उपेक्षित चंबा को नए नजरिए से देखे सरकार

By: Jan 8th, 2018 12:05 am

कुलभूषण उपमन्यु

लेखक, हिमालय नीति अभियान के अध्यक्ष हैं

कठिन भौगोलिक क्षेत्र होने के कारण इस जिला को विशेष ध्यान देने की जरूरत थी, परंतु राजनीतिक अनदेखी का शिकार चंबा विकास की दौड़ में पिछड़ता चला गया। चंबा सभी सामाजिक-आर्थिक मानकों में निचले पायदान पर ही बना हुआ है। आज यह देश के सबसे पिछड़े 115 जिलों में से एक है…

हिमाचल प्रदेश में चंबा का नाम आते ही दो तरह के चित्र मानस पटल पर उभर आते हैं। एक, ऐसा क्षेत्र जिसकी संस्कृति 1500 वर्षों से प्रवाहमान है, अक्षुण्ण और जीवंत है। राजशाही काल में भी जो अपने समकक्षों में अग्रणी रहा है। जहां 1910 ई. में ही शहर में बिजली आ गई थी, जबकि पड़ोस के पंजाब में भी बिजली नहीं थी। एशिया का पहला कुष्ठ रोग चिकित्सा केंद्र 1881 में ही खुल गया था। 1887 ई. में भरमौर, सिहुंता, बाथरी, तीसा, पांगी और किहार को ब्रिटिश डाक सेवा से जोड़ दिया गया था यानी चंबा रियासत के सब भागों को डाक सुविधा उपलब्ध हो गई थी। आगे चलकर प्रदेश के कुशल नेतृत्व के प्रयासों से 1971 में हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल गया।

शुरुआती दौर में अंदरखाते पुराने और नए क्षेत्रों में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का दौर शुरू हो गया, जिसके दबे स्वर आज भी कभी-कभी सुनाई पड़ जाते हैं। इस होड़ में चंबा अलग-थलग पड़ गया। चंबा की राजनीति न तो अपने साथ लगते कांगड़ा के क्षेत्रों से एक रस हो सकी और न ही दूसरे कोने में स्थित पुराने हिमाचल के क्षेत्रों से सहानुभूति पा सकी। कठिन भौगोलिक क्षेत्र होने के कारण इस जिला को विशेष ध्यान देने की जरूरत थी, परंतु राजनीतिक अनदेखी का शिकार चंबा विकास की दौड़ में पिछड़ता चला गया और आज यह देश के सबसे पिछड़े 115 जिलों में से एक है। रावी, स्युहल, चक्की, देहर जैसी सदानीरा नदियां जिला में बहती हैं, परंतु सिंचित कृषि क्षेत्र रजवाड़ा काल के लगभग ही बना हुआ है। चंबा सभी सामाजिक-आर्थिक मानकों में निचले पायदान पर ही बना हुआ है। साक्षरता दर 71 प्रतिशत सबसे कम, प्रति व्यक्ति औसत आय 23,059 रुपए सबसे कम। केवल 8.4 फीसदी आबादी के पास एलपीजी कनेक्शन सबसे कम। पिछले सर्वेक्षण में बीपीएल परिवार 54 प्रतिशत सबसे ज्यादा। चंबा में आर्थिक वृद्धि दर प्राथमिक क्षेत्र में 1.38 प्रतिशत, द्वितीयक क्षेत्र में 1.32 प्रतिशत और तृतियक क्षेत्र में मात्र 1.72 प्रतिशत। यह चंबा की दूसरी तस्वीर है, जिसकी जिम्मेदारी किसी को तो लेनी होगी और इसको इस भंवर से बाहर निकालने का प्रयास करना होगा। आज तो स्थिति यह है कि चंबा जिला मुख्यालय पर होने वाली पोस्टिंग को भी दंडात्मक पोस्टिंग माना जाता है।

