कोई नहीं बचा पाया जीवन…

By: Dec 24th, 2017 12:05 am

श्रद्धांजलि

हमारे बहुप्रिय वरिष्ठ कवि तेजराम शर्मा जी अकस्मात यूं चुपचाप चले जाएंगे, किसी ने भी सोचा नहीं था। हमारी उनसे इस वर्ष आठ दिसंबर को चंडीगढ़ में बात हुई थी। नौ दिसंबर की गोष्ठी के लिए उनको निमंत्रण देना था…फोन उनकी अर्धांगिनी ने उठाया था…आपने जब भी शर्मा जी को लैंडलाइन पर फोन किया होगा तो अकसर वे ही उठाती थीं और उनकी आवाज शर्मा जी से बहुत मिलती थी। उन्हीं की तरह विनम्रता…बहुत स्नेह से हाल पूछना…शर्मा जी की तरह ही…गोष्ठी के लिए निमंत्रण से पूर्व भी मैं चंडीगढ़ में उनके हाल जानने के लिए फोन करता रहा था तो श्रीमती शर्मा जी ही फोन सुन कर बताती थीं कि वे आराम कर रहे हैं…लेकिन उस दिन शर्मा जी ने खुद बहुत धीमे, पर स्नेह से मुझसे और विनोद गुप्ता जी से बात की थी…अपने न आने की असमर्थता और कार्यक्रम के लिए शुभकामनाएं, सचमुच शिमला की कोई गोष्ठी उनके बिना नीरस सी लगती थी…75 की उम्र में भी उन्हें श्रोता के रूप में पीछे बैठना भला लगता था…कुछ मित्रों की तरह उन्होंने बुलाने पर कभी नहीं पूछा कि कौन आयोजक है…बस अपनी एक किताब या कुछ कविताएं कोट की जेब में डाले वह शिमला की गोष्ठियों में पहुंच जाया करते थे…उनसे बहुत प्रेरणा और स्नेह मिलता था…किसी से कोई मन-मुटाव नहीं…जितना हुआ सज्जनता और प्यार ही बांटते रहे और उसी तरह चुपचाप निकल गए। गत वर्ष हिमालय मंच के बैनर में हमने उनकी नई कविता पुस्तक ‘कम्प्यूटर पर लड़की’ लोकार्पित की थी…डॉ. हेमराज कौशिक की पुस्तक के साथ…डॉ. वीर भारत तलवार जी के हाथों। आए दिन देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कविताएं लगातार प्रकाशित होती रहती जिन्हें वह फेसबुक पर डाल दिया करते। इस उम्र में भी वह फेसबुक पर बहुत सक्रिय थे…आज (गुरुवार को) सबसे पहले उनके चले जाने का समाचार आदरणीय जगदीश शर्मा जी से मिला तो स्तब्ध रह गया…फिर उनके गांव उनके भतीजे से बात हुई तो सारे घटनाक्रम का मालूम हुआ…फिर बहुत से मित्रों से बात हुई…केआर भारती जी, डा. देवेंद्र गुप्ता, अशोक हंस, सुरेश शांडिल्य, कुलराजीव पंत, डॉ. कर्म सिंह, सुरजीत, सुमित राज वशिष्ठ, पूनम तिवारी, आत्मा रंजन, देव कन्या ठाकुर और बहुत से अन्य मित्रों से…सभी की आंखों की नमी और दिल का दर्द  बात करते महसूस होता  रहा…कि कैसे एक बहुप्रिय रचनाकार हम सभी से बिछुड़ गया। 1984 में उनका पहला कविता संग्रह ‘धूप की छाया’ आया था …2004 में बंदनवार का बंगला अनुवाद, फिर कविता संग्रह नहाए रौशनी

में, नाटी का समय, मोम के पिघलते बोल. हाईकू गीता और अंत में ‘कम्प्यूटर पर बैठी लड़की’। उन्हें कई सम्मान मिले, भज्जी-सुन्नी क्षेत्र से वह पहले इंडियन पोस्टल सर्विसेज अधिकारी थे। उन्हीं की कविता से…कि जीवन जो मृत्यु है उसे कौन बचा पाया है…शर्मा जी भी नहीं…और हम भी उसे कहां बचा पाएंगे…कितने दिनों तक…सभी ने धीरे-धीरे अपनी पारियां खेल कर चले जाना है…बस शब्द रहेंगे शेष…उन्हें भी यदि किसी ने संभाला तो…कितने दिन कोई याद करेगा…जो हम में से चले गए हैं…उन्हें ही हम कितना याद कर पाते हैं। उनके लिए ‘मोम के पिघलते बोल’ से ‘जीवन जो मृत्यु है’ कविता की पंक्तियां :

जब मैं अमरता के बारे में सोचता हूं

तो क्या पेट छोड़ देता है सोचना

अपने बारे में

मुझे मृत्यु के बारे में सोचना चाहिए

कि अमरता के बारे में

जीवन जो मृत्यु है

उसके बारे में सोच कर

क्या बचा पाऊंगा उसे…

सभी मित्र लेखकों की ओर से शर्मा जी को भावभीनी श्रद्धांजलि।

(एसआर हरनोट द्वारा लिखा गया संस्मरण)


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