आत्मा की व्याकुलता

By: Jan 13th, 2018 12:05 am
श्रीश्री रवि शंकर

आत्मा की व्याकुलता इस तपस से शांत होती है। जीवन में विरोधाभास सब जगह है, विपरीत साथ में रहते हैं, गर्मी और सर्दी, पर्वत व खाई, हरियाली और हिम, ऐसे कई उदाहरण हैं। गतिशीलता और स्थिरता ऊर्जा के विरोधाभास हैं। यह विरोधाभास ही जीवन को और रसीला बनाते हैं।  शिव और पार्वती स्व-प्रकाशमान हैं और दूसरों के लिए मार्गदर्शक दीप हैं…

श्रवण के संस्कृत शब्द का अर्थ है सुनना। जीवन में ज्ञान समावेष करने का पहला कदम श्रवण है। पहले हम ज्ञान सुनते हैं (श्रवण) फिर बार-बार उसे अपने मन में दोहराते हैं। यह है मनन, फिर वह ज्ञान हमारे जीवन में समाहित होकर हमारी संपत्ति बन जाता है, यह है निधिध्यासन। यह मास है ज्ञान में डूबने का, बड़े बुजुर्गों से सीखने का और ज्ञान के पथ पर चलने का। पार्वती जी ने इसी मास में शिवजी की पूजा की थी। शिव को पाने के लिए उन्होंने तपस्या भी की थी। इस समय हम अपने अंतःकरण में डुबकी लगाकर वहां व्याप्त शिवतत्त्व से साक्षात्कार कर सकते हैं। पार्वती शक्ति का रूप हैं। शक्ति अर्थात बल, सामर्थ्य एवं उर्जा। शक्ति ही इस पूरी सृष्टि का गर्भस्थान हैं। अतः इस दिव्य पहलू को माता का रूप दिया गया है। शक्ति सब प्रकार के उत्साह, तेजस्व, सौंदर्य, समता, शांति व भरण-पोषण की बीज है।  शक्ति ही जीवन ऊर्जा है। इस दिव्य ऊर्जा, शक्ति के विभिन्न कार्यों के अनुसार उसके अनेकों नाम और रूप हैं। गतिशीलता की अभिव्यक्ति ही शक्ति है। शिवतत्त्व अवर्णनीय है। तुम हवा को बहते हुए महसूस कर  सकते हो, पेड़ों को झूमते हुए देख सकते हो, लेकिन उस स्थिरता को नहीं देख सकते जो इन सभी गतिविधियों का संदर्भ बिंदु है। शांति व स्थिरता शिव हैं, दोनों ही आवश्यक हैं। जब गतिशील अभिव्यक्ति का भीतर की स्थिरता से मिलन होता है तब रचनात्मकता, सकारात्मकता व सत्व उत्पन्न होता है। शक्ति एक गतिमान बल है। पार्वती आदिशक्ति का अंश है। शिव के संदर्भ में वह अर्द्धांगी है, वह एक तेजस्विनी ऊर्जा हैं, शिव के गतिशील पहलू का रूप हैं। एक समय ऐसा भी था जब शक्ति भी तपस में थी। तीर को आगे चलाने के लिए पहले उसे कमान से पीछे की ओर खींचना पड़ता है। श्रावण मास भी निवृत्ति की वह कला है, जब शक्ति भी भीतर की ओर जाती है। आत्मा की व्याकुलता इस तपस से शांत होती है। जीवन में विरोधाभास सब जगह है, विपरीत साथ में रहते हैं, गर्मी और सर्दी, पर्वत व खाई, हरियाली और हिम, ऐसे कई उदाहरण हैं। गतिशीलता और स्थिरता ऊर्जा के विरोधाभास हैं। यह विरोधाभास ही जीवन को और रसीला बनाते हैं।  शिव और पार्वती स्व-प्रकाशमान हैं और दूसरों के लिए मार्गदर्शक दीप हैं। पार्वती प्रेम, निर्दोषता, देखभाल व भूमिकाओं के निर्वाहन की प्रतिरूप हैं। वह श्रेष्ठ पुत्री, पत्नी व मां हैं।  वह दांपत्य का एक श्रेष्ठ उदाहरण हैं। पर्व का अर्थ हैं उत्सव, सत्व से उभरने वाला उत्सव। जब तमस का प्रभुत्व होता है, तब वहां उत्सव नहीं, बल्कि आलस्य होता है। रजोगुण से उत्पन्न होने वाला कोई उत्सव अधिक समय तक नहीं टिकता। मात्र सत्व में ही हम सदैव उत्सव मना सकते हैं। शिव मन, संकल्प, विचार, भावना, वाणी और कर्म की शुद्धता के साथ उत्सव के आदिपति हैं। जो भौतिक जगत के परे है। वे उत्सव, आनंद, परोपकार व प्रेम के शाश्वत प्रतीक हैं।


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