अदालत के खिलाफ मी लार्ड

By: Jan 13th, 2018 12:08 am

आजाद भारत के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने मुख्य न्यायाधीश पर उठाई अंगुली

नई दिल्ली— आजाद भारत के इतिहास में पहली बार उच्चतम न्यायालय के चार मौजूदा न्यायाधीशों ने शुक्रवार को अपना कामकाज छोड़कर आनन-फानन में प्रेस कान्फ्रेंस बुलाई और देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए। शीर्ष अदालत के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्ती चेलमेश्वर के तुगलक रोड स्थित आवास पर बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में चारों न्यायाधीशों ने सर्वोच्च अदालत की कार्यप्रणाली में प्रशासनिक व्यवस्थाओं का पालन नहीं किए जाने और सुनवाई के लिए महत्त्वपूर्ण मुकदमों के आबंटन में मनमाना रवैया अपनाने का आरोप लगाया। इस प्रेस कान्फ्रेंस में न्यायमूर्ति चेलमेश्वर के साथ न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ भी उपस्थित थे। मीडिया को मुख्य रूप से न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने संबोधित किया और न्यायमूर्ति गोगोई ने भी बीच में टिप्पणी की। इन न्यायाधीशों ने कहा कि उच्चतम न्यायालय का प्रशासन ठीक तरह से काम नहीं कर रहा है और यदि इस संस्था को ठीक नहीं किया गया, तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा कि हम चार न्यायाधीशों ने तमाम प्रशासकीय खामियों का हवाला देकर मुख्य न्यायाधीश से मुलाकात की थी, लेकिन वहां से कोई समाधान न मिल पाने की स्थिति में देश को वस्तुस्थिति से अवगत कराने के लिए हमें मीडिया का सहारा लेना पड़ा है। न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा कि शीर्ष अदालत का प्रशासन अस्त-व्यस्त है। जब तक उच्चतम न्यायालय को संरक्षित नहीं किया जाता, तब तक लोकतंत्र सुरक्षित नहीं रह सकता। उन्होंने कहा कि हम देश के समक्ष यह बात इसलिए रखना चाहते हैं कि अब से 20 साल बाद कोई यह न कह सके कि उच्चतम न्यायालय के चार न्यायाधीशों ने अपनी आत्मा बेच डाली। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत में बहुत कुछ ऐसा हुआ है, जो नहीं होना चाहिए था। उन्होंने सीजेआई से भेंट करके सुधारात्मक कदम उठाने का आग्रह किया, लेकिन उनके प्रयास निरर्थक साबित हुए। मीडियाकर्मियों के एक सवाल के जवाब में न्यायमूर्ति गोगोई ने यह स्वीकार किया कि सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले के ट्रायल जज बीएच लोया की हत्या की जांच का मामला भी उनकी नाराजगी के केंद्र में है। ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि शीर्ष अदालत के बहुत सारे अहम मुकदमे कुछ कनिष्ठ जजों को सुनवाई के लिए दिए जा रहे हैं और वरिष्ठ जजों को नजरअंदाज किया जाता है। उन्होंने सीजेआई को पूर्व में दिए गए सात पन्नों का वह पत्र भी मीडियाकर्मियों को जारी किया, जिसके माध्यम से उन चारों न्यायाधीशों ने अपनी शिकायतें दर्ज कराई थीं। इन न्यायाधीशों ने पत्र में कहा है कि मुख्य न्यायाधीश का पद समान स्तर के न्यायाधीशों में पहला होता है। तय सिद्धांतों के अनुसार मुख्य न्यायाधीश को रोस्टर तय करने का विशेष अधिकार होता है और वह न्यायालय के न्यायाधीशों या पीठों को सुनवाई के लिए मुकदमे आबंटित करता है। मुख्य न्यायाधीश को यह अधिकार अदालत के सुचारू रूप से कार्य संचालन एवं अनुशासन बनाए रखने के लिए है न कि मुख्य न्यायाधीश के अपने सहयोगी न्यायाधीशों पर अधिकारपूर्ण सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए। इस प्रकार से मुख्य न्यायाधीश का पद समान स्तर के न्यायाधीशों में पहला होता है, न उससे कम और न उससे अधिक। उन्होंने चुनिंदा ढंग से मुकदमे सुनवाई के लिए चुनिंदा न्यायाधीशों को आबंटित किए जाने का भी आरोप लगाया। पत्र में उन्होंने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनके देश और न्यायपालिका पर दूरगामी परिणाम पड़े हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कई मुकदमों को बिना किसी तार्किक आधार ‘अपनी पसंद’ के हिसाब से पीठों को आबंटित किया है। ऐसी बातों को हर कीमत पर रोका जाना चाहिए। उन्होंने यह भी लिखा कि न्यायपालिका के सामने असहज स्थिति पैदा न हो, इसलिए वे अभी इन केसों का विवरण नहीं दे रहे हैं, लेकिन इसे समझा जाना चाहिए कि ऐसे मनमाने ढंग से काम करने से संस्था की छवि कुछ हद तक धूमिल हुई है। न्यायाधीशों ने कहा कि इस बात को बहुत गंभीर चिंता के विषय के रूप में लिया जाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश अन्य न्यायाधीशों से परामर्श करके इस स्थिति को ठीक करने और उसके लिए समुचित कदम उठाने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं।

महाभियोग पर जनता ही ले फैसला

न्ययाधीश चेलामेश्वर ने कहा कि हमारे पत्र पर अब राष्ट्र को विचार करना है कि मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाया जाना चाहिए या नहीं। यह खुशी की बात नहीं है कि हमें प्रेस कान्फ्रेंस बुलानी पड़ी है। सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन सही से नहीं चल रहा है।

आरोपों पर राजनीति में भी मची खलबली

नई दिल्ली —  केंद्र सरकार ने इस पूरे मामले को सुप्रीम कोर्ट का अंदरूनी मामला बताते हुए पल्ला झाड़ लिया, तो कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र के लिए खतरा करार दिया। इसी बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्वोच्च अदालत के सुप्रीम संकट पर कानून मंत्री रविशंकर से बातचीत भी की।


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