स्वास्थ्य तंत्र की बिगड़ी सेहत

By: Dec 13th, 2017 12:06 am

विजय शर्मा

लेखक, दरब्यार, हमीरपुर से हैं

प्रदेश की 739 पंचायतों में कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है और जहां कोई स्वास्थ्य केंद्र है भी, वहां डाक्टरों और दवाइयों का अभाव है। आपात स्थिति चिकित्सकों की सेवाएं, एंबुलेंस या प्राथमिक उपचार की कोई व्यवस्था नहीं है। सबसे ज्यादा खराब हालत जनजातीय क्षेत्रों एवं निचले यानी नए हिमाचल हमीरपुर, कांगड़़ा, ऊना की है, जहां स्वास्थ्य केंद्रों का अभाव है। अस्पतालों में डाक्टरों, ढांचागत सुविधाओं और दवाओं की भारी कमी है। तहसील एवं जिला स्तर पर गाइनोकोलॉजिस्ट की भारी कमी के चलते प्रसव पीडि़त महिलाओं को टांडा और शिमला रैफर करने की बात की जाती है…

राज्य सरकार दावा करती रही है कि स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में हमारी गिनती देश के अग्रणी राज्यों में की जाती है। प्रदेश सरकार का यह भी दावा है कि सरकार हर वर्ष प्रति व्यक्ति 26,000 हजार रुपए स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च कर रही है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि इसके बावजूद हजारों मरीज चंडीगढ़ पीजीआई और दिल्ली के अस्पतालों में अपना इलाज कराने को विवश हैं। ब्लॉक एवं जिला स्तरीय सरकारी अस्पतालों में न तो चिकित्सीय सुविधाएं हैं और न ही विशेषज्ञ डाक्टर हैं। यही कारण है कि शिमला राजकीय अस्पताल और टांडा मेडिकल कालेज में मरीजों की भारी भीड़ रहती है। प्रदेश सरकार के दावे के बावजूद हैरानी की बात यह है कि करीब 20 प्रतिशत पंचायतों में कोई स्वास्थ्य केंद्र ही नहीं है।

प्रदेश की 739 पंचायतों में कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है और जहां कोई स्वास्थ्य केंद्र है भी, वहां डाक्टरों और दवाइयों का अभाव है। यहां आपात स्थिति में चिकित्सकों की सेवाएं, एंबुलेंस या प्राथमिक उपचार की कोई व्यवस्था नहीं है। सबसे ज्यादा खराब हालत जनजातीय क्षेत्रों एवं निचले यानी नए हिमाचल हमीरपुर, कांगड़़ा, ऊना की है, जहां स्वास्थ्य केंद्रों का अभाव है। अस्पतालों में डाक्टरों, ढांचागत सुविधाओं और दवाओं की भारी कमी है। तहसील एवं जिला स्तर पर गाइनोकोलॉजिस्ट की भारी कमी के चलते प्रसव पीडि़त महिलाओं को टांडा और शिमला रैफर करने की बात की जाती है। ये अस्पताल भी इतनी दूरी पर स्थित हैं कि आपात स्थिति में वहां पहुंचना जच्चा और बच्चा दोनों के लिए खतरनाक होता है। अतः विवश होकर परिजनों को प्राइवेट नर्सिंग होम्स या अस्पतालों की शरण लेनी पड़ती है। इसके अलावा प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार के चलते सरकारी अस्पतालों के डाक्टरों द्वारा दवाइयां और टेस्ट बाहर से कराने पर जोर दिया जाता है। ये कुछ कारण हैं कि प्राइवेट नर्सिंग होम और अस्पताल फल-फूल रहे हैं और सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का भट्ठा बैठता जा रहा है।

