भुखमरी की राजनीति और अर्थशास्त्र

By: Dec 6th, 2017 12:05 am

डा. अश्विनी महाजन

लेखक, दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजीडीएवी कालेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं

देश में पोषण संबंधी परियोजनाओं के लिए बेहतर निगरानी व्यवस्था भी बनाई जा रही है। यह सही है कि दुनिया के अधिकांश दूसरे मुल्कों की तुलना में तमाम मापदंडों के आधार पर भारत में भुखमरी कहीं ज्यादा है, फिर भी यह राजनीति का विषय नहीं होना चाहिए। तमाम राजनीतिक दलों को, चाहे वे सत्ता में हैं या विपक्ष में, इस बात पर विचार करना होगा कि उन्होंने भुखमरी को दूर करने के लिए क्या कोई ईमानदार प्रयास किए…

अक्तूबर, 2017 के दूसरे सप्ताह में वाशिंगटन स्थित इंटरनेशनल फूड पालिसी रिसर्च इंस्टीच्यूट (आईएफपीआरआई) द्वारा भुखमरी पर जारी रिपोर्ट में 119 देशों की सूची में भारत 100वें पायदान पर है, जबकि पिछले साल वह 97वें पायदान पर था। 2014 की रिपोर्ट के अनुसार तो भारत 55वें पायदान पर था, लेकिन उस समय मात्र 76 देशों को ही इस रैंकिंग में शामिल किया गया था। अब इस पर राजनीति गहरा गई है कि सरकार द्वारा किए जाने वाले बड़े-बड़े दावे कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन गया है, पर संदेह के बादल छा गए कि क्या बढ़ती जीडीपी वास्तव में लोगों की हालत सुधार भी रही है या नहीं?

हालांकि पिछले सालों में भारत का भुखमरी सूचकांक 1992 में 46.2 से घटता हुआ 31.4 तक पहुंच चुका है, तो भी भारत की भुखमरी की स्थिति अभी चिंताजनक वर्ग में आती है। गौरतलब है कि ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ के हिसाब से रैंकिंग चार कारकों ः पोषण, शिशु मृत्यु दर, शिशु का पतलापन (वेस्टिंग) और शिशु के ठिगनेपन पर निर्भर करती है। यदि भुखमरी सूचकांक 20 और 34.9 के बीच है तो उसे चिंताजनक, 35 से 49.9 के बीच यह खतरनाक और 50 और उससे अधिक अति खतरनाक कहलाता है। 2017 में पाकिस्तान और अफगानिस्तान मात्र दो एशियाई देश थे, जहां भुखमरी भारत से ज्यादा थी। बच्चों में कुपोषण भारत देश में एक वास्तविकता है, जिसके कारण भारत की रैंकिंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि दक्षिण एशियाई देशों में भी बहुत पीछे चली जाती है। उसके बाद कुछ ही अफ्रीकी देश हैं, जिनकी स्थिति भारत से खराब है। हालांकि भारत में भूख के निवारण हेतु कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन सूखे और ढांचागत कमियों के कारण भारत के गरीबों में बड़ी संख्या में लोग कुपोषण का शिकार बन रहे हैं।

कहा जा रहा है कि भारत जो दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक देश है, फिर भी लोगों को पोषक भोजन नहीं मिल पाता। हालांकि बच्चों में ठिगनापन पहले से कम हुआ है, लेकिन अभी भी बच्चों में पतलापन ऊंचे स्तर पर बना हुआ है और एक दशक पहले से इसका प्रमाण बढ़ गया है। बात यह नहीं है कि भारत में परिस्थितियां सुधर नहीं रहीं, लेकिन दूसरे देशों में स्थितियां हमसे ज्यादा तेजी से बेहतर हो रही हैं। यह सही है कि अभी भी भारत की 14.5 प्रतिशत जनसंख्या कुपोषण का शिकार है, लेकिन वह तस्वीर 1992 में 21.7 प्रतिशत से बेहतर ही हुई है। शिशु मृत्यु दर (पांच साल से कम आयु के) 1992 में 11.9 प्रतिशत से घटकर अब मात्र 4.8 प्रतिशत रह गई है। भारत ने 2022 तक कुपोषण को मात देने की अपनी कार्य योजना शुरू कर दी है।

गौरतलब है कि जब 2014 में भारत की रैंकिंग 55 थी और अब 100 हो गई है, तो देश में चिंता व्याप्त होना स्वाभाविक ही है। लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि 2014 में मात्र 76 देशों की रैंकिंग हुई थी, जबकि 2017 में 119 देशों की यानी 44 और देशों को इस रैंकिंग में शामिल किया गया। हम देखते हैं कि जो 44 और देश इस रैंकिंग में शामिल किए गए हैं, वे सभी भारत से भुखमरी सूचकांक में ऊपर हैं। इसलिए यह कहा जाना कि भारत 2014 की तुलना में 45 स्थान नीचे पहुंच गया है, सही नहीं है। यदि देखें तो भारत की स्थिति वैश्विक भुखमरी सूचकांक की दृष्टि से लगातार बेहतर हुई है। यदि 2017 के वैश्विक भुखमरी सूचकांक की कार्य प्रणाली के आधार पर देखा जाए तो भारत का वैश्विक भुखमरी सूचकांक लगातार बेहतर होता हुआ वर्ष 1992 में 46.2 से वर्ष 2017 में 31.4 अंक पर पहुंच गया। वर्ष 2014 की कार्यप्रणाली के आधार पर देखा जाए तो भी यह सूचकांक लगातार बेहतर होता हुआ 1995 में 26.9 से वर्ष 2014 में 17.8 के ऊपरी स्तर पर पहुंच गया था।

