मणिशंकर की बोली !

By: Dec 9th, 2017 12:05 am

बिन हड्डी की जुबान ऐसी है कि बार-बार फिसलती है और देश के प्रधानमंत्री को गालियां देती है! क्या यह भी अभिव्यक्ति की आजादी है? देश का प्रधानमंत्री एक व्यक्ति, एक पार्टी, एक गठबंधन का नेता नहीं होता। वह देश का सर्वोच्च कार्यकारी पदाधिकारी है। देश की गरिमा, मान-सम्मान और अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा का प्रतीक! क्या बिन हड्डी की जुबान को नियंत्रित नहीं किया जा सकता? आज भारतीय लोकतंत्र के सामने यक्ष प्रश्न है कि क्या देश के प्रधानमंत्री के लिए गुंडा, बंदर, वायरस, भस्मासुर, गंगू तेली, यमराज, रावण और कातिल आदि अपशब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए? बेशक प्रधानमंत्री के पद पर चुने गए चेहरे से आप कितनी भी नफरत करते हों, कितने भी मतभेद हों, उनकी तमाशगिरी से इत्तेफाक न रखते हों, लेकिन आप प्रधानमंत्री को गालियां नहीं दे सकते। उनकी नीतियों का लोकतांत्रिक आधार पर विरोध जमकर कर सकते हैं, लेकिन आप उनके जन्मजात धर्म और जाति पर कटाक्ष नहीं कर सकते। यदि राजनीतिक दलों के चेहरे भाषा-विज्ञान और भाषा के मर्म को जानते हैं, तो उन्हें जानकारी होनी चाहिए कि ‘नीच’ एक जातिसूचक शब्द है। यदि कानून की धाराओं के तहत शिकायत दर्ज कराई जाए, तो यह शब्द बोलने वाले के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए जा सकते हैं। जेल भी हो सकती है, लेकिन कांग्रेसी नेता एवं मनमोहन सरकार में महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों के मंत्री रह चुके मणिशंकर अय्यर की जुबान एक बार फिर फिसली है और इस बार हदें ज्यादा ही पार की गई हैं। मणिशंकर ने प्रधानमंत्री मोदी को ‘बेहद नीच किस्म का आदमी’ कहा है। मणि ने ही 2014 के लोकसभा चुनावों के मौके पर मोदी को ‘चायवाला’ कहा था और कांग्रेस अधिवेशन के बाहर चाय बेचने का न्योता दिया था। नतीजा पूरे देश के सामने है। गुजरात से एक भी सांसद जीत कर लोकसभा तक नहीं पहुंच पाया था और लोकसभा में अभी तक की सबसे कम 44 सीटें ही कांग्रेस को नसीब हुई थीं। मणिशंकर तमिलनाडु के एक बेहद संभ्रात और शिक्षित परिवार से आते हैं। वह आईएफएस अधिकारी रहे हैं, लिहाजा कई देशों में भारत सरकार के राजदूत भी रहे हैं। करीब 35-40 साल से राजनीति में सक्रिय हैं। हमारा अनुभव के आधार पर दावा है कि मणिशंकर अच्छी-खासी हिंदी जानते हैं। कमोबेश ‘नीच’ शब्द के मायनों से जरूर परिचित हैं। वह उसी तरह आदत से मजबूर हैं, जिस तरह सोनिया गांधी ने ‘मौत का सौदागर’ और ‘जहर की खेती’ सरीखे अपशब्दों का इस्तेमाल किया था। राहुल गांधी ने भी ‘खून की दलाली’ कहा था। प्रियंका गांधी ने भी ‘नीच राजनीति’ सरीखे शब्दों का प्रयोग किया था। प्रधानमंत्री और भाजपा नेताओं ने गांधी परिवार के सदस्यों के लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल किया है, कमोबेश वे असंसदीय या अपशब्द श्रेणी के नहीं थे। बेशक मणिशंकर अय्यर ने परोक्ष रूप से माफी मांगने की कोशिश की है, बेशक राहुल गांधी के निर्देश पर उन्हें पार्टी की प्राथमिक सदस्यता समेत निलंबित कर दिया गया है, लेकिन अब यह लीपापोती साबित होगी, क्योंकि जुबान से निकला शब्द अब सार्वजनिक हो चुका है। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे ‘गुजरात का अपमान’ करार देकर व्यापक अर्थ दे दिए हैं। बेशक ‘नीच’ का असर भी पुराने अपशब्दों की तरह ही हो सकता है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि बेशक नीच जाति का हूं, लेकिन उन्होंने काम ऊंचे किए हैं। यही हमारे संस्कार हैं। ऊंच-नीच की मानसिकता मुगलकालीन है। कांग्रेस ने ‘गुजरात के बेटे’ का अपमान किया है। इसी के साथ तमाम मुद्दे नेपथ्य में जा सकते हैं और ‘नीच’ पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ सकती हैं। यदि असर इतना व्यापक रहा, तो कांग्रेस की लुटिया डूब सकती है। राहुल गांधी की मेहनत पर पानी फिर सकता है! कांग्रेस में यह ‘गाली-संस्कृति’ सिर्फ मणिशंकर तक ही सीमित नहीं रही है। पार्टी में दिग्विजय सिंह और मनीष तिवारी सरीखे भी नेता हैं, जिन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के प्रति जिन शब्दों का इस्तेमाल किया है, कमोबेश हम उन्हें लिखकर अपनी शालीनता और सभ्यता नहीं छोड़ सकते। जनता के मानस में वे शब्द जरूर खदबदाने लगे होंगे। गुजरातियों को ‘गंदी नाली का कीड़ा’ और ‘गधा’ तक भी कहा गया, संकेत प्रधानमंत्री मोदी की ओर ही था। आखिर अश्लीलता और असभ्यता की किस हद तक जाएंगे हमारे गालीबाज नेता?


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