बाली का 20 साल का किला ध्वस्त

By: Dec 19th, 2017 12:15 am

नगरोटा में 25 साल बाद खिला कमल

नगरोटा बगवां  – हिमाचल विधानसभा की हाई प्रोफाइल सीट नगरोटा बगवां पर जहां कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जीएस बाली का 20 सालों का किला ध्वस्त को गया। वहीं, नगरोटा की धरती पर अरुण मेहरा के रूप में भाजपा 25 साल बाद कमल खिलाने में कामयाब हो गई। यहां मुख्य प्रतिद्वंदी बने कांग्रेस के जीएस बाली और भाजपा के अरुण मेहरा करीब अढ़ाई दशक पूर्व सियासी सफर में हमसफर बनकर एक साथ निकले थे। तब दोनों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वे एक दिन इस तरह आमने-सामने होंगे। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में जब जीएस बाली ने नगरोटा बगवां में अपने कदम रखे तो अरुण मेहरा ने एक सशक्त समर्थक के रूप में न केवल नगरोटा से उन्हें रू-ब-रू करवाया, बल्कि 1998 में पहली जीत दिलाने में अहम भूमिका भी निभाई। यह वह दौर था जब सत्ता प्राप्ति के बाद अरुण मेहरा बाली के खास सिपहसलारों में शुमार रहे। इस दौरान सब ठीक चलता रहा तथा वर्ष 2007 तक कांग्रेस के रास्ते में आने वाली हर ताकत बाली टीम के आगे पस्त होती रही, लेकिन वक्त ने ऐसी करवट ली कि 2011 में दोनों के बीच उभरे मतभेद उस दहलीज तक पहुंच गए, जहां से न केवल दोनों के गले मिलने की तमाम संभावनाएं क्षीण हो गईं, बल्कि 2012 में चुनावी समर में वे एक-दूसरे के सामने भी आ गए । 2012 में बतौर आजाद उम्मीदवार  सुर्खियों में आए अरुण मेहरा के रूप में मृत पड़ी भाजपा को उम्मीद की किरण दिखाई दी, जिसे लपकने को भाजपा ने भी देर नहीं लगाई। यह लोकसभा चुनावों का वह समय था, जब शांता कुमार की जीत सुनिश्चित करने के लिए अरुण मेहरा की भाजपा को सख्त जरूरत थी। जश्न-ए-माहौल में अरुण मेहरा ने भाजपा का दामन थामा और लोक सभा चुनावों में पहली बार भाजपा को लीड दिलाकर अपनी पकड़ का दूसरी बार एहसास करवाया। यह इसी का नतीजा रहा कि भाजपा ने तमाम पुराने चेहरों को दरकिनार कर अरुण मेहरा को पार्टी प्रत्याशी बनाकर इस बार कांग्रेस के किले को ध्वस्त करने ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। अस्तित्व में आने के बाद से ही नगरोटा बगवां कांग्रेस का गढ़ रहा है। इस अवधि में केवल 12 वर्ष ही भाजपा को सत्ता सुख भोगने का अवसर मिल पाया था, जबकि एक बार कांग्रेस के ही चौधरी हरदयाल को कांग्रेस का टिकट न मिलने पर आजाद उम्मीदवार के रूप में यहां से विजय मिली थी दीगर है कि कमजोर विपक्ष का लाभ हमेशा कांग्रेस को मिला है, जबकि तीसरा विकल्प यहां खड़ा ही नहीं हो पाया।


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