राहुल का ‘मजबूरन परामर्श’

By: Dec 11th, 2017 12:05 am

गालियों की राजनीति ने गुजरात चुनाव का माहौल ऐसा बदल दिया है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को पार्टी नेताओं के लिए ‘परामर्श’ जारी करना पड़ा है। हिदायत दी गई है कि कोई भी प्रधानमंत्री मोदी के भाषण और बयानों पर टिप्पणी नहीं करे। यदि टिप्प्णी की गई, तो उस नेता के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। जाहिर है कि कांग्रेस मौजूदा माहौल से डर गई है। कुछ अपशब्दों ने सियासी फिजाएं ही बदल दी हैं। दिल्ली में सत्ता के गलियारों में काम ठप है, मंत्री उपलब्ध नहीं हैं, सिर्फ एक ही विमर्श जारी है कि क्या लोकतांत्रिक चुनाव गालियों के आधार पर तय होने चाहिएं? क्या देश के प्रधानमंत्री के लिए इतने भद्दे शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए? ऐसे विमर्श के बजाय किसी और मुद्दे का विश्लेषण करने का हमारा मन था, लेकिन चारों ओर यही मुद्दा, इसी पर बहस, कांग्रेस द्वारा प्रधानमंत्री और भाजपा नेताओं पर भी गालीबाज होने के आरोप, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सिलसिलेवार तरीके से गालियों को गिनाने का चुनावी संबोधन आदि के मद्देनजर यही तय करना पड़ा कि फिलहाल ‘जलती जुबान’ का विश्लेषण ही यथोचित है। इसी दौरान राहुल गांधी का ‘परामर्श’ सामने आ गया, तो और भी साफ हो गया कि कांग्रेस प्रधानमंत्री मोदी के प्रति गुजराती सहानुभूति लहर को यथासंभव थामना चाहती है। भाजपा ऐसी ही ‘लहर’ के बूते गुजरात में सत्ता को बरकरार रखती आई है। 2002 में गोधरा कांड के बाद हिंदू-मुसलमान का ध्रुवीकरण सामने था। 2007 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ‘मौत का सौदागर’ कहकर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला किया, तो मोदी गुजरात की अस्मिता का मुद्दा बनाने में कामयाब रहे। 2012 में गुजरात में एक भावना प्रचारित की गई कि मोदी देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं, लिहाजा उनका समर्थन किया जाए। इन तीन चुनावों में गुजरातियों की संवेदना और भावुकता मोदी से जुड़ी रही, नतीजतन चुनाव भाजपा के पक्ष में गए। इस बार 2017 में प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा ऐसा कोई भावुक मुद्दा पैदा नहीं कर पाए, क्योंकि सत्ता विरोधी लहर स्पष्ट रूप से दिखने लगी थी। भाजपा को 22 सालों की सरकार का हिसाब देना था। राहुल गांधी प्रचार कर रहे थे और सवाल-दर-सवाल दाग रहे थे। नई पीढि़यां युवा होकर सामने थीं, जिन्हें अतीत का राजनीतिक घटनाक्रम नहीं पता था। बेशक प्रधानमंत्री मोदी की एक ‘महानायक’ की छवि जरूर थी। इसी दौरान गलती कांग्रेसी नेता ने की और उसे प्रधानमंत्री मोदी ने लपक लिया। विकास के मुद्दे और शब्द न जाने कहां काफूर हो गए, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी सभी चुनावी रैलियों में उन गालियों को गिनवा रहे हैं, जो कांग्रेसी नेताओं ने उन्हें दी हैं। हम अधिकतर गालियों का उल्लेख पिछले संपादकीय में कर चुके हैं, लेकिन प्रधानमंत्री ने गिनवाया है कि उन्हें मणिशंकर अय्यर ने ही 2013 में ‘सांप-बिच्छू’ कहा था, जब उन्हें भाजपा ने प्रधानमंत्री उम्मीदवार चुना था। यही नहीं, मणिशंकर ने पाकिस्तान जाकर कहा कि संबंध बेहतर बनाने हैं, तो मोदी को हटाइए। क्या मणिशंकर पाकिस्तान मोदी के खिलाफ ‘सुपारी’ देने गए थे? प्रधानमंत्री ने गिनवाया कि राशिद अलवी ने उन्हें ‘स्टुपिड’ कहा। दिग्विजय ने मोदी राज की तुलना ‘राक्षसराज रावण’ से की। मनीष तिवारी ने उनकी तुलना ‘डॉन दाउद इब्राहिम’ से की। उन्हें गद्दाफी, मुसोलिनी, हिटलर भी कहा गया। उत्तर प्रदेश के इमरान मसूद ने यहां तक बयान दिया-मैं मोदी की बोटी-बोटी कर दूंगा। प्रधानमंत्री मोदी लगातार सवाल करते रहे हैं कि क्या गुजरात अपने बेटे का ऐसा अपमान बर्दाश्त करता रहेगा? हालांकि भाजपा की तरफ से भी ‘जलती जुबान’ का प्रयोग होता रहा है। सांसद परेश रावल ने सोनिया गांधी को ‘इटैलियन जर्सी गाय’ और राहुल गांधी को ‘बार बाला’ कहा। प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने राहुल को ‘खिलजी की औलाद’ करार दिया। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने गांधी परिवार को ‘जेबकतरा’ माना। प्रधानमंत्री ने अकसर राहुल के लिए ‘पप्पू’, ‘युवराज’, ‘शहजादा’  आदि शब्दों का प्रयोग किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस के लिए ‘खूनी पंजा’ शब्द का इस्तेमाल किया है। बेशक ये भी अपशब्द हैं, लेकिन इनमें तंज ज्यादा है। भाजपा व्यंग्य करती महसूस होती है। प्रधानमंत्री को जो विशेषण दिए गए हैं, उनकी तुलना में ये शब्द बेहद  हल्के हैं, लेकिन आपत्तिजनक तो ये भी हैं। कांग्रेस इन शब्दों पर कभी भी ‘सहानुभूति लहर’ पैदा नहीं कर पाई। लेकिन बुनियादी सवाल तो यह है कि चुनाव के दौरा ऐसी ‘जलती जुबान’ का प्रयोग ही क्यों किया जाए? बहरहाल अब तो 18 दिसंबर ही बताएगा कि चुनावों पर गालियों के असर कितने और कैसे रहे?


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