युग बदलती सड़कें

By: Dec 2nd, 2017 12:05 am

बड़ी सड़क परियोजनाओं की करवटों में प्रदेश भविष्य की अधोसंरचना का अनुमान लगा सकता है। यह किसी युग परिवर्तन सरीखा संकल्प है और इस लिहाज से नागरिक समाज के सामने भी प्रश्न और आशाएं उभरेंगी। प्रश्न इसलिए कि विस्थापन की आंच में प्रगति को आसानी से स्वीकार्यता नहीं मिलती और आशा के संगम पर भौगोलिक दुरुहता को चीरने सरीखी सड़कें, सारी बाधाओं को दूर करने की गारंटी दे रही हैं। राष्ट्रीय उच्च मार्ग प्राधिकरण के जरिए हिमाचल एक नई दौड़ शुरू कर रहा है और इस तरह सड़क निर्माण की शैली व मानदंड का स्तरोन्नत होना समय व सदी का सही-सही जवाब होगा। जाहिर है अब तक के विकास की कहानी में खुद को नायक मान चुके लोगों ने कभी यह नहीं सोचा कि अंततः सड़कों के किनारे किया गया अतिक्रमण नागरिक अधिकार के बजाय अपराध है, इसलिए भू-अधिग्रहण की कसौटियों में कई तरह की बंद तहें भी खुलेंगी। बहरहाल चर्चा में आए दो नए फोरलेन प्रोजेक्ट और पहले से प्रारंभ शिमला और मनाली को जोड़ रही परियोजनाओं के पूरे होने तक जमीन-जमीर का जर्रा-जर्रा बदलेगा। पठानकोट-मंडी या धर्मशाला-शिमला की दिशा में फोरलेन सड़क का गुणात्मक प्रभाव केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि पर्वतीय सड़कों की अवधारणा को बदलना है। ब्रिटिश पीरियड के सर्वेक्षण पर आधारित जिन सड़कों पर जिंदगी दौड़ती है, उनसे अलग मुकाम छूने की इंजीनियरिंग सामने आ रही है। डीपीआर की कसरतों में सड़क परियोजनाओं को एक व्यापक आधार मिलने जा रहा है। हिमाचल के पास यह एक ऐसा अवसर है, जिसके जरिए युग के संबोधन-बोधन को सशक्त किया जा सकता है। सड़क की जरूरत, सड़क की पीड़ा भी रही है। सड़क के जख्मों से पहाड़ का दर्द बढ़ा, लेकिन सुरक्षित यात्रा के जोखिम खत्म नहीं हुए। हिमाचल में व्यक्तिगत तरक्की के कई पहाड़ खड़े होते हैं और फिर दो पहाड़ों के द्वंद्व में प्रकृति चकनाचूर होने लगी है। ऐसे में नई सड़कें या सड़कों का नया आकार यह भी प्रमाणित करेगा कि वैज्ञानिक सोच और तकनीकी ज्ञान से हम कितने सुरक्षित और संवेदनशील हैं। मानव विस्थापन से हटकर सड़क परियोजनाओं के नए विकल्प अगर बाइपास, फ्लाइओवर, एलिवेटेड मार्ग या सुरंगों से गुजर कर बड़ा रोड मैप तैयार कर पाते हैं, तो हिमाचल के सारे सिरे एकजुट हो पाएंगे। कांगड़ा-चंबा से शिमला को जोड़ने की जिन बाधाओं का जिक्र खुद पहाड़ है, तो उसे लांघने के लिए सुरंगों का जाल फैलाना अति आवश्यक है। यह प्रसन्नता का विषय है कि डीपीआर अपनी उधेड़बुन से बाहर निकलने के लिए कुछ सुरंगों के प्रस्ताव बना रही है। इसी तरह ज्वालामुखी, नादौन, शाहपुर, गगल, नगरोटा, बैजनाथ या जोगिंद्रनगर जैसे बाजारों से हटकर बाइपास का इंतजार सारे परिदृश्य की ख्वाहिश है। एक सुरंग अगर जोगिंद्रनगर के पास से कुल्लू घाटी पहुंचा सकती है या दूसरी चुवाड़ी से सीधे चंबा को मिला सकती है, तो जंगलों से लदे पहाड़ को यह मार्ग प्रशस्त करना होगा, ताकि राजधानी शिमला पर्वतीय सड़कों की सुखद मंजिल साबित हो सके।

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App