प्रदेश में खस्ताहाल स्वास्थ्य तंत्र की और गहराई से पड़ताल करें, तो मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के गृह जिला की 30 और उनके विधानसभा क्षेत्र की छह पंचायतों में कोई भी स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के गृह जिला की 54 पंचायतों में कोई चिकित्सा सुविधा नहीं है और स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर के विधानसभा क्षेत्र की आठ पंचायतों में कोई चिकित्सा सुविधा नहीं है। इसी प्रकार मंडी जिला की 93 पंचायतों में कोई चिकित्सा सुविधा नहीं है। इसके अलावा चंबा की 57, कांगड़ा की 242, कुल्लू की 80, सिरमौर की 59 और ऊना की 83 ग्राम पंचायतों में कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। यहां आशा वर्कर एवं आंगनबाड़ी केंद्रों की मदद से ही काम चलाया जा रहा है। हालांकि कहने को तो इन पंचायतों को किसी न किसी स्वास्थ्य केंद्र से जोड़ा गया है, लेकिन इनकी दूरी एवं चिकित्सा सुविधाओं और डाक्टरों की कमी के कारण यहां के लोग प्राइवेट डाक्टरों या फिर गंभीर हालत में बड़े सरकारी अस्पतालों की शरण लेते हैं। बड़े सरकारी अस्पतालों में ढांचागत सुविधाओं की कमी, दवाओं का अभाव एवं बाहर से कराए जाने वाले टेस्टों की मार से रोगी एवं उसके परिजन खुद को ठगा महसूस करते हैं। इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज, शिमला में ढांचागत सुविधाओं की भारी कमी है। टांडा मेडिकल कालेज अस्पताल में जितनी सुविधाएं हैं, उससे कहीं अधिक मरीज हैं। खास तौर पर स्त्री रोग विभाग में प्रसव के सामान्य मामले भी तहसीलों और जिला अस्पतालों से टांडा रैफर कर दिए जाते हैं। टांडा मेडिकल कालेज के डाक्टर अत्यधिक दबाव में काम करते हैं। केंद्र सरकार की आर्थिक मदद के बावजूद प्रदेश की राजधानी शिमला में पिछले साल बड़े पैमाने पर पीलिया फैला, जिसमें 35 लोगों की मौत हो गई और करीब 33,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए थे। डेंगू और अब स्क्रब टायफस 50 से अधिक लोगों को अपना शिकार बना चुके हैं।

केंद्र सरकार ने प्रदेश के चार मेडिकल कालेजों के लिए 600 करोड़ रुपए जारी किए हैं और पांच जिलों में ट्रॉमा केयर सेंटर स्वीकृत किए हैं। इसके अलावा वित्त वर्ष 2014-15 में नेशनल हैल्थ मिशन के तहत 234 करोड़ तथा वर्ष 2015-16 के लिए 298 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता प्रदान की है। इसके बावजूद स्वास्थ्य सेवाओं की कमी चिंता का विषय है। अब केंद्र सरकार बिलासपुर में एम्स का निर्माण कर रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं इसका उद्घाटन किया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा स्वयं बिलासपुर के ही मूल निवासी हैं और उनकी कोशिश है कि जल्द से जल्द इसका निर्माण हो और लोगों को चंडीगढ़, दिल्ली और दूरदराज के शहरों में इलाज के लिए भटकने से मुक्ति मिल सके। इसके बावजूद ब्लॉक और जिला स्तरीय अस्पतालों को चुस्त-दुरुस्त करना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए और मृतप्रायः हो चुके औषधालयों और स्वास्थ्य केंद्रों पर उचित इलाज एवं दवाई की व्यवस्था होने से प्रदेश का जनमानस खुशहाली महसूस करेगा। नई सरकार को आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति छोड़कर विभिन्न मोर्चों पर एकसाथ काम करना होगा, तभी प्रदेश का विकास संभव है। इसके लिए अब हमारे राजनेताओं को भी ओछी राजनीति को छोड़कर प्रदेश को आगे ले जाने के लिए एक समग्र व व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।

केंद्र सरकार ने प्रदेश में 7,552 आशा वर्कर्स तैनात करने के लिए 15.24 करोड़ रुपए के साथ 2,744 अनुबंध पर रखे जाने वाले कर्मियों के पदों की स्वीकृति दी है। जननी सुरक्षा योजना के लिए प्रदेश को 33 करोड़ रुपए और गरीबों को मुफ्त दवाइयां उपलब्ध करवाने के लिए 61 करोड़ रुपए स्वीकृत किए हैं। इसके अलावा आधारभूत संरचनाएं खड़ी करने के लिए 60 करोड़ रुपए और एंबुलेंस खरीदने के लिए 3.46 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। अब यह प्रदेश सरकार पर निर्भर करता है कि वह इसका कितना सदुपयोग करती है।


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