साधना से पहले पवित्रीकरण जरूरी

By: Dec 9th, 2017 12:05 am

तंत्र साधना में कभी-कभी भयंकर संकट सामने आ जाता है, तनिक-सी गलती बड़ी घातक सिद्ध होती है। ऐसे में यदि गुरु उपस्थित हो तो वह उसकी सहायता करता है, किंतु गुरु सदा साथ नहीं रहते, इसलिए श्री गणेश जी का ध्यान करके आने वाले संकट से स्वयं को उबारा जा सकता है। श्रीविद्या साक्षात जगदंबा हैं, अतः गणेश जी के ध्यान से साधक के समक्ष आने वाले संकट का निवारण पहले ही से हो जाता है…

-गतांक से आगे…

माता त्रिपुरसुंदरी की साधना में पवित्रीकरण व भूतशुद्धि का बड़ा महत्त्व है। स्वस्तिवाचन (शांतिपाठ) के बाद निम्नलिखित तीन मंत्रों का स्तवन करते हुए जल से आचमन करें तथा अपने मस्तक पर तीन बार जल छिड़कें। तत्पश्चात दोनों हाथों को जल से धो लें। मंत्र इस प्रकार हैं ः

ओउम केशवाय नमः स्वाहा।

ओउम नारायणाय नमः स्वाहा।

ओउम माधवाय नमः स्वाहा।

साधना-स्थल यों तो पहली ही अच्छी तरह से स्वच्छ और शुद्ध  कर दिया जाता है, लेकिन देवी की साधना से पहले निम्न मंत्र का स्तवन करके स्वयं को और फिर साधना-स्थल को शुद्ध एवं पवित्र करें ः

ओउम अपवित्रः पवित्रों वा सर्वावस्थां गतोअपि वा

यः स्मरेत्पुंडरीकाक्षं  स वाह्याभ्यंतरः शुचिः।

उपर्युक्त मंत्र का स्तवन करते हुए अपने सिर पर तीन बार जल छिड़कें, फिर आचमन करके हाथ धोने के बाद इस मंत्र से भूतशुद्धि करें ः

ओउम अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भुविसंस्थिता

ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यंतु शिवाज्ञया।

संकट निवारण

तंत्र साधना में कभी-कभी भयंकर संकट सामने आ जाता है, तनिक-सी गलती बड़ी घातक सिद्ध होती है। ऐसे में यदि गुरु उपस्थित हो तो वह उसकी सहायता करता है, किंतु गुरु सदा साथ नहीं रहते, इसलिए श्री गणेश जी का ध्यान करके आने वाले संकट से स्वयं को उबारा जा सकता है। श्रीविद्या साक्षात जगदंबा हैं, अतः गणेश जी के ध्यान से साधक के समक्ष आने वाले संकट का निवारण पहले ही से हो जाता है।

संकल्प

किसी भा एक कामना का चुनाव करके उसे मूर्त रूप देने का नाम संकल्प है। इसलिए संकल्पपूर्वक किए गए कर्म का फल अवश्य मिलता है, अर्थात साधना में सफलता मिलती है। कहा गया है ः

संकल्पमूलः कामौः वै यज्ञाः संकल्प संभवाः।

व्रता नियम कर्माश्च सर्वे संकल्पजाः स्मृताः।।

तात्पर्य यह है कि मनुष्य की समस्त कामनाओं का प्रकटीकरण संकल्प के माध्यम से होता है। कहा जाता है, यदि संकल्प न किया जाए, तो किए जाने वाले कर्म या साधना का फल वरुण हरण करता है, अर्थात वह कर्म या साधना व्यर्थ चली जाती है। इसलिए संकल्प जरूरी है। भगवती त्रिपुरसुंदरी निर्धन को धन, निःसंतान को संतान, रोगी को स्वस्थ निरोग काया, भयभीत को अभय, युद्ध में रत को विजय और सर्वोपरि, अपने चरणों में आश्रय देने वाली हैं। कन्याओं के लिए देवी अभीष्ट वर देने वाली हैं। इनकी उपासना से साधक अलौकिक शक्तियों से युक्त हो जाता है। देवी के मंत्र का पुरश्चरण सवा लाख जप का है। इसमें बारह हजार पांच सौ हवन, बारह सौ पचास तर्पण, एक सौ पच्चीस मार्जन, दस से पंद्रह ब्राह्मण अथवा बालिकाओं को भोजन-पूजन, इस प्रकार पूरा पुरश्चरण लगभग एक लाख चालीस हजार जप का है। हवन इत्यादि की व्यवस्था न होने पर उसके स्थान पर दस गुना जप करना यथेष्ट माना जाता है। चालीस दिन के पुरश्चरण हेतु प्रतिदिन पैंतीस या चालीस माला जप करना चाहिए। इक्कीस दिन का संकल्प करें तथा साठ माला नित्य के हिसाब से किसी शुभ योग, शुभ मुहूर्त अथवा शुभ दिन में अनुष्ठान आरंभ करें।


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