सुकून और सीख देती है गजल

By: Dec 3rd, 2017 12:05 am

हिमाचल का लेखक जगत अपने साहित्यिक परिवेश में जो जोड़ चुका है, उससे आगे निकलती जुस्तजू को समझने की कोशिश। समाज को बुनती इच्छाएं और टूटती सीमाओं के बंधन से मुक्त होती अभिव्यक्ति को समझने की कोशिश। जब शब्द दरगाह के मानिंद नजर आते हैं, तो किताब के दर्पण में लेखक से रू-ब-रू होने की इबादत की तरह, इस सीरीज को स्वीकार करें। इस क्रम में जब हमने अमरनाथ धीमान के हिंदी गजल संग्रह ‘जिंदगी का सफर’ की पड़ताल की तो कई पहलू सामने आए…

जब रू-ब-रू हुए…

दिहि : आपके लिए गजल क्या और क्यों है?

अमरनाथ : जिस बात का दिल पे असर हो, वो गजल होती है और जो रूह में चलती है, उसे भी गजल कहते हैं।

दिहि : कविता, गीत और गजल के बीच आप खुद को कहां देखते हैं। आपके लिए सहज होना सालता है या असहज सहमति में सुकून मिलता है?

अमरनाथ : कविता, गीत और गजल के बीच में हम अपने आपको गीत में पाते हैं। मेरे लिए सहज होना सरलता है।

दिहि : सामान्य जीवन में भी लेखकीय संवदेना का पीछा करना पड़ता है या जीवन के किसी छोर पर बड़ी अनुभूति पास बुला लेती है?

अमरनाथ : सामान्य जीवन में किसी छोर पर खड़ी अनुभूति पास बुला लेती है।

दिहि : क्या यथार्थवादी होना भावनाओं की कैद से मुक्त होने जैसी कोशिश है। जब तड़पते हुए मन पर कविता छा जाती है, तो वापस लौटने का मार्ग?

अमरनाथ : यथार्थवादी होना भावनाओं की कैद से मुक्त होने जैसी कोशिश है, जब तड़पते हुए मन पर कविता छा जाती है, तब अभिव्यक्ति ही वापस लौटने का मार्ग है।

दिहि : आपके लिए गजल का संयोग कब-कब बनता है। क्या कोई विशेष प्राथमिकता के तहत आप कह पाते हैं या जो चाह कर भी नहीं छू पाते, उस मुकाम की परिकल्पना किस दृष्टि से संभव है?

अमरनाथ : दिल की अधूरी बात को पूरा करने के लिए गजल निर्माण का संयोग बनता है। जो चाहकर भी नहीं छू पाते, उस मुकाम की परिकल्पना गजल रचना की दृष्टि से संभव है।

दिहि : आपकी पसंदीदा गजलें और इसकी वजह?

अमरनाथ : यहां कोई भी सच्ची बात अब मानी नहीं जाती…।

दिहि : गजल की कैद में कब आए और लिखने से पहले किसे-किसे पढ़ा?

अमरनाथ : वर्ष 2000 में गजलें लिखना शुरू किया। लिखने से पहले गुलाम अली व जगजीत सिंह की गजलों को सुना तथा पढ़ा।

दिहि : आपके अनुसार गजल का सफल होना किन बातों पर निर्भर करता है?

अमरनाथ : गजल का सफल होना शब्दों की गहराई, दिल छूने वाली रचना और यथार्थवादिता पर निर्भर है।

दिहि : हर रचना में लेखक खुद शरीक होता है। ऐसे में गजल की रूह और गजल की पकड़ में होने को आप कैसे देखते हैं?

अमरनाथ : हां, हर रचना में लेखक खुद शरीक होता है। गजल को अंतरात्मा से निकली हुई आवाज के रूप में देखते हैं।

दिहि : हिंदी गजल कहीं उर्दू की छाया में कमजोर न हो जाए, तो इससे बचने के लिए आपके पास क्या रास्ता है। हिंदी के प्रयोग में गजल सहारा है या अलग धारा?

अमरनाथ : इससे बचने के लिए हमारे पास यह रास्ता है कि हिंदी गजल रचना के समय हिंदी शब्दों का ही प्रयोग किया जाए। हिंदी के प्रयोग में गजल सहारा है।

दिहि : शब्द जब शरारती हो, तो संवेदना के संगम पर नहाने का खतरा विचारों के निर्वस्त्र होने जैसा है या अभिव्यक्ति की मौलिकता में सामाजिक मर्यादा तोड़ने का गुनाह कबूल है?

अमरनाथ : शब्द जब शरारती हो, तो संवेदना के संगम पर नहाने का खतरा विचारों के निर्वस्त्र होने जैसा है।

दिहि : जीवन की गति और ठहराव के बीच रचनाओं की किस्ती के सामने भंवर क्या है?

अमरनाथ : जीवन की गति और ठहराव के बीच रचनाओं की किस्ती के सामने व्यवस्था का संवेदनशील होना।

दिहि : क्या साहित्यिक किनारों की खोज के बजाय डूब जाने की उच्छृंखलता ज्यादा उपयोगी है?

अमरनाथ : साहित्यिक किनारों की खोज के बजाय डूब जाने की उच्छृंखलता ज्यादा उपयोगी नहीं है।

दिहि : आशावादी होने की वजह से आज का साहित्य क्यों दूर हो चला है?

अमरनाथ : सकारात्मक सोच का अभाव होने के कारण आज का साहित्य दूर हो चला है।

-राजकुमार सेन, घुमारवीं

 


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