इस प्रकार हम देखते हैं कि हालांकि भुखमरी सूचकांक की दृष्टि से भारत में स्थितियां पहले से बेहतर हुई हैं, जो शिशु मृत्यु दर की घटती दर और कुपोषण के विभिन्न मापदंडों में हो रहे सुधारों से परिलक्षित होता है। इसके बावजूद भारत की स्थिति अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग की दृष्टि से बेहतर नहीं हुई है। इसका मतलब यह है कि दुनिया के दूसरे मुल्क भारत की तुलना में ज्यादा तेजी से कुपोषण और भुखमरी की समस्या से निपटने हेतु सफल प्रयास कर रहे हैं, जिसके कारण भारत की रैंकिंग में गिरावट बनी हुई है। आवश्यकता इस बात की है कि कुपोषण की इस समस्या से निपटने के लिए गंभीर और तीव्र प्रयास किए जाएं। वर्ष 2022 के लिए इस समस्या से निपटने के लिए कार्य योजना बनी है, लेकिन कुपोषण से निपटने के लिए बेहतर प्रयास अपेक्षित हैं। हाल ही में सरकार द्वारा गर्भवती महिलाओं एवं शिशुओं को स्तनपान कराने वाली महिलाओं को 5,000 रुपए नकद भेजने की योजना बनाई गई है। आंगनबाड़ी में बेहतर पोषक आहार और छोटी बच्चियों के लिए कीमत सूचकांक आधारित राशि उपलब्ध कराने हेतु योजना बनाई गई है और अतिरिक्त 12 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है। पोषण संबंधी परियोजनाओं के लिए बेहतर निगरानी व्यवस्था भी बनाई जा रही है। यह सही है कि दुनिया के अधिकांश दूसरे मुल्कों की तुलना में तमाम मापदंडों के आधार पर भारत में भुखमरी कहीं ज्यादा है, फिर भी यह राजनीति का विषय नहीं होना चाहिए। तमाम राजनीतिक दलों को, चाहे वे सत्ता में हैं या विपक्ष में, इस बात पर विचार करना होगा कि उन्होंने भुखमरी को दूर करने के लिए क्या कोई ईमानदार प्रयास किए? वास्तव में भुखमरी का रिश्ता कृषि उत्पादन के साथ भी ज्यादा नहीं है। गौरतलब है कि हमारे भंडारगृह अन्न से लबालब भरे हुए हैं, तो भी हमारे लोग, चाहे बच्चे, जवान या बूढ़े सभी दो जून का भोजन नहीं जुटा पा रहे।

इसका कारण है आय और संपत्ति का असमान वितरण। वर्ष 2011 की जनगणना के प्रकाशित आंकड़ों के आधार पर पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 92 प्रतिशत गृहस्थ ऐसे हैं, जिनमें अधिकतम आय प्राप्त करने वाले सदस्य मात्र 10,000 या उससे कम कमाते हैं। 75 प्रतिशत गृहस्थों में यह आमदनी 5,000 रुपए मासिक से भी कम है। जाहिर है ऐसे में वे अपने परिवार का लालन-पालन, शिक्षा और स्वास्थ्य की चिंता कैसे कर सकते हैं? चाहकर भी मां अपने बच्चों को पौष्टिक आहार तो छोडि़ए, भरपेट भोजन भी नहीं करवा पाती। ऊपरी तौर पर सरकारों द्वारा पोषण उपलब्ध कराने के प्रयास थोथले प्रतीत होते हैं। वास्तव में हमें जीडीपी केंद्रित सोच को छोड़कर विकास का एक ऐसा मॉडल अपनाना होगा, जिसमें रोजगार निहित हो और आय का समान वितरण हो। जहां उद्योग कुछ स्थानों पर ही केंद्रित न हो, बल्कि विकेंद्रित रहे। तभी सभी लोगों का भला हो पाएगा और भुखमरी रुकेगी। भुखमरी की समस्या क्रय शक्ति से संबंधित है। हमें अपने लोगों की क्रय शक्ति को बढ़ाना होगा। लोगों की क्रय शक्ति सुधरेगी, तो स्वाभाविक तौर पर वे पौष्टिक भोजन भी प्राप्त कर सकेंगे। भुखमरी की समस्या से निपटने की दिशा में इस प्रयास के दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे।


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