आधी आबादी को अधूरा प्रतिनिधित्व

By: Jan 20th, 2018 12:05 am

कंचन शर्मा

लेखिका, शिमला से हैं

68 सदस्यीय हिमाचल विधानसभा में केवल तीन महिलाएं ही चुनी गईं। जब महिलाएं बढ़-चढ़कर प्रचार-प्रसार में हिस्सा ले रही हैं, तो टिकट आबंटन के वक्त महिलाओं को तवज्जो क्यों नहीं दी जाती? राजनीति में महिला भागीदारी का स्वर केवल गोष्ठियों व सेमिनारों में बहस के रूप में ही गूंजता है…

महिलाएं देश की आबादी का आधा हिस्सा हैं। एयरफोर्स, फिल्म जगत, मीडिया, खेल, न्यायालय प्रतियोगी परीक्षाओं, प्रशासनिक सेवाओं के साथ-साथ महिलाएं राजनीति के क्षेत्र में सुनहरे वरक लिख रही हैं। समग्र समाज में महिलाओं की भागीदारी को लेकर उत्साह और प्रयासों को देखकर मन गर्वित होता है। सवाल यह उठता है कि जहां मतदाताओं के रूप में महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है, वहीं उनका  राजनीतिक प्रतिनिधित्व व भागीदारी अपेक्षा से इतना कम क्यों है। राजनीति में निर्णायक पदों पर महिलाओं की अल्प भूमिका इंगित करती है कि राजनीति में महिलाओं के प्रवेश द्वार पर आज भी पुरुष सत्ता का ग्रहण लगा है।

पहाड़ी राज्य हिमाचल  प्रदेश में पिछले कुछ  दशकों से महिलाएं चूल्हे-चौके, खेत-खलिहान से निकलकर चुनावी राजनीति में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। इसके पीछे सक्रिय शक्ति के रूप में मैं पंचायती राज में महिलाओं के लिए पचास प्रतिशत आरक्षण का प्रभाव मानती हूं, जो पुरुष वर्चस्व से स्थापित बाड़बंदी को तोड़कर खुले आकाश में निकलकर अपने व समाज के अधिकारों के लिए लड़ रही हैं। गौरतलब है कि पचास प्रतिशत महिला आरक्षित सीटों के अलावा हिमाचली पंचायती राज में पचास प्रतिशत से अधिक महिलाएं जीतकर सामने आई हैं। इससे साफ जाहिर है कि हिमाचली महिलाएं राजनीति में सक्रिय रूप में आगे बढ़ रही हैं। 1993 में पंचायतों में आने वाली महिलाओं के लिए सरपंच पति और रबड़ स्टांप जैसे नकारात्मक विशेषणों का इस्तेमाल शुरू हुआ। सफर बेशक संघर्षमय था, फिर भी पंचायती राज संस्थाओं ने सत्ता की पेचीदगियों को समझने व अपने कार्य का निर्वाह करने में पुरुषों को मात दी है। शहरों में रहने वाली किशोर लड़कियों के रोल मॉडल भले ही फिल्म जगत या राजनीति में नाम कमाने वाली सुष्मिता सेन या हिलेरी क्लिंटन हों, गांवों की किशोरियों के आदर्शअब बदल रहे हैं। किरण बेदी, सुषमा स्वराज या सोनिया गांधी के बजाय गांव की बालाएं पढ़ने-लिखने के साथ या बाद में सरपंच या वार्ड मेंबर के रूप में प्रभावी भूमिका निभाने वाली महिलाओं को अपना रोल मॉडल मानने लगी हैं। यह सब पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षण से ही संभव हुआ है। हिमाचल में देश की सबसे कम उम्र की बीडीसी चेयरपर्सन प्रज्ज्वल बस्ता इसका ज्वलंत उदाहरण है।

पंचायतों से चलकर हम विधानसभा व लोकसभा पहुंचते हैं, तो महिला प्रतिनिधियों की संख्या से जुड़े चौंकाने वाले आंकड़े सामने आते हैं। हिमाचल की कुल जनसंख्या में पचास प्रतिशत महिलाएं हैं। अगर हम विधानसभा चुनाव 2017 की बात करें, तो कुल मतदान प्रतिशत 74.61 प्रतिशत रहा, जिसमें महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से अधिक रही, जबकि 68 सदस्यों वाली हिमाचल विधानसभा में केवल तीन महिलाएं ही विधायक चुनी गईं। चुनाव प्रचार की बात करें, तो मुख्य राजनीतिक दलों की पंचायतों, ब्लॉकों व समितियों की महिला प्रतिनिधियों के साथ पार्टियों की महिला कार्यकर्ताओं ने जोर-शोर से चुनाव प्रचार ही नहीं किया, अपितु 136 मतदान केंद्र महिलाओं के जिम्मे थे। हर विधानसभा क्षेत्र में दो बूथ ऐसे थे, जहां केवल महिलाओं पर ही वोटिंग की सुरक्षा का जिम्मा था। जब महिलाएं बढ़-चढ़कर प्रचार-प्रसार में हिस्सा ले रही हैं, तो टिकट आबंटन के वक्त महिलाओं को तवज्जो क्यों नहीं दी जाती? इसकी वजह महिलाओं में जीतने की क्षमता का कम होना, राजनीति में पितृसत्तात्मक ढांचे की मौजूदगी या फिर महिला उम्मीदवार न मिलने की बात उठाई जाती है। इस तरह विधानसभा, राज्यसभा या लोकसभा जैसे निर्णायक मंचों पर महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व सुनियोजित तरीके से मूलभूत लैंगिक भेदभाव को दर्शाता है। जो महिलाएं आगे आकर खुद को साबित करती हैं, उन्हें भी राजनीतिक स्तर पर मुश्किल से महत्त्वपूर्ण भूमिका मिलती है। अकसर उन्हें महिला मुद्दों पर निगाह रखने का काम सौंप दिया जाता है।  2012 में 76 फीसदी महिलाओं ने अपने वोट का इस्तेमाल किया, जबकि पुरुष मतदाताओं की प्रतिशतता 69 प्रतिशत ही थी। बावजूद इस सक्रियता के 2017 के चुनावों में भाजपा द्वारा महज छह और कांग्रेस द्वारा तीन महिलाओं को ही टिकट दिया गया। इसका तात्पर्य यह हुआ कि महिला भागीदारी का स्वर केवल गोष्ठियों व सेमिनारों में बहस के रूप में ही गूंजता है।

हिमाचल प्रदेश आज तक केंद्र में स्वास्थ्य मंत्री के रूप में राजकुमारी अमृत कौर और संस्कृति मंत्री के रूप में चंद्रेश कुमारी को ही सुशोभित कर पाया है। लीला देवी महाजन, सत्यावती डैंग, मोहेंद्र कौर, उषा मल्होत्रा, चंद्रेश कुमारी, विप्लव ठाकुर, बिमला कश्यप हिमाचल से राज्यसभा पहुंच पाई हैं, जबकि हिमाचल  मंत्रिमंडल में आशा कुमारी, विद्या स्टॉक्स, सरवीण चौधरी व चंद्रेश कुमारी ही पहुंच पाई हैं। इस तरह से हिमाचल विधानसभा व लोकसभा में महिला प्रत्याशियों की संख्या बेहद चिंतनीय है।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय, ई-मेल आईडी तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

  -संपादक


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