भीमाकाली मंदिर

By: Dec 9th, 2017 12:07 am

हिमाचल प्रदेश महज प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना ही नहीं है, अपितु यहां की विशाल पर्वत शृंखलाओं के आंचल में लोक संस्कृति, पुरातत्त्व व इतिहास के अनेकों पन्ने अपना अलग ही महत्त्व रखते हैं।  मंडी जिला की ब्यास नदी के तट पर स्थित मां भीमाकाली का भव्य व पुरातन मंदिर प्रत्येक सैलानी को बरबस अपनी ओर खींच लेता है। 14वीं सदी में पैगोड़ा शैली में बना यह मंदिर आज भी अपने अस्तित्व को संजोए हुए है। मंडी जनपद वैसे भी धर्म, संस्कृति व कला की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। मंडी छोटी काशी के नाम से भी प्रचलित है। मंडी को अगर मंदिरों की नगरी कहा जाए, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि मंडी के हर कोने में मंदिर विराजमान हैं। इसी शृंखला में पुरानी मंडी के भ्यूली की शिवालिक पहाड़ी के मध्य व ब्यास नदी के छोर पर स्थित माता भीमाकाली का भव्य, कलात्मक विशालकाय मंदिर देश-विदेश के सैलानियों के लिए श्रद्धा व आस्था का केंद्र है। कहा जाता है कि माता भीमाकाली के मंदिर की स्थापना भ्यूली में राजा वानसेन द्वारा उस दौरान करवाई गई थी, जब वर्तमान मंडी शहर भी अस्तित्व में नहीं आया था। राजा की राजधानी भी भ्यूली हुआ करती थी, जहां से वह अपना राजपाट का कार्य चलाया करते थे। दुर्गा सप्तशती के 11वें अध्याय में देवी ने देवताओं को बताया है कि जब-जब संसार में दानवी बाधा उत्पन्न होगी, तब-तब अवतार लेकर मैं शत्रुओं का संहार करूंगी। मुनि लोग तप करने के लिए हिमालय में रहकर तपस्या करते थे। राक्षस उनकी तपस्या में विघ्न डाल कर उन्हें तंग करते थे। देवी ने कहा कि मैं मुनियों की रक्षा के लिए हिमालय से ऐसे दैत्यों का संहार करूंगी। उस समय सब मुनि भक्ति से नतमस्तक होकर मेरी स्तुति करेंगे। तब मेरा नाम भीमा देवी के रूप में विख्यात होगा। माता भीमाकाली का हिमाचल में प्रकट होने का प्रमाण सप्तशती के श्लोक में भी मिलता है। दंतकथा अनुसार भीम ने भ्यूली में भीमाकाली की आराधना कर देवी से शक्ति प्राप्त की थी। कहा जाता है कि पंडोह में भी पांडवों का वास रहा और इसलिए इसका नाम पंडोह पड़ा। पंडोह में मां कुंती का एक भव्य मंदिर भी है। इसलिए भीम ने देवी की साधना के लिए भ्यूली स्थान को चुना था। वैसे हिमाचल प्रदेश में मां भीमाकाली का प्राचीन मंदिर शिमला के ऊपरी भाग सराहन में अवस्थित है। भ्यूली स्थित मंदिर में विराजमान देवी की कलात्मक व आकर्षक काली प्रतिमा देखते ही बनती है। देवी हाथों में खड्ग, डमरू, मस्तक और पान-पात्र आदि धारण किए हुए हैं, जिसे देखकर आध्यात्मिकता की अनुभूति होती है। मंदिर प्रांगण में स्थापित यज्ञ स्थल, सैकड़ों वर्ष पुराना वट-वृक्ष और उसके ठीक नीचे स्थापित फन फैलाए शेषनाग, शिवलिंग व उसके ऊपर गागर से टपकता पानी, नंदी की कलात्मक मूर्ति देखकर हर भक्त नतमस्तक हो जाता है। यही नहीं, मंदिर के इर्द-गिर्द विराजमान लक्ष्मी, हनुमान, गणेश जी की अद्भुत मूर्तियां भक्तजनों को एक अलौकिक आनंद प्रदान करती हैं। मां के भित्ति मंदिर को चांदी से सुसज्जित किया गया है। वहीं इस में सुंदर नक्काशी उकेरी गई है कि आंखें ठहर सी जाती हैं। मंदिर में नवरात्र, शतचंडी महायज्ञ तथा अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन बड़ी श्रद्धा व हर्षोउल्लास के साथ किया जाता है।

– तुलसी राम डोगरा,  पालमपुर

 


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