शराबबंदी लागू करे नई सरकार

By: Dec 15th, 2017 12:01 am

डा. ओपी शर्मा लेखक, शिमला से हैं

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें दो समय की रोटी मिले न मिले, पर शराब जरूर चाहिए। बीवी, बच्चे दुखी हों, तो होते रहें, किसे परवाह है इनकी। कितने ही परिवार बर्बाद हो रहे हैं, पर किसी को चिंता नहीं। अपराध में निरंतर वृद्धि शराब व नशे का ही परिणाम है। चोरी, डकैती, बलात्कार तथा व्यभिचार का मूल कारण ही नशा है। एक विडंबना यह भी है कि जो मदिरा नहीं पीता और दूसरे नशों से दूर है, उसे पिछड़ा कहा जाता है, आधुनिकता से दूर समझा जाता है। युवक-युवतियों और यहां तक कि बच्चों पर भी इसका असर बढ़ता जा रहा है। कहा जाता है कि आज के तनाव भरे वातावरण में थोड़ी सी मदिरा का सेवन जरूरी है, पर क्या यह सत्य है या इसका हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। हजारों बीमारियां जैसे हृदय रोग, रक्तचाप, तपेदिक जैसी बीमारियां मनुष्य को मौत के अंधेरे की ओर असमय ही धकेल रही हैं। असंख्य दुर्घटनाएं इसी का दुष्परिणाम है। अतः शराब का सेवन बंद हो, यही आज के समय की मांग है। यह कैसे किया जाए, इस संदर्भ में हरियाणा और बिहार सरकार ने इस नीति को अपनाकर देश के सामने एक सराहनीय उदाहरण प्रस्तुत किया था। आंध्र प्रदेश में महिलाओं का आंदोलन भी सफल रहा है। क्या देश की अन्य राज्य सरकारें शराबबंदी को आंदोलन का रूप नहीं दे सकतीं। इसके लिए आज राष्ट्रीय नीति बनाए जाने की नितांत आवश्यकता है। यह सुनना कितना हास्यापद लगता है कि यदि शराबबंदी कर दी जाए तो इससे सरकार को अरबों रुपए का घाटा पड़ेगा और इसे पूरा करने के लिए सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा। ऐसा समझना चाहिए कि शराबबंदी से अरबों रुपए की बचत होगी, लोगों की गरीबी दूर होगी, उन्हें भर पेट भोजन मिलेगा, भयंकर बीमारियों पर होने वाला भारी भरकम खर्चा बचेगा तथा लोग स्वस्थ होंगे। लोग स्वस्थ होंगे, तो देश के विकास में अधिक योगदान देंगे। युवा पीढ़ी को विनाश से बचाया जा सकता है। अपराधों में कमी आएगी और सड़क दुर्घटनाएं कम होंगी। इस प्रकार सरकार को अरबों रुपए की बचत होगी। यदि ऐसा संभव हो, तो हमारा देश उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर हो सकता है। आवश्यकता है, तो मजबूत इच्छाशक्ति की। शराबबंदी से राज्य को रावण राज्य से राम राज्य में परिवर्तित किया जा सकता है। उज्ज्वल और सुखद भविष्य का निर्माण किया जा सकता है। मदिराबंदी समाज के लिए वरदान साबित होगी, क्योंकि नशा अधिकतर युवा पीढ़ी करती है। उसके पास आय के सीमित साधन होते हैं। उन साधनों से परिवार का भरण पोषण करने में वह असमर्थ होता है। तब वह अपनी चिंताओं को भुलाने के लिए शराब का सहारा लेता है। धीरे-धीरे वह इसका आदी हो जाता है। वह परिवार की चिंता छोड़ देता है। इसे ही स्वर्ग का सुख मानने लगता है, जिससे उसके घर में नित्य कलह, लड़ाई-झगड़ा, गाली-गलौज व आर्थिक तंगी बढ़ जाती है और परिवार व बच्चों का सुखमय जीवन छिन जाता है। उसके परिवार व बच्चों का जीवन घोर नरक