कांग्रेस में ‘मुगल’ राज !

By: Dec 6th, 2017 12:05 am

राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भर दिया है और उनका अध्यक्ष बनना तय है, क्योंकि स्थिति निर्विरोध की है। ऐसी कोई आशंका और संभावना भी नहीं थी कि राहुल गांधी को कोई चुनौती दे सकता है। बेशक यह कांग्रेस का भीतरी चुनाव या चयन है, लेकिन लोकतंत्र में इसकी व्याख्याएं जरूर की जाएंगी। चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय चुनाव के किसी भी सवालिया पहलू पर संज्ञान ले सकते हैं और चुनाव खारिज भी किया जा सकता है। यह दीगर है कि हमारी संवैधानिक संस्थाओं ने ऐसा पंगा अभी तक नहीं लिया है। राहुल गांधी के चुनाव की उपमाएं और तुलनाएं भी कांग्रेस के भीतर से ही आई हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं राज्यसभा सांसद मणिशंकर अय्यर ने ‘मुगल बादशाहत’ का रूपक बांधा है। जहांगीर का बेटा शाहजहां बादशाह बना और शाहजहां ने भी बेटे औरंगजेब को बादशाह बनाया, ताजपोशियां की गईं और उसी लिहाज से इतिहास लिखे गए। मणिशंकर का यह सवाल बेमानी है कि क्या तब चुनाव हुआ था? चुनाव दुनिया की इनसानी सभ्यता और संस्कृतियों में लोकतंत्र की देन है। बादशाहत कभी भी लोकतंत्र नहीं, एक राजा, एक हुकुम की सल्तनत हुआ करती थी, लिहाजा राहुल गांधी के चुनाव को ‘मुगल राज’ से जोड़ना कुतर्क के अलावा कुछ भी नहीं है। वैसे भी 15-16वीं शताब्दी के समाज, सत्ता और समय की तुलना 21वीं सदी के इन पहलुओं से नहीं की जा सकती। बेशक कांग्रेस के भीतर नेहरू-गांधी परिवार के कांग्रेस अध्यक्ष 43 साल से ज्यादा वक्त तक रहे हैं। बीते 40 सालों को ही आधार बनाएं, तो 36 साल गांधी परिवार के चेहरे ही कांग्रेस अध्यक्ष बने हैं और बाकी चार सालों के दौरान गैर गांधी व्यक्तियों ने इस पद को संभाला है, लेकिन उसमें भी गांधी परिवार की सहमति रही है। तय है कि कांग्रेस अध्यक्ष की बुनियाद में ‘वंशवाद’ रहा है और लोकतंत्र में इसे चुनौती दी जा सकती है। इसके खिलाफ राजनीतिक अभियान छेड़े जा सकते हैं। दरअसल गांधी परिवार और कांग्रेस आपस में बाध्यता हैं। किसी भी गांधी नेतृत्व के बिना कांग्रेस को बांधे नहीं रखा जा सकता, यह कांग्रेस का एक यथार्थ है। यदि प्रधानमंत्री मोदी भी राहुल राज की तुलना ‘औरंगजेब राज’ से न करके वंशवाद पर ही सवाल उठाते, तो उससे प्रधानमंत्री का गांभीर्य ही साबित होता। बेशक ‘मुगल बादशाहत’ का भावार्थ कांग्रेस में ही निहित हो सकता है, प्रधानमंत्री मोदी या मणिशंकर अय्यर अथवा शहजाद पूनावाला, राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी को लेकर, सियासी तंज कस सकते हैं, लेकिन यह ताजपोशी भावार्थ या प्रतीक रूप में भी ‘मुगल बादशाहत’ सरीखी नहीं है। अलबत्ता राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने के पक्ष में 89 नामांकन भरे गए। यानी 890 प्रस्तावक…! लेकिन चुनाव किसी भी स्तर पर नहीं हुआ। मंडल स्तर पर भी गुप्त बैलेट मतदान नहीं कराया गया है। पार्टी में साफ तौर पर निर्देश जारी किए गए थे कि राहुल गांधी के नाम का नामांकन भरा जाना है। शायद यही कांग्रेस का आंतरिक लोकतंत्र है। अलबत्ता भाजपा से तुलना नहीं की जा सकती। बेशक वहां आरएसएस ‘अध्यक्ष’ का चेहरा तय करता है, लेकिन एक आदमी भी भाजपा अध्यक्ष चुना जा सकता है। हमें लगता है कि दलों के भीतर स्पष्ट चुनाव कोई नहीं कराता। एक चयन होता है, जिस पर चाहे-अनचाहे सभी सदस्य मुहर लगा देते हैं। बहरहाल कांग्रेस के प्रवक्ता रहे और महाराष्ट्र इकाई के सचिव शहजाद पूनावाला ने न केवल इस व्यवस्था पर सवाल उठाया है, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय तक चुनौती देने की बात कही है। कुछ भी हो, राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनने की राह पर हैं। कांग्रेस में नई कमान होगी, नया नेतृत्व होगा, नई अपेक्षाएं होंगी और नई चुनौतियां भी होंगी। राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव में कांग्रेस का प्रासंगिक बना दिया है। चुनाव में जीत या हार का विश्लेषण बाद में करेंगे, लेकिन राहुल ने कुछ जरूरी मुद्दों पर सवाल पूछे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने किसी का भी जवाब देना लाजिमी नहीं समझा है। लेकिन गुजरात में चुनाव प्रचार ने राहुल गांधी को ऐसा चेहरा बनने का मौका दिया है, जिस पर समूचा विपक्ष लामबंद हो सकता है। देश और राजनीति में राहुल गांधी की स्वीकार्यता कितनी बन पाती है, यह अब कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद आकलन का विषय बनेगा।


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