भारत का इतिहास

By: Dec 6th, 2017 12:05 am

भारत का विभाजन तय हुआ

गतांक से आगे-

चौथा अधिवेशनः राष्ट्रीय ध्वज की स्वीकृति

14 जुलाई,1947 को संविधान सभा का  चौथा अधिवेशन आरंभ हुआ। उस समय ब्रिटिश सरकार की उपर्युक्त योजना के आधार पर तैयार किए गए भारतीय स्वतंत्रता विधेयक पर ब्रिटिश संसद में विचार हो रहा था। यह 18 जुलाई, 1947 को अधिनियम बन गया। अधिनियम में 15 अगस्त या उसके बाद  से किसी डोमीनियनों की स्थापना की व्यवस्था की गई थी। उसने 15 अगस्त, या उसके बाद  से किसी भी  डोमीनियन के लिए कानून बनाने की ब्रिटिश सरकार की शक्ति स्पष्ट रूप से समाप्त कर दी और प्रत्येक डोमीनियम की संविधान सभा को यह अनियंत्रित शक्ति प्रदान की कि वह जो संविधान चाहे बिना और अंगीकार कर सकती है,  भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम तक का अतिक्रमण कर सकती है और इसके लिए ब्रिटिश संसद को किसी प्रकार का विधान बनाने की कोई आवश्यकता नहीं होगी। अधिनियम में यह भी व्यवस्था की गई थी कि जिस संविधान सभा ने 9 दिसंबर, 1946 से अपनी बैठक शुरू की थी, वह भारत की संविधान सभा होगी तथा पाकिस्तान अपने लिए एक नई संविधान सभा की स्थापना करेगा।

अतः जब 14 जुलाई, 1947 को संविधान सभा का चौथा अधिवेशन आरंभ हुआ, तब भारतीय डोमीनियन के मुस्लिम लीगी सदस्यों ने भी सभा में अपना स्थान ग्रहण कर लिया। जम्मू और कश्मीर तथा हैदराबाद के प्रतिनिधियों को छोड़ कर शेष सभी देशी रियासतों के प्रतिनिधियों ने भी 14 जुलाई, 1947 को संविधान सभा में अपना  स्थान ग्रहण किया। बंगाल और पंजाब विधानसभाओं ने भारतीय संविधान सभा के जिन सदस्यों को निर्वाचित किया था, वे अब संविधान सभा के सदस्य नहीं रहे और बंगाल तथा पंजाब के विभाजित निर्वाचन क्षेत्रों के सदस्यों ने संविधान सभा के लिए  अपने प्रतिनिधियों को नए सिरे से चुना। इन सदस्यों ने 14 जुलाई, 1947 को अपने प्रत्यय-पत्र भी प्रस्तुत किए। इस तारीख को कुल मिला कर प्रांतों के 43 सदस्यों तथा देशी रियासतों के 37 सदस्यों ने अपने प्रत्यय- पत्र उपस्थित किए तथा रजिस्टर पर अपने हस्ताक्षर किए।

वायसराय ने 3 जून, 1947 के वक्तव्य के अनुसरण में 15 और 25 जुलाई, 1947 को कुछ चर्चा करने के बाद संविधान सभा के गठन में परिवर्तन किए। इन परिवर्तनों की वैधिक आधार देने के लिए सभा ने सर्वसम्मति से निम्नलिखित वैधीकरण संकल्प पारित किया।  अब यह प्रायः निश्चित हो गया  कि 3 जून, की योजना  के अनुसार भारत का विभाजन  होकर रहेगा। इस स्थिति में सभा के लिए यह आवश्यक नहीं रहा कि वह अनुभागों में विभक्त हो अथवा समूहों के प्रश्न पर विचार करे।

— क्रमशः


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