ईश्वर की उपासना

By: Jan 20th, 2018 12:05 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे… 

ऐसे ईश्वर की उपासना कैसे की जा सकती है? हम अभी समझ लेंगे कि  कोई आत्मा किस प्रकार वास्तव में भीषण की उपासना करना सीख सकती है, तब उस आत्मा को शांति प्राप्त होगी। क्या तुम्हें शांति मिली? क्या तुम चिंतामुक्त हो जाते हो? घूम जाओ और सबसे पहले भीषण का सामना करो। नकाब को फाड़ फेंको और उसी ईश्वर को पाओ। वह सगुण है, वह सब है, जो शुभ प्रतीत होता है और वह सब, जो अशुभ प्रतीत होता है। उसके अतिरिक्त कोई अन्य नहीं है। यदि ईश्वर दो होते, तो प्रकृति एक क्षण भी खड़ी नहीं रह सकती। प्रकृति में कोई दूसरा नहीं है। यह सब समन्वय है। यदि ईश्वर एक ओर जाता और शैतान दूसरी ओर, तो संपूर्ण प्रकृति विशृंखला हो जाती। नियम को कौन तोड़ सकता है? यदि मैं इस कांच को तोड़ू, तो यह नीचे गिर पड़ेगा। यदि कोई एक परमाणु को उनके स्थान से विचलित करने में सफल हो जाता है, तो शेष सब भी संतुलन से च्युत हो जाएंगे। नियम कभी नहीं तोड़ा जा सकता। प्रत्येक परमाणु अपने स्थान पर बनाए रखा जाता है। प्रत्येक तुला और नपा है और अपने उद्देश्य तथा स्थान को पूर्ण करता है। उसकी आज्ञा से हवाएं चलती हैं, सूर्य चमकता है। उसके विधान से जगत अपने स्थानों पर स्थित रहते हैं। उसकी आज्ञा से मृत्यु पृथ्वी पर क्रीड़ा करती है। इस संसार में दो या तीन ईश्वरों की कुश्ती की कल्पना तो करो, ऐसा नहीं हो सकता। अब हम देखते हैं कि हम सगुण ईश्वर रख सकते हैं, इस विश्व का रचयिता, जो सदय है और निर्दय भी। वह भला है, वह बुरा है। वह मुस्कराता है और भौहें चढ़ाता है और कोई उसके विधान से बाहर नहीं जा सकता। वह इस ब्रह्मांड का सर्जक है। सृष्टि का कुछ नहीं से कुछ के अविर्भाव का अर्थ क्या है? छह हजार वर्ष पहले ईश्वर अपने स्वप्न से जागा और उसने इस संसार को बनाया और उसके पहले कुछ नहीं था? तब ईश्वर क्या कर रहा था, लंबी नींद ले रहा था? ईश्वर ब्रह्मांड का कारण है और हम कारण को कार्य के द्वारा जान सकते हैं। यदि कार्य नहीं है, तो कारण नहीं है। कारण सदा कार्य में और कार्य के द्वारा व्यक्त होता है। सृष्टि अनंत है। तुम आरंभ की कल्पना न काल में कर सकते हो, न देश में। वह सृष्टि को क्यों रचता है? क्योंकि वह रचना चाहता है, क्योंकि वह स्वतंत्र हैं। तुम और मैं नियम से बंधे हैं, क्योंकि हम केवल कुछ विशेष मार्गों से ही काम कर सकते हैं और दूसरों से नहीं। बिना हाथ के वह प्रत्येक वस्तु को पकड़ सकता है, बिना पैर के वह तेज चलता है। बिना शरीर वह सर्वशक्तिमान है। जिसे कोई आंख देख नहीं सकती, पर जो प्रत्येक आंख में दृष्टि का कारण है, उसे ईश्वर करके जानो।  तुम उसके अतिरिक्त और किसी  की उपासना नहीं कर सकते। ईश्वर सर्वशक्तिमान है, इस ब्रह्मांड का आधार। जो ‘नियम’ कहलाता है, वह उसकी इच्छा की अभिव्यक्ति मात्र है। वह विश्व का शासन अपने नियमों से करता है। अब तक हमने ईश्वर और प्रकृति का, सनातन ईश्वर और सनातन प्रकृति का विवेचन किया है। पर जीवात्माओं के विषय में? वे भी सनातन है। किसी आत्मा की कभी सृष्टि नहीं की गई, न आत्मा मर सकती है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App