बन जाता है। शराब वास्तव में उच्च वर्ग के ऐशो आराम का साधन था। यह धीरे-धीरे गरीबों के बीच इतना पसर गया कि अब विवाह, शादी पार्टी, जन्मदिन व मित्र मंडली के साथ संगत में यह आम बात हो गई है। शराब ने हमारे सामाजिक जीवन को निराशाजनक बना दिया है, क्योंकि व्यक्ति की आय की बड़ी राशि इसी में खर्च हो जाती है। महिलाओं व बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और जीवन स्तर सुधारने में जो खर्च होना चाहिए, वह उसकी नशे की लत के कारण मिट्टी में मिल रही है।  इससे उस पूरे परिवार का जीवन स्तर बिगड़ता है। इससे उनको आर्थिक कष्ट, मानसिक तनाव तथा समाज में निराशाजनक स्थिति झेलनी पड़ती है। अतः महिलाओं का भी नैतिक दायित्व बन जाता है कि वे ऐसी बुरी आदत का विरोध करें और अपनी तंगी के कारण शराब के विरुद्ध आवाज उठाएं। यह ठीक है कि शराबबंदी से जुर्म कम होते हैं। जुर्म कम करने का इलाज कानून भी हो सकता है। शराबी हालत में दुर्घटना करने वाले ड्राइवर को उम्र कैद जैसा कानून बनाना चाहिए। केवल मद्यनिषेध कानून पास करने से यह बुराई समाप्त नहीं होगी। इससे शराब के अवैध कारोबार और इससे नित सामाजिक अपराध भी बढ़ सकते हैं। असामाजिक तत्त्व गांव-गांव, घर-घर में अवैध शराब का धंधा ज्यादा चला देंगे। कानून सख्त करने और जनता को जागरूक करने से दिमागी तौर पर लोगों को समझाने से इस बुराई पर कुछ नियंत्रण किया जा सकता है और बाद में इसे समाप्त भी किया जा सकता है। विद्यालयों व शैक्षिक संस्थाओं में बच्चों को इस बुराई के प्रति शिक्षा दी जानी चाहिए, ताकि ये होनहार युवा इस बुराई से बचे रहें। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा चलाया गया अभियान केवल विद्यालयों तक ही सीमित न रखा जाए, इसमें जनमानस को सम्मिलित करने के लिए व्यापक प्रसार कर आम लोगों को शिक्षित व जागरूक करना होगा। पुलिस विभाग की सामुदायिक योजना में भी नशा निवारण शामिल करना उचित होगा, ताकि समुचित प्रयास कर उद्देश्य की प्राप्ति की जा सके। पुलिस व जनता के बीच अच्छे ताल्लुकात बनाने के लिए शुरू की गई योजना के कहीं भी सकारात्मक परिणाम नजर नहीं आ रहे हैं। अच्छे रिश्ते बनाने के लिए शुरू की गई यह योजना कागजों तक ही सिमट गई है। हालात ऐसे हैं कि अभी भी कई स्थानों से लोगों को जानकारी प्राप्त करना टेढ़ी खीर बना हुआ है, जबकि कई स्थानों के हालात ऐसे हैं कि वहां तो फोन ही अकसर खराब रहते हैं। यहां यह योजना थाने में एक बैठक से शुरू होती है और कागजों में आकर दफन हो जाती है। इससे आम जनता व पुलिस के बीच अच्छे संबंध के नाम पर सकारात्मक परिणाम तो कोई भी नहीं निकल पा रहा है। इसी तरह का हाल नशा निवारण योजना का है। इस योजना पर सरकारी विभाग की कार्यप्रणाली भी सवालिया निशान खड़ा करती है। तंत्र की नाकामी की कीमत आम लोगों के साथ-साथ सरकारी खजाने को भी भुगतनी पड़ रही है। अतः इन बिंदुओं पर नई राज्य सरकार गंभीरता से विचार करे, तो योजनाओं के उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है।


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