अब शराब ठेकेदारों के ‘अच्छे दिन आएंगे’

By: Jan 12th, 2018 12:10 am

तमिलनाडु मॉडल पर गठित हुई था बीवरेज कारपोरेशन, घपले की बू पर सरकार ने बदली है आबकारी नीति

शिमला— भले ही जयराम सरकार ने घपले की बू के चलते आबकारी नीति को रोल बैक करने का फैसला लिया हो, मगर जानकारों की राय में बीवरेजिज कारपोरेशन, जिसका गठन तमिलनाडु मॉडल पर किया गया था, उसे स्क्रैप करना सही भी नहीं हो सकता है। यह निगम गठन से लेकर अब तक 500 करोड़ का कारोबार कर चुका है, जिसमें तीन फीसदी के हिसाब से कारोबार पर इसे कमीशन मिलती थी। निगम सीधे निर्माता कंपनी से माल उठाता था, जिस पर उसे कमीशन मिल रहा था। इसे आगे ठेकेदारों को अलाट किया जा रहा था। बद्दी में बिना कमीशन के जब ठेकेदारों को चोर दरवाजे से माल अलाट हो रहा था तो कुछ अधिकारियों के खिलाफ मामला भी दर्ज किया। अब इसे स्क्रैप कर दिया गया है। इसका गठन ऐसे में हुआ था, जब धर्मशाला में तत्कालीन वीरभद्र सरकार ने कैबिनेट बैठक के दौरान शराब ठेकों की नीलामी करने का फैसला लिया था। उस दौरान तत्कालीन आबकारी मंत्री ने कहा था कि इससे प्रदेश को 500 करोड़ की आमदन होगी, मगर 15 दिन बाद शिमला में आयोजित की गई कैबिनेट की बैठक में इसे बदल दिया गया और पुराने ठेकेदारों को ही ठेकों को चालू रखने का निर्णय लिया। भाजपा ने इस पर बवाल उठाया, जिसमें कहा गया कि इससे प्रदेश को 500 करोड़ की चपत लगी है। भाजपा ने आरोप पत्र में भी यह आरोप लगाया था कि शराब माफिया के दबाव में ही यह फैसला पलटा गया। इसके बाद ही बीवरेज कारपोरेशन की स्थापना हुई।

ठेकेदारों की दिक्कतें

निगम की स्थापना के बाद ठेकेदारों की दिक्कतें बढ़ीं, क्योंकि उन्हें सीधे निगम से माल उठाना होता था। निगम शराब की गुणवत्ता को भी परख रहा था। यही वजह है कि डेढ़ वर्ष में शराब की गुणवत्ता को लेकर शिकायत नहीं आई।

यह है जांच का विषय

सूत्रों के मुताबिक जांच इसकी हो सकती है कि कहीं निगम कुछ चुनिंदा ब्रांड्स की बिक्री को प्रोत्साहित तो नहीं कर रही था। इसके पीछे मकसद क्या था, यह भी जांच का विषय हो सकता है।

अधिकतम-न्यूनतम कीमतों पर है दिक्कत

निगम के गठन के बाद शराब की कीमतों पर अंकुश लगाने की बजाय मनमर्जी से ठेकेदार यानी रिटेलर एक ही स्थान पर एक ही ब्रांड की अलग-अलग कीमतें वसूलते रहे, जिससे पियक्कड़ों में रोष पनपता रहा, पर्यटक भी परेशान दिखे।

क्या सीधे निर्माता कंपनियों से ही आ रही थी सप्लाई

यह भी जांच का विषय है कि निगम के गठन के बाद करोड़ों रुपए की शराब की सप्लाई सीधे निर्माता कंपनियों से आ रही थी या फिर कोई बिचोलिया सक्रिय था।

यह है राय

सरकार निगम को स्क्रैप न कर इसकी खामियों को प्रबंधकीय स्तर पर दूर करे, पर्यटकों व मदिरा का सेवन करने वालों के हितों के मद्देनजर कीमतें तय करे तो इस निगम का फायद मिल सकता है।


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