धरातल पर उतरें राजमार्ग योजनाएं
अनुज कुमार आचार्य लेखक, बैजनाथ से हैं
हिमाचल प्रदेश में 90 वर्ष पूर्व अंग्रेजों के शासनकाल में पठानकोट-जोगिंद्रनगर और कालका-शिमला के बीच बिछाई गई रेल लाइनों के अलावा यातायात का यदि अन्य कोई बड़ा विकल्प है, तो वह सड़क मार्ग ही है। हिमाचल प्रदेश में अभी भी औद्योगिक गतिविधियां न्यूनतम स्तर पर हैं, लेकिन पर्यटन जरूर एक ऐसा क्षेत्र है, जिसके विकास से न केवल रोजगार का सृजन हो सकता है, बल्कि राज्य की आर्थिकी को भी पंख लग सकते हैं। सैलानी बिलिंग जैसी जगहों पर टेंडम फ्लाइट्स का लुत्फ उठाना चाहते हैं, तो वहीं बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को नजदीक से देखना चाहते हैं। इसलिए सैलानियों की आवाजाही के लिए भी उन्नत, चौड़ी एवं साफ-सुथरी सड़कों की दरकार है। पहाड़ी राज्यों में जहां रेल एवं हवाई सफर सुविधाएं अल्प विकसित हैं, तो इनमें सड़कों का महत्त्व अपने आप ही बढ़ जाता है। हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य में लगभग 35 हजार किलोमीटर सड़कों का लंबा संजाल तो बिछा है, लेकिन उनकी चौड़ाई, मजबूती, टायरिंग, क्रैश बैरियर्स की स्थापना और ब्लैक स्पॉट्स को लेकर अभी तक कई दुश्वारियां और समस्याएं हैं। कई जगहों पर सड़कें इतनी संकरी हैं कि सामने से आ रहे किसी दूसरे बड़े वाहन को पास देते हुए जान सूखकर हलक में आ जाती है। कच्ची और अधकच्ची तथा टूटी-फूटी सड़कों पर सफर जहां नए वाहनों की सेहत के लिए हानिकारक है, वहीं अधिकांश दुर्घटनाओं में अपनी कीमती जान गंवाते हिमाचली परिवारों के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार भारत में होने वाले सड़क हादसों में सर्वाधिक युवा ही दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं। दुनिया भर के कुल वाहनों में भारत की हिस्सेदारी मात्र एक प्रतिशत है, लेकिन दुनिया की कुल सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में भारत की हिस्सेदारी 10 फीसदी से ज्यादा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट ऑन रोड सेफ्टी-2015 के मुताबिक हर साल विश्व भर में 12 लाख से ज्यादा लोग सड़क हादसों में मारे जाते हैं। भारत में ही वर्ष 2016 की अवधि में एक लाख पचास हजार लोग सड़क हादसों में मारे गए थे। उनमें भी 18 से 35 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं की कुल संख्या 80 हजार 473 थी। सड़क हादसों के पीछे मुख्यतः तेज रफ्तार, हेल्मेट न पहनना, शराब पीकर गाड़ी चलाना, सीट बैल्ट नहीं बांधना जैसे कारण तो हैं ही, टूटी-फूटी सड़कें भी मुख्य वजह हैं। पिछले वर्ष केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश को 17 नए राष्ट्रीय राजमार्गों की सौगात दी थी। इसके अलावा धर्मशाला-शिमला और पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्गों को फोरलेनिंग में बदलने की घोषणाएं भी हुई हैं। उम्मीद है कि इन घोषणाओं के सिरे चढ़ने से राज्य में सड़कों की सेहत में सुधार एवं निखार आएगा। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का गठन संसद के अधिनियम के तहत 1988 को किया गया था। यह प्राधिकरण संपूर्ण भारत के राज्यों में घोषित राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, निर्माण एवं रखरखाव के लिए जिम्मेदार है। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता के पांच हजार 846 किलोमीटर लंबी स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के अलावा भारत में फैले कुल 92 हजार 851 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण और रखरखाव की जिम्मेदारी भी इसी प्राधिकरण के पास है। भारत की कुल सड़कों की लंबाई का मात्र दो प्रतिशत राष्ट्रीय राजमार्गों के अधीन आता है, लेकिन यातायात व्यवस्था का 40 प्रतिशत बोझ भी यही एनएच उठाते हैं। वर्तमान में भारत में ग्रामीण और अन्य सड़कों की कुल लंबाई 33 लाख 37 हजार 255 किलोमीटर है, तो राज्य राजमार्गों की लंबाई एक लाख 67 हजार 109 किलोमीटर और राज्य लोक निर्माण विभाग तथा प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनाओं आदि में निर्मित सड़कों की कुल लंबाई 11 लाख एक हजार 178 किलोमीटर है। हिमाचल प्रदेश में पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग की बात करें, तो यह राष्ट्रीय राजमार्ग अभी भी कई जगहों पर संकरा, तंग और सड़क टूटी हुई है। हालांकि बरसात से पहले राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने बैजनाथ-पालमपुर मार्ग की मरम्मत एवं टायरिंग का काम करवाया था, लेकिन पिछले महीनों में बारिश के चलते एनएच का यह हिस्सा पुनः उखड़ गया है। इस वजह से 16 किलोमीटर लंबे मार्ग पर वाहन चालकों को भारी असुविधा हो रही है, वहीं वाहनों में खराबी से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। इन दिनों इसी राजमार्ग के बैजनाथ-पपरोला कस्बों के तंग बाजारों को चौड़ा करने की कवायद चल रही है, जो वक्त का तकाजा भी है और स्वागत योग्य कार्य है। नियमित रूप से जाम की आंच झेलने वाले इन दोनों बाजारों के अलावा जिला कांगड़ा के ही नूरपुर, कोटला, शाहपुर, कांगड़ा, मटौर, नगरोटा बगवां, मारंडा, पालमपुर के बाद बैजनाथ-पपरोला और जोगिंद्रनगर के तंग बाजारों से अपना वाहन सुगमतापूर्वक निकाल ले जाना कोई इतना आसान काम नहीं है। पिछले दशक में हिमाचली नागरिकों ने भी दोपहिया-चोपहिया वाहनों की जमकर खरीद की है। इसके अलावा लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार के चलते लोगों के दिलों में पर्यटन के प्रति चाहत भी बढ़ी है। चूंकि जम्मू-कश्मीर राज्य आतंकवाद के चलते पिछले तीन दशकों से अशांत चल रहा है, इसलिए देश-दुनिया के अधिकांश पर्यटक शांत प्रदेश हिमाचल की ओर रुख कर रहे हैं। रेल यातायात व्यवस्था सुलभ न होने के कारण इस पहाड़ी राज्य में सफर का दारोमदार अधिकतर सड़क मार्ग पर ही निर्भर रहता है। इसी वजह से इस एनएच पर पड़ने वाले ज्यादातर छोटे संकरे बाजारों में प्रायः जाम के हालात बने रहते हैं। इस बार गर्मियों के सीजन में भी बीड़-बिलिंग में पैराग्लाइडिंग साइट पर पहुंचने के लिए पर्यटकों तथा स्थानीय लोगों को लंबे-लंबे जामों का सामना करना पड़ा था। इसलिए जाम वाले हालात से जूझने वाले कस्बों-शहरों के बाहर से तत्काल बाइपास सड़क मार्गों के निर्माण में कोताही लोगों और पर्यटकों को महंगी पड़ रही है। वाहन चालकों विशेषकर युवा चालकों को भी सड़कों की स्थिति के मद्देनजर ही अपने वाहनों की गति नियंत्रित रखते हुए वाहन चलाने की जरूरत है, ताकि उनके परिवार को भी उनके सुरक्षित वापस घर लौट आने की आस बनी रहे। संबंधित विभागों को भी चाहिए की विकास संबंधी जो भी घोषणाएं हों, बाद में उनकी प्रगति और योजना के धरातल पर उतरने की वास्तविकता से आम जनता को समय-समय पर सूचित किया जाना चाहिए। उम्मीद है कि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के उच्चाधिकारी स्वयंमेव बैजनाथ-पालमपुर राजमार्ग का मौका-ए-मुआयना करेंगे तथा शीघ्र ही इसके सुधार हेतु आवश्यक कार्रवाई करेंगे। जीवन संक्षिप्त है, प्रत्येक भारतीय का सपना है कि उसे आधुनिकतम चौड़ी, सपाट एवं सुंदर सड़कों पर सफर करने का अवसर मिले। आशा है कि केंद्र एवं राज्य सरकार जरूर हिमाचली सपनों को साकार करने की पहल करेंगी।
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