संतति और समृद्घि लती है स्कन्द षष्ठी

By: Dec 16th, 2017 12:08 am

यह बहुत कम लोग जानते हैं कि स्कंद षष्ठी के संबंध में ऐसी मान्यता है कि राजा शर्याति और भार्गव ऋषि च्यवन का भी ऐतिहासिक कथानक इससे जुड़ा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि स्कंद षष्ठी की उपासना से च्यवन ऋषि को अपनी आंखों की ज्योति वापस मिल गई थी। वहीं, ब्रह्मवैवर्तपुराण में यह उल्लेख किया गया है कि स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत का मृत शिशु जीवित हो उठता है…

स्कंद षष्ठी देवसेनापति माने जाने वाले, भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय की पूजा-आराधना का पर्व है। भगवान कार्तिकेय को स्कंद के नाम से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत में इन्हीं भगवान कार्तिकेय को मुरुगन स्वामी के नाम से जाता है और संपूर्ण दक्षिण भारत में इनकी विशिष्ट पूजा-उपासना की जाती है। विजय प्राप्ति की कामना, संतान की प्राप्ति, राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति और धर्मयुद्ध में धर्मपथ पर अडिग रहने के लिए कार्तिकेय की पूजा-उपासना की जाती है। ऐसा नहीं है कि भगवान कार्तिकेय की पूजा-उपासना मात्र दक्षिण भारत में ही होती है। उत्तर भारत में भी कार्तिकेय की पूजा-उपासना उसी श्रद्धा और भक्तिभाव से की जाती है। अंतर मात्र इतना है कि दक्षिण भारत में यह प्रमख देव के रूप में अधिष्ठित हैं और विशेषकर तमिलनाडु में इनकी पूजा-उपासना अधिक प्रमुखता से की जाती है।  स्कंद षष्ठी के व्रत को लेकर स्कंदपुराण के नारद-नारायण संवाद में संतान प्राप्ति और संतान की पीड़ाओं का शमन करने वाले इस व्रत का विधान बताया गया है। जो लोग भी इस व्रत को करने की सोच रहे हैं, उन्हें एक दिन पहले से उपवास करके षष्ठी को ‘कुमार’ अर्थात कार्तिकेय की पूजा अवश्य करनी चाहिए। हालांकि तमिल प्रदेश में स्कंद षष्ठी महत्त्वपूर्ण है और इसका संपादन मंदिरों या किन्हीं भवनों से भी होता है। स्कंद षष्ठी के व्रत की प्राचीनता एवं प्रामाणिकता स्वयं परिलक्षित होती है। यही कारण है कि यह व्रत श्रद्धाभाव से मनाया जाने वाले पर्व का रूप धारण करता है। यह बहुत कम लोग जानते हैं कि स्कंद षष्ठी के संबंध में ऐसी मान्यता है कि राजा शर्याति और भार्गव ऋषि च्यवन का भी ऐतिहासिक कथानक इससे जुड़ा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि स्कंद षष्ठी की उपासना से च्यवन ऋषि को अपनी आंखों की ज्योति वापस मिल गई थी। वहीं, ब्रह्मवैवर्तपुराण में यह उल्लेख किया गया है कि स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत का मृत शिशु जीवित हो उठता है। ध्यान रखें कि स्कंद षष्ठी पूजा की पौराणिक परंपरा मानी जाती है। बताते चलें कि भगवान शिव के तेज से उत्पन्न बालक स्कंद की छह कृतिकाओं ने स्तनपान करा कर उनकी रक्षा की थी। इनके छह मुख हैं और उन्हें ‘कार्तिकेय’ नाम से भी पुकारा जाता है। अगर आप सच्चे मन से इस व्रत को करना चाहते हैं तो यह व्रत आप हर महीने की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को कर सकते हैं। बता दें कि साल के किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी से आप इस व्रत को करना शुरू कर सकते हैं। हालांकि चैत्र या फिर आश्विन मास की षष्ठी को इस व्रत को शुरू करने का प्रचलन ज्यादा माना जाता है। स्कंद षष्ठी के शुभ अवसर पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। मंदिरों में भी इन दोनों की विशेष पूजा-अर्चना होती है। जान लें कि इसमें स्कंद देव (कार्तिकेय) की स्थापना करके पूजा की जाती है और साथ ही अखंड दीपक जलाए जाते हैं। वहीं, भक्तों द्वारा स्कंद षष्ठी महात्म्य का रोज पाठ किया जाता है। सबसे पहले भगवान को स्नान कराया जाता है, उसके बाद नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और फिर उनकी पूजा की जाती है। इस दिन भगवान को उनका लोकप्रिय भोग लगाते हैं। विशेष कार्य की सिद्धि के लिए इस समय की गई पूजा-अर्चना सबसे फलदायी होती है। इसमें मांस, शराब, प्याज, लहसुन का त्याग कर देना चाहिए और ब्रह्मचर्य का संयम रखना बहुत आवश्यक होता है।

कार्तिकेय की जन्म कथा

दरअसल, भगवान कार्तिकेय की जन्म कथा की पूरी कहानी पुराणों से ही ज्ञात होती है। जब दैत्यों का अत्याचार और आतंक बुरी तरह फैल जाता है और देवताओं को पराजय का समाना करना पड़ता है, ऐसे में सभी देवता भगवान ब्रह्मा के पास भागे-भागे पहुंचते हैं और अपनी रक्षार्थ उनसे प्रार्थना करते हैं। वहीं, भगवान ब्रह्मा उनके दुख को जानकर उनसे कहते हैं कि तारक का अंत भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव हो सकता है, परंतु सती के अंत के पश्चात भगवान शिव गहन साधना में लीन हुए रहते हैं। ऐसे में इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं। तब भगवान शिव उनकी  पुकार सुनकर पार्वती से विवाह करने के लिए तैयार हो जाते हैं। शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिव जी और पार्वती का विवाह होता है। कुछ समय बाद कार्तिकेय का जन्म होता है और कार्तिकेय ताड़कासुर का वध करते हैं। भगवान स्कंद शक्ति के अधिदेव हैं, यही कारण है कि देवताओं ने इन्हें अपना सेनापतित्व प्रदान किया था। वहीं, मयूर पर आसीन देवसेनापति कुमार कार्तिक की आराधना दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा होती है, जहां लोग उन्हें ‘मुरुगन’ नाम से जानते हैं। यही नहीं, स्कंद पुराण के मूल उपदेष्टा कुमार कार्तिकेय ही हैं और यह पुराण सभी पुराणों में सबसे विशाल भी माना जाता है। राज-व्यवस्था को धर्मपूर्वक संचालित करने के लिए भगवान स्कंद का प्रसन्न होना होना आवश्यक है। वह राजकार्य में संलग्न व्यक्तियों में वीरोचित उत्साह भाव तथा धर्मबुद्धि प्रदान करते हैं और इस तरह राजनीति और धर्मनीति से जोड़ते हैं। धर्मनीति तथा राजनीति में समन्वय के प्रतीक भगवान कार्तिकेय का पूजन व आराधना दूषित होते सार्वजनिक जीवन के वर्तमान दौर में बहुत आवश्यक हो गए हैं।


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