जिला चंबा में वन क्षेत्र काफी है, इसलिए वन और कृषि से जुड़े रोजगारों की अच्छी संभावनाएं हैं। आधे से ज्यादा कृषि भूमि बेमौसमी उपजों के लिए उपयुक्त है। बागबानी के लिए भी जलवायु विविधता उपलब्ध है। संपर्क चंबा के लिए बड़ी समस्या है। आधुनिक विकास के लिए अच्छी संपर्क सुविधाओं का होना अपरिहार्य है। चंबा की पांच अलग-अलग पुरानी तहसीलें हैं, जिनमें से पांगी और चुराह की भाषा को बाकी क्षेत्र नहीं समझ सकते। वर्ष में लगभग आधा समय ये क्षेत्र आपस में कटे रहते हैं, जिसका विकास पर और आपसी एकता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अलग-अलग रिवाज और वेशभूषा चुनौती के साथ संभावना भी पैदा करती है। पर्यटन में इन परिस्थितियों का सदुपयोग होना चाहिए।

पर्यटन के क्षेत्र में चंबा अनूठी संभावनाएं लिए हुए है, परंतु डलहौजी के वीक एंड पर्यटन से आगे हम बढ़ नहीं पा रहे हैं। इसके लिए भी अच्छी संपर्क व्यवस्था जरूरी है। चंबा से भटियात को जोड़ने के लिए कुट-बखतपुर सुरंग, पांगी को जोड़ने के लिए चैह्नी-सुरंग और पांगी को लद्दाख से जोड़ने के लिए भी संभावना देखी जानी चाहिए। यह लद्दाख क्षेत्र के लिए सबसे छोटा मार्ग होगा, जिसका लाभ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सर्वोपरि होगा। इसलिए सुरक्षा बजट से इन संपर्क सुरंगों को बनाने से पर्यावरण को नुकसान भी कम होगा और पूरा साल ये दुर्गम क्षेत्र आपस में जुड़े रहने से सुरक्षा भी सुदृढ़ होगी। चंबा मूर्तिकला, चित्रकला, कढ़ाई कला, नृत्य शैलियां, व्यंजन और धार्मिक स्थल पर्यटन के लिए अपार विविधता का खजाना लिए हैं। ग्रामीण पर्यटन, साहसिक पर्यटन और प्रकृति प्रेमी पर्यटन की अपार संभावनाए हैं। चमेरा जलाशय का प्रयोग पानी पर उतरने वाले छोटे हवाई जहाज सेवा के लिए किया जा सकता है। भटियात से शुरू करके गणेशगढ़, तारागढ़ और इनसे जुड़े मंदिरों कुंजर महादेव, नाडाली, घराणु, बसोधन, खजियार, डलहौजी, भलेई माता, चंबा के 8वीं-10वीं शताब्दी के अन्य मंदिर और कालाटोप वन्य पशु अभयारण्य, अलग-अलग रुचि के लोगों के लिए अलग पर्यटन सर्किल बनाने की अपार संभावनाएं लिए हैं। इनका दोहन उत्तरदायी-पर्यटन के माध्यम से होना चाहिए।  मणिमहेश जैसी विश्व प्रसिद्ध धार्मिक यात्रा को भी हम प्रभावशाली रूप से विकसित नहीं कर पाए हैं।

युवा पीढ़ी में हुनर प्रशिक्षण कार्य और तकनीकी शिक्षा का प्रसार करना होगा, जिससे बाहर उद्योगों में जा कर सम्मानजनक कार्य पा सकें। उच्च शिक्षा की व्यवस्था, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य की समुचित व्यवस्था करनी होगी। हिमाचल प्रदेश में ही डाक्टर, नर्स, प्रयोगशाला सहायक, तकनीशियन आदि के कई पद खाली पड़े हैं। ऐसे में चंबा जैसे पिछड़े जिले ही अभाव का शिकार होते हैं। नई सरकार से चंबा को नए नजरिए से देखने की उम्मीद लोगों ने लगाई है। प्रधानमंत्री ने 115 पिछड़े जिलों के लिए जो विशेष योजना बनाई है, उसका असली लाभ तो राज्य सरकार की सक्रियता से ही मिलना संभव होगा। बीआरजीएफ जैसे कार्यक्रमों से पहले भी कुछ प्रयास हो चुके हैं, परंतु स्थिति में वांछित सुधार की आशा अभी पूरा होना बाकी है। नई सरकार को बधाई सहित चंबा की जनता विशेष आशाएं लगाए है। उम्मीद है वर्तमान सरकार चंबा जिला को निराश नहीं करेगी।


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