कहीं फोरलेन के नीचे दब न जाए यह चीख

By: Dec 16th, 2017 12:05 am

डा. एलआर शर्मा

लेखक, कालेज काडर के पूर्व प्राचार्य हैं

आश्चर्य तो इस बात का है कि राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल किसी चट्टान पर एक स्लोगन लिखने का तो संज्ञान लेता है, परंतु इस शिमला-धर्मशाला राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में होने वाली विनाश लीला पर उसका ध्यान नहीं जाता। अब माननीय उच्च न्यायालय से निवेदन है कि इस फिजूलखर्ची का स्वतः संज्ञान ले…

सड़कें राष्ट्र के विकास में अहम भूमिका निभाती हैं। इन्हें जीवन रेखाएं भी कहते हैं, परंतु जब भलाई की आड़ में अविवेकपूर्ण कार्य किए जाते हैं, तो विकास विनाश का कारण बन जाता है। यही विनाश लीला शिमला से धर्मशाला राष्ट्रीय राजमार्ग 103 के निर्माण में चल रही है। आज से लगभग तीन वर्ष पूर्व इस राजमार्ग को टू लेन बनाने के लिए करोड़ों रुपए का व्यय करके इसका विस्तारीकरण किया गया। स्वाभाविक ही था कि उस समय भी सड़क के किनारे लगे बिजली के खंभे, पेयजल एवं सिंचाई योजनाओं की नालियां तथा सड़क के किनारे बिछाई गई विभिन्न संचार कंपनियों की भूमिगत लाइनें बर्बाद हुईं। इसके साथ ही सड़क के किनारे बसी क्षेत्र की जनता के घरों को आने-जाने वाले रास्ते तोड़े गए। विकास और सुविधा को ध्यान में रखते हुए जनता ने उसमें पूरा सहयोग दिया, परंतु महज तीन वर्ष के बाद जब टेलीफोन लाइनें पुनः बिछा दी गईं, पेयजल योजनाओं एवं बिजली की बहाली कर दी गई और सड़क के किनारे के बाशिंदों ने अपने संपर्क मार्गों को पुनः ठीक कर लिया, पुनः उसी सड़क का विस्तारीकरण यह कहकर शुरू कर दिया कि यह सड़क पूर्ण रूप से टू लेन नहीं बन पाई है, इसलिए इसे पूरी तरह से टू लेन बनाया जा रहा है।

इस प्रक्रिया में तीन वर्ष पूर्व जो लाखों रुपए की लागत से सीमेंटेड नालियां बनाई गई थीं, उन्हें उखाड़ दिया गया। करोड़ों रुपए का व्यय करके जो रिटेनिंग वॉल्ज (डंगे) लगाए गए थे, वे या तो मिट्टी में दफन हो गए या गिराने पड़े। पेयजल की पाइपें, बिजली के खंभे, संचार लाइनें पुनः बर्बाद हो गईं। सड़क के किनारे से लोग महीनों संपर्क के टूटने से कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, लैंडलाइन फोन ठप हैं। कई जगहों पर बीएसएनएल ने लैंडलाइन इसी कारण से पिछले कई वर्षों से बंद कर दिए हैं। तीन वर्ष पूर्व राष्ट्रीय मार्ग पर जो अरबों रुपए व्यय किए गए, उसका कम से कम 15 वर्षों तक जो उपयोग होना चाहिए था, उसे तीन वर्ष में ही उखाड़ कर जमींदोज कर दिया गया। नदी-नालों से हजारों ट्रक बजरी, रेत निकाला गया और अब उसे मिट्टी में दफन कर दिया गया। बिछाई गई कोलतार को खुरचकर निकाल दिया गया और अभी तक यह कार्य चल ही रहा है, जो अगले छह महीने तक जारी रहेगा।

