कांगड़ा का ऐतिहासिक दुर्ग बना पर्यटकों की पहली पसंद

By: Jan 10th, 2018 12:05 am

कांगड़ा — पर्यटन आकर्षण केंद्र के रूप में उभर न पाने और माकूल सुविधाएं न होने के बावजूद कांगड़ा के ऐतिहासिक दुर्ग में पर्यटकों का आना जारी है। वर्ष 2017 में यहां आने वाले पर्यटकों की तादाद में इजाफा हुआ है । वर्ष 2016 में जहां 152141 पर्यटक यहां पहुंचे, तो वर्ष 2017 में यह संख्या 171279  हो गई । जबकि विदेशी पर्यटकों में भी वृद्धि दर्ज की गई है। 2016 में  3372 विदेशी पर्यटक यहां पहुंचे थे और 2017 में यह आंकड़ा बढ़कर 4045 हो गया यानी 2017 में 673 विदेशी पर्यटक यहां पिछले वर्ष की अपेक्षा अधिक पहुंचे।  भारतीय पर्यटकों में भी 19138 पर्यटकों का इजाफा हुआ है। एक दशक पहले की बात करें तो वर्ष 2007 में कांगड़ा के दुर्ग में 47882 भारतीय पर्यटक ऐतिहासिक दुर्ग को निहारने के लिए पहुंचे थे । विदेशी पर्यटकों का आंकड़ा 1343 था । भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद् विशांत त्रिपाठी का कहना है कि यहां संरक्षण का कार्य जारी है और साफ -सफाई पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है । उन्होंने बताया कि स्वच्छता अभियान को विशेष तवज्जों दी जा रही है और स्मारक की सुंदरता की ओर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि संग्रहालय को आकर्षित बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। खैर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग अपने स्तर पर ऐतिहासिक दुर्ग के संरक्षण एवं सौंदर्यीकरण को तरजीह  दे रहा है, लेकिन यहां आने वाले पर्यटकों के लिए प्रदेश सरकार ने कोई पुख्ता बंदोबस्त नहीं  किए हैं । उल्लेखनीय है कि प्रेम कुमार धूमल ने मुख्यमंत्री रहते दो दशक पूर्व यहां कैफे  बनाने की घोषणा की थी, लेकिन पिछली सरकारों ने कैफे बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। ऐतिहासिक दुर्ग में चौधरी विद्यासागर ने मंत्री रहते जो लाइट लगवाई थी वह भी अब उखड़ चुकी हैं। गौरतलब है कि इन लाइट्स के लगने से ऐतिहासिक दुर्ग दूर से जगमगाता था । यहां लाइट एंड साउंड और संगीतमय फव्वारा लगाने की भी घोषणाएं पूर्व सरकारों ने की लेकिन उसे अमली जामा न पहनाया गया ।  संजय चौधरी विधायक की प्राथमिकताओं में भी रोप-वे की योजना को शामिल किया गया, लेकिन यह योजना फाइलों में अटकी रह गई  इस संग्रहालय में हिमाचल से प्राप्त पाषाणकालीन उपकरण, औजार, मूर्तिशिल्प व सिक्के इत्यादि प्रदर्शित किए गए हैं। काबिलेगौर है कि पुनरुद्धार कार्यक्रम के दौरान किले से बड़ी संख्या में मूर्तिशिल्प तथा मंदिरों के प्राचीन अवशेष मिले थे, जिन्हें संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है।

बाणगंगा-मांझी-पाताल गंगा संगम

बाणगंगा , मांझी व पाताल गंगा नदियों के संगम पर खड़ी पहाड़ी की चोटी पर निर्मित है। विशाल भूखंड से घिरे इस किले की ऊंची सुरक्षा प्राचीर लगभग चार किलोमीटर लंबी है। मुख्य प्रवेश द्वार रणजीत सिंह द्वार के नाम से विख्यात है दुर्ग में लक्ष्मीनारायण, शीतला माता, अंबिका देवी तथा दो लघु जैन मंदिर हैं। ऐतिहासिक दुर्ग का अधिकांश भीतरी भाग शोध के दायरे में है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग व प्रदेश सरकार अगर मिलकर किसी ठोस योजना पर काम करें, तो यहां पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है।


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