पाठक का हाल पूछती हैं श्याम लाल की कहानियां

By: Dec 3rd, 2017 12:05 am

पुस्तक समीक्षा

* पुस्तक का नाम : संवेदनाएं (कहानी संग्रह)

* लेखक का नाम : श्याम लाल शर्मा

* मूल्य : 235 रुपए

* कुल कहानियां : 25

* कुल पृष्ठ : 187

* प्रकाशक : नोशन प्रेस, चेन्नई

लेखक श्याम लाल शर्मा का कहानी संग्रह ‘संवेदनाएं’ समीक्षार्थ आया, उन्हें बधाई व शुभकामनाएं। बधाई इसलिए कि लेखन जारी है और शुभकामनाएं इसलिए कि लेखन के  प्रयास और भी बेहतर हों। ‘कहते हैं उनकी महफिल में आता है हर किसी को करार, कोई खामी थी शायद मुझमें, मैं ही हर बार बेकरार लौटा’।

चूंकि संवेदनाओं में दर्शन और दर्शन में दृष्टि का तारतम्य बैठा पाना आसान चुनौती नहीं। बहरहाल लेखक ने धारा में बहने और बहकने से बचने का महीन प्रयास अवश्य ही किया है। कहानी के सजीव चित्रण में कल्पना का होना उसे पैदा तो कर सकता है, पर उसे प्राणवान नहीं बना सकता। लिहाजा इस कहानी संग्रह को कल्पनातीत बना देना संजीदा विषयों की चमक भी फीका कर देता है। समीक्षा या आलोचना किसी भी लेखक के दायरे में घुसपैठ जैसा ही है, ऐसे में विचार भिन्नता और दृष्टि टकराव होना स्वाभाविक है। बहरहाल समय के साथ व वर्तमान परिप्रेक्ष्य के संदर्भ में कहानी कही जाए तो वह पाठक से बतियाने जरूर लगती है। मसलन दूध न देने पर गाय का तिरस्कार करना सुंदरी को अच्छा नहीं लगता है, पर बहू-बेटों के लिए परिवार और उनका भविष्य भी एक चुनौती है, ऐसे में पाठक दोराहे पर आ जाता है कि वह दिल से सोचे या दिमाग से। इसलिए वर्तमान को भोगते हुए ही कहानी खुद बोलती है, तभी वह तेरी कहानी, मेरी कहानी बन जाती है। कहानी के संपूर्ण संग्रह में अध्यात्म का भरपूर पुट देखने को मिलता है, लिहाजा विचारों का द्रवित होना स्वाभाविक है। ‘मीडिया में भिखारी’ आजकल के संदर्भ के बहुत आसपास है और एक सटीक टिप्पणी के तौर पर देखा जा सकता है। माथे की लकीरों में सोच के मूल में लालच का होना कर्म सिद्धांत के रास्ते पर हमें ले जाता है। खैर पाठक को बांधे रखना हर काल में चुनौती रही है। अन्य विषयों में भी लेखक ने अध्यात्म, प्राणियों की रक्षा, विवेक और बुद्धि का संदेश देने की भरपूर कोशिश की है। लिहाजा यह कहना सही होगा कि लेखक को इस पीढ़ी को भी साथ लेकर चलने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि इस पुनीत कार्य में सभी वर्गाें का सहयोग अपेक्षित है।

-ओंकार सिंह


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