब चुके थे। अतः उन्होंने फिल्मीस्तान से अलग होकर, अपने सहयोगियों की मदद से ‘लोकमान्य प्रोडक्शंस’ नामक फिल्म निर्माण संस्था बनाई। 1949 में पहली फिल्म आई ‘गर्ल्स स्कूल’, जिसमें प्रदीप के नौ गाने थे। सी. रामचंद्र और अनिल विश्वास जैसे संगीतकारों का निर्देशन, लता मंगेशकर और शमशाद बेगम का गायन भी कोई करिश्मा नहीं कर पाया। कवि प्रदीप समझ गए कि फिल्म कंपनी चलाना उनके बस की बात नहीं है, क्योंकि इससे उनकी मुख्य धारा कुंठित हो रही थी। अतः वह लोकमान्य प्रोडक्शंस से अलग हो गए और फिर स्वतंत्र रूप से लिखने लगे। बॉम्बे टॉकीज ने इस अवसर का लाभ उठाया और अपनी फिल्म ‘मशाल’ (1950) के लिए उनसे सात गीत लिखवाए। इस परिवर्तन का कारण यह था कि बॉम्बे टॉकीज का काम सावक वाचा के साथ अशोक कुमार देख रहे थे, जो प्रदीप से पहले से ही काफी प्रभावित थे।

सम्मान और पुरस्कार

कवि प्रदीप को अनेक सम्मान प्राप्त हुए थे, जिनमें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1961) तथा फिल्म जर्नलिस्ट अवार्ड (1963) शामिल हैं। यद्यपि साहित्यिक जगत् में प्रदीप की रचनाओं का मूल्यांकन पिछड़ गया, तथापि फिल्मों में उनके योगदान के लिए भारत सरकार, राज्य सरकारें, फिल्मोद्योग तथा अन्य संस्थाएं उन्हें सम्मानों और पुरस्कारों से अंलकृत करते रहे। उन्हें सर्वश्रेष्ठ फिल्मी गीतकार का पुरस्कार राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद द्वारा दिया गया। 1995 में राष्ट्रपति द्वारा ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि दी गई और सबसे अंत में, जब कवि प्रदीप का अंत निकट था, फिल्म जगत् में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1998 में भारत के राष्ट्रपति के.आर. नारायणन द्वारा प्रतिष्ठित ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ दिया गया।

निधन

कवि प्रदीप ने अपने जीवन में 1700 गाने लिखे। ‘बंधन’ के अपने गीत ‘रुक न सको तो जाओ तुम’ को यथार्थ करते हुए 11 दिसंबर, 1998 को राष्ट्रकवि प्रदीप का कैंसर से लड़ते हुए 83 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके मर्मस्पर्शी गीतों के कारण लोग उन्हें दीवानगी की हद तक प्यार करते थे।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App