इसके साथ ही अब इसी राजमार्ग को फोरलेन बनाने के दो सर्वे हो चुके हैं। जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू होने वाली है। स्पष्ट है कि आज करोड़ों का व्यय करके जो डंगे लगाए गए, जो नालियां बनाई गईं, वे एक वर्ष बाद पुनः उखाड़ दी जाएंगी। इससे अन्य असुविधाओं के साथ-साथ लोगों की खून पसीने की कमाई, जो विभिन्न करों के रूप में सरकार ने इकट्ठी की है, उसे पुनः मिट्टी में दबा दिया जाएगा। इस प्रकार छह वर्ष में एक ही राजमार्ग का तीन बार विस्तारीकरण होगा।  जितनी जल्दी शिमला से धर्मशाला वाला एनएच बदल रहा है, इतनी जल्दी तो कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी भी नहीं बदलती है। अब आइए जरा विचार कर लें कि क्या धर्मशाला-शिमला एनएच को फोरलेन बनाना जरूरी है? वस्तुतः किन्हीं दो स्थानों  के बीच फोरलेन सड़क का निर्माण तब किया जाता है, यदि उस सड़क पर यातायात बहुत अधिक हो और निरंतर जाम लगते हों। नंबर दो, यदि वह सड़क पर्यटन की दृष्टि से किसी क्षेत्र की मुख्य सड़क हो। तीसरे, यदि उस सड़क का कोई सामरिक महत्त्व हो। चौथे, यदि वह सड़क विभिन्न महत्त्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्रों को जोड़ती हो। यदि इन चारों कारणों पर गौर किया जाए तो एक भी कारण एनएच-103 को फोरलेन बनाने का समर्थन नहीं करता। धर्मशाला से शिमला तक पांच छोटे कस्बे आते हैं, जहां कभी कभार यातायात जाम हो सकता है, परंतु बाइपास के निर्माण से यह समस्या हल हो सकती है। इनमें से कई स्थानों पर यह समस्या पहले ही हल हो चुकी है। अतः यातायात की अधिकता न होने के कारण फोरलेन की कोई आवश्यकता नहीं है। फोरलेन निर्माण के दूसरे कारण पर्यटन पर यदि दृष्टि डालें तो हम जानते हैं कि हिमाचल प्रदेश में आने वाले पर्यटकों में से एक प्रतिशत पर्यटक भी इस मार्ग का प्रयोग नहीं करते, क्योंकि पर्यटक पठानकोट, ऊना, कीरतपुर, परवाणू या पांवटा साहिब के रास्ते से ही हिमाचल में आते और जाते हैं। शिमला से धर्मशाला मार्ग का कोई सामरिक महत्त्व भी नहीं है। यदि चौथे कारण औद्योगिक क्षेत्र पर विचार करें तो यह राष्ट्रीय राजमार्ग किसी भी औद्योगिक क्षेत्र को आपस में नहीं जोड़ता है। अतः किसी भी दृष्टि से इस राजमार्ग को वर्तमान में फोरलेन बनाया जाना उचित नहीं ठहराया जा सकता है।

फिर भी यदि सरकार इसे बनाने का हठ करे, तो इसे टू लेन बनाने पर जो खर्च किया जा रहा है, उसका अधिकतम भाग रिटेनिंग वॉल्ज और सड़क के किनारे की नालियों के उखड़ने से व्यर्थ हो जाएगा। इसके अतिरिक्त हजारों पेड़ों को काटना होगा तथा जैसा तीन वर्ष पूर्व हुआ और जो अब हो रहा है। आश्चर्य तो इस बात का है कि प्रदेश और राष्ट्र का ग्रीन ट्रिब्यूनल एक चट्टान पर एक स्लोगन लिखने का तो संज्ञान लेता है, परंतु इस विनाश लीला पर उसका ध्यान नहीं जाता। अब माननीय उच्च न्यायालय से निवेदन है कि इस फिजूलखर्ची का स्वतः संज्ञान ले। यदि सब संबंधित नेता, कर्मचारी और अधिकारी इस फिजूलखर्ची पर अंधे और बहरे बने रहेंगे, तो उन्हें एक भीषण जनाक्रोश का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा, क्योंकि जनता अपने करोड़ों रुपए अपनी आंखों के सामने मिट्टी में दफन होते हुए नहीं देख सकती है।

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App